नन्हा – सा हाथ और हाथों में कुछ खिलौने के टुकड़े , कंधे पर एक जुट की बोड़ी जिस की लंबाई उसकी लंबाई से बड़ी प्रतीत हो रही थी।
बाल बिखरा हुआ और कपड़े तो मानो मिट्टी का ही बना हुआ हो । देखने में उसकी उम्र 8 से 10 वर्ष लग रहे थे।
यह मुझे स्कूल जाते समय प्रतिदिन सड़क के किनारे कचरा बिनता हुआ मिल जाता था । आज उसके हाथ में खिलौने के दो टुकड़े थे , शायद उसे कचरे के ढेर से मिली होगी।
वह एक हाथ से कचड़े से उपयोगी वस्तु को उठाकर बोड़ी में डाल रहा था और दूसरे हाथ से टूटी हुई खिलौने को पकड़ा हुआ था जिससे वह बार-बार अपनी तिरछी आंखों से निहार रहा था । उसे प्रतिदिन कचरा बिनता देख मुझे बुरा लगता था । और सोचता , “काश ! इसे कोई , इस कचरे की दुनिया से बाहर निकालें और इसे अच्छी शिक्षा देकर इसे आगे बढ़ाएं ताकि वह भी अपना जीवन सही तरीके से जी सके।”
एक दिन जब मैं उसके नजदीक जाकर खड़ा हुआ तो वह मुझे देखकर खड़ा हो गया।
“तुम्हारा नाम क्या है बाबू?” मैंने कहा ।
“जी ….जी राजा ” उसने पलकें उठाते हुए कहा ।
उसकी आवाज बुलंद थी। वह वास्तव में राजा था। उसके पास सब कुछ था पैसे के अलावे । लेकिन यही पैसे की कमी उसके बचपन को खाया जा रहा था ।
“राजा , तुम स्कूल क्यों नहीं जाते हो ? ” मैंने दूसरी प्रश्न पूछा ।
“साहब ! पढ़ने के लिए पैसे तो ……”
मैंने उसकी बातों को बीच में ही रोकते हुए कहा, “लेकिन तुम जैसे बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी तो सरकार लेती है।”
“साहब ! सरकार अपनी जिम्मेदारी निभा रही है और मैं अपने परिवार की जिम्मेदारी निभा रहा हूं।”
उसकी जवाब सुनकर मैं सन्न रह गया और वह कचड़ा चुनता हुआ धीरे-धीरे मुझसे दूर चला गया । उसके जाने के बाद मेरे दिमाग में एक सवाल गूंजता रहा, “क्या सरकार वास्तव में सिर्फ अपनी जिम्मेदारी निभा रही है या बाल मजदूरी को रोकने के लिए कोई ठोस कदम भी उठा रही हैं।”
2 Comments
Superv story… Bahut pasand Aai..hame
Thanks