तेरी-मेरी आशिकी का Part- 21 पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
आशीष के आवाज सुनकर दीपा कमरे से दौड़ती हुई आई और बोली, “क्या हुआ भैया?”
आशीष गुस्से से तेज – तेज सांस ले रहे थे और उन्होंने मोबाइल दीपा की तरफ से ते हुए कहा,” क्या है यह सब?”
दीपा घबराती हुई मोबाइल लेती है और फोटो देखने लगती है। फोटो देखते हुए उसके चेहरे की रंगत बदल जाती है । वह डरती हुई बोलती है, ” भैया!.….. भैया मैं…।”
“तो तुम कॉलेज यह सब करने जाती हो ? आज से तुम्हारी कॉलेज जाना बंद।”
आशीष को उस लड़के ने व्हाट्सएप पर कुछ फोटो भेजा था, उस फोटो में दीपा के गोद में सर रखकर निशांत लेटा हुआ था हालांकि उन फोटो में निशांत का चेहरा नहीं दिख रहा था।
“भैया हम दोनों सिर्फ दोस्त हैं। उसके अलावे कुछ नहीं है।”
“मुझे यह सारी चीजें मत सिखाओ। आज से घर पर रहो और घर पर रह कर ही पढ़ाई करोगी।”
भैया को गुस्से में देखकर दीपा कुछ बोलना उचित नहीं समझी। वह चुपचाप अपने कमरे में चली गई।
दीपा जानती थी कि भैया हमेशा से मेरी खुशी के लिए वह हर चीजें करते आयें है जो चीजें मुझे खुशी देती है। और उसे उम्मीद भी थी कि भैया भी इस बात को एक्सेप्ट कर लेंगे।
आशीष अपना बैग उठाया और घर से बाहर निकल गए।
आशीष के बाहर निकलते हैं दीपा ने सबसे पहले मुझे फोन लगाई , “हेलो निशांत, यार बहुत बड़ी दिक्कत हो गई है । किसी ने भैया के व्हाट्सएप पर हम दोनों के साथ वाली फोटो सेंड किया है। भैया काफी गुस्से करके काम पर निकले हैं।”
“क्या ! क्या तुम सच कह रही हो?”
“हां यार , मैं मजाक थोड़ी करूंगी। आज से कॉलेज भी नहीं जा पाऊंगी।” दीपा लगभग रोती हुई बोली।
“मगर यह फोटो भेजा होगा किसने? ” मैं एकदम सीरियस होकर बोला।
इधर हम दोनों इस बात पर उलझे थे कि आशीष भैया को फोटो किसने भेजा होगा। उधर देवांशु और प्रिंसिपल के जेल से छुड़ाने देवांशु के पिता थाना पहुंच चुके थे।
“तुम लोगों की इतनी हिम्मत कैसे हुई कि मेरे बेटे को लॉकअप में बंद कर दिया?” देवांशु के पिता जगन्नाथ मिश्रा लगभग दारोगा पर चिल्लाते हुए बोले जा रहे थे।
“सर इनके खिलाफ कंप्लेंट दर्ज हुई थी।”
“माधर…. (गाली) अगर कंप्लेंट दर्ज हुआ है तो गिरफ्तार करने से पहले एक बार तो मुझसे बात करता। किसी को….. किसी को भी नहीं छोडूंगा।”
आप सोच रहे होंगे देवांशु के पिता आखिर पुलिस वाले को इतना गाली कैसे दे सकता है। तो मैं आपको बता दूं देवांशु के पिता उस एरिया के दबंग और गुंडे टाइप का व्यक्ति है।
यही कारण तो है कि देवांशु कॉलेज या फिर कॉलेज के बाहर किसी से नहीं डरता है। वह भी अपने बाप के नक्शे कदम पर चलता है।
बात को बिगड़ता देख दरोगा घबराकर खुद ही लॉकअप को खोल देता है और देवांशु के साथ प्रिंसिपल को भी छोड़ देता।
“मिश्रा जी माफ कीजिएगा। हमको पते नहीं था कि देवांशु बाबू आपका बेटा है। नहीं तो माय किरिया ऐसी गलती कभी ना करते। हा…हा… हा…हा।”
“भोसड़ी के हंसी बंद कर। और बता कंप्लेंट किसने किया?”
“मिश्रा जी जाने दीजिए ना लइका है। हम उसे सुधार देंगे।”
“जितना तुमको कह रहे हैं उतना करो , जादे टें टा बतिआया ना कर! … ।” जगन्नाथ मिश्रा दांत को खींचते हुए बोलो ।
“पापा रहने दीजिए। मैं आपको बताता हूँ। है हमारे कॉलेज के छात्र नेता, निशांत नाम है उसका।”
“उसका बाप का नाम क्या है?”
“सर उसका भाई का नाम अर्जुन है। सुना है दिप राणा साहब प्रावेट लिमटेड कम्पनी का क्रांट्रेक्ट इस बार उसे ही मिला है ।” दारोगा बोला I
“कहीं तु लोग, ‘विपुल ग्रेनाइट प्रावेट लिमटेड’ वाला के बात तो नही कर रहा है?” जगन्नाथ मिश्रा ने दिमाग पर जोड़ डालते हुए कहा।
“हा-हा-हा-हा” मिश्रा जोर-जोर से हँसने लगा।
“क्या हुआ पापा ?”
