सिया के घर आने के बाद राठौड़ हाउस का माहौल बदलने लगा था। आरव, जो पहले हमेशा चुप और गुमसुम रहता था, अब उसकी आंखों में एक अलग चमक दिखने लगी थी। सिया के साथ बिताए गए हर पल में उसकी मुस्कान गहरी होती जा रही थी।
सिया सुबह से शाम तक आरव की देखभाल में जुटी रहती थी। उसकी खिलखिलाहट सुनकर नौकर-चाकर भी हैरान होते थे। आरव को नहलाते वक्त पानी के छींटे उड़ाना, उसके साथ रंग-बिरंगी किताबें पढ़ना और शाम को पार्क में ले जाकर झूला झुलाना सिया का रोज़ का रूटीन बन गया था।
एक शाम, सिया और आरव गार्डन में थे। आरव ने एक पतंग को आसमान में उड़ते हुए देखा और अपनी उंगली से उसे इशारा किया। सिया उसकी बात समझ गई।
“तुम पतंग उड़ाना चाहते हो?” उसने मुस्कुराते हुए पूछा।
आरव ने उत्साह से सिर हिलाया।
सिया ने तुरंत पास के दुकान से पतंग और मांझा खरीदा। पार्क में बच्चों के साथ मिलकर सिया ने आरव को पतंग उड़ाना सिखाया। उसकी छोटी-छोटी कोशिशें देखकर सिया हंसती और उसकी हिम्मत बढ़ाती।
उधर, अर्जुन ऑफिस से जल्दी लौट आया था। उसने देखा कि सिया और आरव गार्डन में पतंग उड़ाने की कोशिश कर रहे थे। वह चुपचाप खड़ा होकर यह नजारा देखता रहा।
सिया का आरव के साथ ऐसा सहज व्यवहार और उनकी हंसी ने अर्जुन को भीतर तक छू लिया। यह पहली बार था जब उसने महसूस किया कि आरव के जीवन में इतनी खुशी किसी ने वापस लाई थी।
रात के खाने पर अर्जुन ने सिया से कहा, “आपने आरव के लिए जो किया है, उसके लिए मैं हमेशा आपका आभारी रहूंगा। उसकी मुस्कान को लौटाने का मतलब मेरे लिए पूरी दुनिया है।”
“यह मेरा काम है, और सच कहूं तो मुझे भी इसमें बहुत खुशी मिलती है,” सिया ने जवाब दिया।
“वैसे, आप किस तरह की फिल्मों में काम करना चाहती हैं?” अर्जुन ने हल्के अंदाज में पूछा।
सिया ने हंसते हुए कहा, “कुछ भी ऐसा जो मुझे इस शहर में एक नाम दे। लेकिन आसान नहीं है, हर ऑडिशन के साथ लगता है कि ये सपने और दूर जा रहे हैं।”
“आपमें जो जुनून है, वह आपको एक दिन जरूर मंजिल तक पहुंचाएगा।” अर्जुन के शब्दों में एक विश्वास था, जिसने सिया को थोड़ी देर के लिए अपनी चिंता भूलने पर मजबूर कर दिया।
दिन गुज़रते गए और सिया और अर्जुन के बीच की बातचीत में भी सहजता आने लगी। अर्जुन, जो हमेशा अपने काम में डूबा रहता था, अब कभी-कभी सिया और आरव के साथ वक्त बिताने की कोशिश करता।
एक रात, सिया आरव को सुला रही थी। उसने आरव के बाल सहलाते हुए एक कहानी सुनाई। अर्जुन दरवाजे पर खड़ा होकर यह सब देख रहा था। सिया का चेहरा मासूमियत से भरा हुआ था, और उसकी आवाज में ऐसा जादू था कि अर्जुन खुद को मंत्रमुग्ध महसूस करने लगा।
जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे, अर्जुन को एहसास हो रहा था कि सिया केवल आरव के लिए खास नहीं थी, बल्कि वह धीरे-धीरे उसकी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बनती जा रही थी। लेकिन यह एहसास उसे थोड़ा असहज भी करता था।
सिया, इस नए रिश्ते और जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से निभा रही थी। लेकिन उसके मन में एक सवाल अक्सर उठता था—क्या यह उसकी मंजिल का रास्ता है, या वह कहीं और भटक रही है?
अर्जुन के मन में भी सवाल थे। वह सिया के लिए जो महसूस करने लगा था, क्या वह सही था? क्या वह अपने अतीत और अपने परिवार की जटिलताओं को भुलाकर आगे बढ़ पाएगा?
यह नया रिश्ता कई सवालों और संभावनाओं से भरा था। लेकिन एक बात साफ थी—सिया और अर्जुन की जिंदगी अब पहले जैसी नहीं थी।



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