सिया के जाने के बाद राठौड़ हाउस की खामोशी गहरी हो गई थी। आरव ने बोलना तो दूर, मुस्कुराना भी छोड़ दिया था। वह घंटों तक अपने कमरे में एक कोने में बैठा रहता, किसी खिलौने को घूरता या कभी-कभी खिड़की के बाहर देखता। उसकी यह उदासी अर्जुन के दिल को तोड़ रही थी।
एक दिन, जब अर्जुन ऑफिस के लिए निकलने वाला था, उसने देखा कि आरव ने उसका हाथ पकड़ लिया। यह पहला बार था जब उसने उसे किसी बात के लिए रोका हो।
“क्या हुआ, आरव?” अर्जुन ने झुककर प्यार से पूछा।
आरव ने अपनी छोटी उंगलियों से कुछ इशारे किए, लेकिन अर्जुन समझ नहीं पाया। उसने तन्वी को बुलाया, जो आरव की भाषा थोड़ी समझती थी।
“भैया, आरव कह रहा है कि वह सिया को याद कर रहा है और चाहता है कि वह वापस आए,” तन्वी ने बताया।
आरव की आंखों में भरे आंसुओं ने अर्जुन को गहरा झकझोर दिया। उसे अब यह साफ हो गया था कि सिया सिर्फ आरव के लिए नहीं, बल्कि उनकी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुकी थी।
दूसरी तरफ, सिया ने मुंबई में अपनी पुरानी जिंदगी में लौटने की कोशिश की। उसने फिर से ऑडिशन देना शुरू किया, लेकिन अब वह पहले की तरह आत्मविश्वासी नहीं थी। हर बार जब वह किसी कैमरे के सामने खड़ी होती, तो उसे आरव का चेहरा याद आ जाता।
एक शाम, जब सिया अपने फ्लैट में बैठी थी, तो उसे अर्जुन का फोन आया।
“सिया, क्या हम मिल सकते हैं?” अर्जुन की आवाज में थकान और गहराई थी।
सिया चौंक गई। उसने कुछ पल सोचा और फिर सहमति में सिर हिला दिया।
अर्जुन और सिया की मुलाकात एक कैफे में हुई। अर्जुन के चेहरे पर साफ झलक रहा था कि वह कितनी परेशानियों से गुज़र रहा है।
“आरव तुम्हें बहुत याद करता है। उसने खाना-पीना छोड़ दिया है। वह किसी से बात नहीं करता। सिया, वह सिर्फ तुम्हारे साथ खुश रहता है,” अर्जुन ने सिया की आंखों में देखते हुए कहा।
“अर्जुन, मैंने यह फैसला सिर्फ आरव के लिए नहीं, आपके परिवार के लिए भी लिया था। मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से आपके घर में तनाव हो,” सिया ने धीरे से कहा।
“परिवार को मैं संभाल लूंगा। लेकिन आरव का क्या? और मेरा क्या? तुमने यह सोचा?” अर्जुन की आवाज भावनाओं से भर गई थी।
सिया ने अर्जुन की बातों को नजरअंदाज करने की कोशिश की, लेकिन वह जानती थी कि उसकी जिंदगी में अर्जुन और आरव की अहमियत कितनी बढ़ चुकी थी।
अर्जुन ने सिया को एक मौका देने का आग्रह किया। “मैं अपने परिवार को मनाने की कोशिश करूंगा। लेकिन अगर तुम वापस नहीं आओगी, तो यह लड़ाई मैं अकेले नहीं जीत पाऊंगा। तुम्हारी जरूरत है, सिया। सिर्फ आरव के लिए नहीं, मेरे लिए भी।”
अर्जुन की इस स्वीकारोक्ति ने सिया को गहरे तक छू लिया।
अगले दिन, अर्जुन ने अपने परिवार को एक बार फिर से इकट्ठा किया। इस बार उसका लहजा पहले से कहीं ज्यादा दृढ़ था।
“सिया अब सिर्फ आरव की देखभाल करने वाली नहीं है। वह इस परिवार का हिस्सा है। मैं चाहता हूं कि आप सब उसे उसी तरह स्वीकार करें। अगर आप उसे अपना नहीं सकते, तो मुझे इस परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को फिर से सोचना पड़ेगा,” अर्जुन ने स्पष्ट रूप से कहा।
रामनाथ, जो अब तक चुप थे, ने गहरी सांस ली। “अगर वह इतनी खास है, तो मुझे उससे मिलकर देखना होगा। लेकिन अर्जुन, याद रखना कि इस परिवार की इज्जत मेरे लिए सबसे ऊपर है।”
तन्वी ने भी, हालांकि अनमने भाव से, कहा, “अगर भैया और आरव के लिए वह इतनी महत्वपूर्ण है, तो मैं उसे एक और मौका देने को तैयार हूं।”
अर्जुन के लिए यह पहला कदम था, लेकिन वह जानता था कि लड़ाई अभी पूरी नहीं हुई है।
सिया ने अर्जुन का प्रस्ताव स्वीकार किया और आरव के लिए लौटने का फैसला किया। जब वह राठौड़ हाउस पहुंची, तो आरव दौड़कर उसकी ओर भागा। उसने सिया को गले लगा लिया, और पहली बार, उसके चेहरे पर फिर से मुस्कान लौट आई।
अर्जुन के परिवार ने सिया का स्वागत तो नहीं किया, लेकिन इस बार उनके चेहरे पर खुला विरोध भी नहीं था।
सिया और अर्जुन के बीच का रिश्ता अब पहले से गहरा हो गया था। लेकिन दोनों जानते थे कि उन्हें इस रिश्ते को परिवार के सामने स्वीकार्य बनाने के लिए और भी लड़ाई लड़नी होगी।
क्या अर्जुन अपने परिवार को पूरी तरह मना पाएगा? और क्या सिया का यह समर्पण उनके रिश्ते को एक नया मुकाम देगा? कहानी का अंत अभी बाकी था, लेकिन एक नई शुरुआत की उम्मीद जाग चुकी थी।



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