The Hidden Past। Ep- 05। Suspense & Thriller Story In Hindi

Author - Avinash Kumar

आरव ने उस डिलीवरी बॉय से बॉक्स लेकर open किया , उसमें कुछ मेडिसिन थी जो हर 3 महीने में उसे मिलती थी। हालांकि उस मेडिसिन को कौन भेजता है , आरव को कभी मालूम नहीं पड़ा। 

हर बार की तरह इस बार भी उस बॉक्स में एक लेटर भी थी जिसमें बस लिखा होता था, “इस दवाई को टाइम टू टाइम लेते रहना।” 

दवाई को देखकर उसने गुस्से में बॉक्स को फेंक दिया और आरव पिछले तीन महीनों से लगातार ऐसा ही कर रहा था। अरे जब से उसने इन दवाइयां को सीखना शुरू किया था तब से अंडरवर्ल्ड डॉन बल्लू की आवाज़े इसे ज्यादा ही सुनाई देने लगा था।

आरव गुस्से में खुद से कहा, “ पार्सल भेजने वाले जो भी हो मै तुम्हें छोडूंगा नहीं और मुझे क्यों लगता है कि मेरे मॉम डैड की हत्या में इसकी भी हाथ होगी और अब वह इन दवाइयां से मुझे मारना चाहता है!”

दूसरी तरफ शेखर अंकल दिल्ली के एक बड़े से अस्पताल के केबिन में बैठे एक पेशेंट से बात कर रहे थे उनके केबिन के बाहर बड़े ही अक्षरों में लिखा हुआ था “डॉक्टर शेखर, साइकोलॉजिस्ट स्पेशलिस्ट”

“ मैं जब भी सोता हूं तो मुझे लगता है मुझे कोई गला दबाने आ रहा हो जिसकी वजह से सांसे तेज हो जाती है और मैं घबराकर बेड से उठ कर बैठ जाता हूं।” डॉ. शेखर के सामने बैठा मरीज ने कहा।

शेखर उसे मरीज की बात बहुत ध्यान से सुन रहे थे उसने प्रिस्क्रिप्शन पर कुछ लिखते हुए कहा, “ देखिए आपको घबराने की जरूरत नहीं है। इसे हम मेडिकल के क्षेत्र में इस बीमारी को नाइट टेरर कहते हैं। मैं कुछ दवाइयां लिख रहा हूं उसे अगले तीन महीना तक लेना है और अपने स्लीपिंग साइकल चेंज कीजिए फायदा होगा।” 

इस पेशेंट के बाद डॉक्टर शेखर कंटिन्यू अगले 2 घंटे तक पेशेंट का इलाज करते रहे। उसके बाद जब वह कार से अपने घर वापस आ रहे थे तब उसके असिस्टेंट ने कहा, “ सर मैं आज आरव के घर गया था मुझे लगता है उसने तीन महीने से मेडिसिन लेना छोड़ रखा है। उसके कमरे पूरे बिखरे पड़े थे और सारे दवाइयां उसी कमरे में फेक हुए थे।”

डॉक्टर शेखर खोए हुए से लग रहे थे। उसने धीमी आवाज में कहा, “ हां, मैं भी देख रहा हूं इन तीन महीनों में आरव के बिहेवियर काफी बदल गए हैं। वह फिर से पहले जैसा होता जा रहा है, वो बेचैन रहता है और अब वो किसी भी हालत में अपने पेरेंट्स के हत्यारे को ढूंढना चाहता है। कल उसने तो उस औरत के पास से डायरी भी ले लिया है।  मुझे शक है कि उसे मालूम ना पड़ जाए कि उसके पेरेंट्स का हत्यारे कौन है ? जिस दिन उसे मालूम होगा उसकी तबीयत और बिगड़ना शुरू हो जाएगी।”

दूसरी तरफ आरव अपने अपार्टमेंट में फाइल के पन्ने पलट रहा था। डॉ। शेखर का नाम बार-बार उसकी आंखों के सामने घूम रहा था। वह जानता था कि यह आदमी उसके माता-पिता की हत्या में किसी न किसी तरह शामिल था। लेकिन उसके खिलाफ सबूत इकट्ठा करना और उसे कानून के शिकंजे में लाना आसान नहीं था।