जगनाथ मिश्रा और मेरे पिता जी दोनों दोस्त थे। दोनों कॉलेज समय से ही दोस्त थे। मेर पिता विपुल पंडित जी, जगन्नाथ मिश्रा को अपना भाई जैसा मानते थे ।
एक बार किसी बात को लेकर दोनों में बहस हो गयी जिसके वजह से दोनों की दोस्ती टुट गयी। उसके कुछ दिनों बाद पिता जी के कम्पनी में आग लग गयी थी
जिसके कारण वो ऑफिस के केबिन में फंस गये जिसमें उनकी दम घुंटने की वजह से मृत्यु हो गयी थी।
“क्या हुआ पापा ? आप इतना हंस क्यों रहे हैं?” देवांशु फिर एक बार पुछा ।
“साला लगाता है पुरे खानदान के मौत हमरे हाथ लिखा है।… हा…हा… हा…।” मिश्रा ने कहा।
कुछ देर बाद देवांशु अपने पिता के साथ घर चला आया। अब वह किसी भी तरह निशांत से बदला लेने के लिए सोचने लगा।
आपने कुछ देर पहले मेरे पिता जी और जगन्नाथ मिश्रा के दोस्ती के बारे में सुना। यह सच है कि दोनों एक अच्छे दोस्त थे I पापा और जगन्नाथ मिश्रा अंकल के सपना था कि दोनों कॉलेज से निकल कर अपनी कंपनी शुरू करेंगे।
दोनों कॉलेज के समय से कंपनी की पुरी प्लानिंग कर रखे थे। जब कॉलेज से पास होकर निकले तो उन्होंने सबसे पहले अपनी कंपनी के लिए जमीन खरीदा और फंडिंग व्यवस्था कर कम्पनी शुरू किया।
पहले के कुछ वर्षों तक सब कुछ अच्छा चला लेकिन फिर कम्पनी घाटे में चलने लगा। कम्पनी के इतने बुरे दिन शुरू हो गये थे कि लोन के किस्त भी जमा करना मुश्किल हो रहा था। पापा परेशान थे क्योंकि उन्हे मालूम थी कि कम्पनी अपना महीने के हर टार्गेट पुरा कर रही है I ऑर्डर और सेल, सब सही है तो कम्पनी घाटे में क्यों जा रही है I
पापा एकाउंटिंग को संभाला, और सभी पुराने अकाउंट्स को देखें तो उन्हें काफी गड़बड़ी नजर आई। पापा को सारी चीजें देखने के बाद उनका तो होश ही उड़ गए। कंपनी में लगभग 3 करोड़ के घोटाला हो चुके थे। माल तो भेजे जा रहे थे, पार्टी से पैसे भी मिल रहे थे। मगर वह पैसे कंपनी की अकाउंट में नहीं आ रहे थे और नहीं कहीं उसका कोई जिक्र था कि आखिर ये पैसे जा कहां रहे हैं।
पैसे की लेनदेन की जानकारी जगन्नाथ मिश्रा अंकल के पास होता था। एकाउंटिंग वही देखते थे। पापा ने जब उनसे इस गड़बड़ी के बारे में पूछा तो उन्होंने साफ-साफ बताने से मना कर दिया।
उन्होंने कहा, “ऐसा तो कोई गड़बड़ी नजर नही आती है विपुल।”
“अगर कोई गड़बड़ी नहीं है तो कंपनी के 3 करोड़ रुपए कहां गए?”
“यार तुम्हें कोई गलतफहमी हुआ है। हम बैठकर फिर से चेक कर लेंगे ना । हम इस पर बाद में बात करते हैं। चलो पहले कुछ आर्डर आये हैं उन्हें देख लेते हैं।” जगन्नाथ मिश्रा अंकल पापा को थोड़ी मक्खन लगाते हुए बोले।
“देखो अगर तुम सही – सही नहीं बताओगे तो मैं इस गड़बड़ी के सूचना पुलिस को दे दूंगा और वह अपने तरीके से तुम से कुछ निकलवा लेगा।” पापा इस बार थोड़ा गुस्से में बोले थे।
जगन्नाथ मिश्रा अंकल मेरे पापा से 1 दिन का समय मांगा और उन्होंने कहा, ” विपुल यार मुझे तुम बस 1 दिन का समय दोI मैं सारे अकाउंट रिचेक करके इन पैसों के बारे में बताता हूं। हो सकता है कुछ गड़बड़ी अनजाने में हुई हो।”
पापा जगन्नाथ मिश्रा अंकल के बात मानकर उन्हें 1 दिन का समय दिया। उस दिन पापा कंपनी बंद होने के बाद भी पापा ऑफिस के केबिन में ही सारे हिसाब- किताब मिलाते रहे। और उसी रात अचानक से उनकी केबिन में आग लग गई। केबिन में रखे सारे कागजात और फाइल्स के साथ मेरे पिताजी भी जल गए।
पापा के मृत्यु के बाद जगन्नाथ मिश्रा अंकल यानी देवांशु के पिता हमारी कंपनी को अपने नाम कर लिया और उसके बदले में हमें एक छोटी सी ग्रेनाइट कंपनी थमा दिया।
पिताजी के केबिन में आग लगना , यह एक हादसा था या जानबूझकर उनकी केबिन में आग लगाए गए थे यह एक पहेली बन कर ही रह गयी।
Continue…..
Next Episode READ NOW
All rights reserved by Author