“अब क्या?” आरव ने मन ही मन पूछा।

आवाज़ फिर गूंजी। “आरव, तुम्हारे पास ज्यादा समय नहीं है। डॉ शेखर के पास हर वो Resources  है जो उसे निर्दोष साबित कर सकता है। अगर तुम जल्दी नहीं करोगे, तो वो फिर से बच निकलेगा।”

आरव ने गहरी सांस ली। वह जानता था कि उसे सावधानी से काम करना होगा।

आरव ने शेखर अंकल की गतिविधियों पर नज़र रखना शुरू कर दिया। उसने धीरे-धीरे यह पता लगाया कि विक्रम हर गुरुवार को अपने फार्महाउस पर एक पर्शनल मीटिंग करता है। वहाँ कोई बाहरी व्यक्ति नहीं होता, सिर्फ उसके सबसे करीबी सहयोगी होते हैं।

“हाँ, यहाँ से शुरू करो,” आवाज़ ने सलाह दी। “तुम्हें उन मीटिंग में होने वाली बातों का पता लगाना होगा। हो सकता है वहाँ तुम्हें कुछ ऐसा मिल जाए जो तुम्हारे काम आए।”

आरव ने डिसाइड किया कि वह आज फार्महाउस में चोरी छुपे घुसेगा और डॉक्टर शेखर के खिलाफ सबूत इकट्ठा कर कर उसे अपने पेरेंट्स के मर्डर का बदला लेगा। 

डॉ. शेखर कोई छोटा-मोटा आदमी नहीं थे दिल्ली के सबसे बड़े साइकोलॉजिस्ट थे जिन्होंने कई वर्षों तक U.S.A में रहकर अपनी डॉक्टर की प्रैक्टिस की थी। फिर भारत आने के बाद उन्होंने गवर्नमेंट के लिए काम किया था, जिसमें कैदियों के बिहेवियर पर रिसर्च किया था और उन कैदियों से सच्चाई उगलवाने के लिए कई साइकोलॉजिस्ट टर्म का use किया था जिसकी वजह से कई गैंगस्टर भी उनके दुश्मन बन गए थे । इस वजह से भारत सरकार ने उनकी सेफ्टी के लिए कई कई फोर्स लगा रखे थे।

फार्महाउस तक पहुंचना आसान नहीं था। चारों ओर कड़ी सुरक्षा थी, और हर कोने पर गार्ड तैनात थे। आरव ने अपने एक पुराने साथी, सुधीर, से मदद मांगी। सुधीर एक Technical Expert था और उसने आरव को वादा किया था कि वह फार्महाउस के अंदर जाने में उसकी मदद करेगा। 

लेकिन फिर भी सुधीर ने आरव को जाते वक्त वार्निंग दी थी, “वहां जाना खतरनाक है, आरव।  अगर पकड़े गए, तो यह तुम्हारे करियर का अंत होगा। तुम्हें पुलिस की नौकरी से भी निकल जा सकती है।”

“मेरा करियर मेरे माता-पिता के इंसाफ से बड़ा नहीं है,” आरव ने कॉन्फिडेंस से जवाब दिया।

गुरुवार की रात, आरव और सुधीर  दोनों फार्महाउस के पास चले गए। सुधीर ने कुछ ही मिनटों में वहां लगे सारे कैमरे को हैक कर लिया और उसे रिकॉर्डिंग करने से ब्रेक कर दिया। कैमरे ऑन थी, कैमरे की लाइट जल रही थी मगर उसमें कोई भी डाटा सेव नहीं हो रहा था।

“अब तुम्हारे पास सिर्फ 15 मिनट हैं,” सुधीर ने कहा।

सुधीर की बात सुनकर आरव चुपचाप दीवार फांदकर फार्महाउस के अंदर घुस गया। उसके अंदर जुनून सवार था लेकिन वह शांत और सतर्क था।

भीतर से उसे कुछ लोगों की आवाज़ें सुनाई दीं। डॉ. शेखर और उसके कलीग्स बातें कर रहे थे।

“हां, मुझे मालूम है उसे ठीक करना ही होगा वरना उसके लोग और बढ़ते जाएंगे।” विक्रम सिंह की आवाज़ सुनाई दी। 

जब आरव ने झांक कर देखने की कोशिश की तो वहां साथ में बैठे लोगों को देखकर आरव के होश उड़ गए उसे यकीन ही नहीं हुआ कि यह लोग भी डॉक्टर शेखर के साथ मिले हुए हैं।

 
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