Author - Avinash Kumar
अगर आप बड़े शहरों में रहते हैं तो आप प्रत्येक दिन सैकड़ों लोगों से मुलाकात करते होंगे हैं। इनमें से कुछ लोग अपने होते हैं तो कुछ अपनों के बीच से होते है।
मैं कई वर्षों से मुंबई में रह रहा हूं, यह इतना व्यस्त शहर है कि आप यहां खुद को भूल जाते हैं । मैं कौन हूं ? मैं क्या था ? बस कुछ याद भी रहती है तो वह काम है!
इस शहर के कृत्रिम प्रकाश कभी यह महसूस नहीं होने देती है कि कब रात होती है और कब सुबह। यहां रिश्ते संभालना बहुत आसान है।
जब रिश्ते में कोई कड़वाहट ना हो, कोई दिक्कतें ना हो और ना ही कोई गलतफहमी हो तब साथ निभाओ और जैसे ही इन रिश्तो में कोई कड़वाहट हो, आपसी कोई परेशानी हो या फिर कोई गलतफहमी हो तब इस स्थिति में रिश्ते छोड़ कर आगे बढ़ जाओ ।
यहाँ ऐसा करना दोनों तरफ से सही माने जाते हैं । वो चाहे महिला की तरफ की बात हो या पुरुष की तरफ का।
कहा जाता है जिस रिश्ते में खुशी ना मिले उस रिश्ते का बोझ ढोने से क्या फायदा ? इसे छोड़ कर आगे बढ़ जाना ही सबसे अच्छा होता है।
पता नहीं ! इस शहर की हवाओं में ऐसा क्या जादू है ? जो लोग इतनी जल्दी अपने अतीत को विसार देते हैं ।
मैं यहां लगभग 18 वर्षों से रह रहा हूं मगर अभी तक यहां के हवाओं की जादू का असर मुझ पर नहीं दिखा है। जिससे मैं अपने गांव, खेत-खलिहान, गिल्ली-डंडा , गांव की सकरी गलियां; अपने गांव के खेतों का खेल “ सीकर-तोड़, चिचवा-चिचोर चोर , चोर-सिपाही और गद्दा मार” आदि खेल आज भी वैसे के वैसे ही तस्वीर बन कर बैठा है।
गांव के खेती , लहराते सरसों ,गांव के पुराने पीपल और इन सबके बीच मेरी पहली जन्नत मेरी प्राइमरी स्कूल ; जिसने मुझे इस शहर में रहने लायक बनाया, इस शहर को समझने की बुद्धि दी ।
उसके छत भले ही टूटे-फूटे थे ; भले ही उसके दीवार रंगहीन हो चुके थे परंतु उसने मेरे जीवन को रंगीन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी ।
उसके छत है या नहीं ? उसने बिना फिक्र किए मेरे जीवन में एक विश्वास का छत बनाकर मुझे इस काबिल बनाया है और उसी प्राइमरी विद्यालय में मुझे मिली मेरी पहली मोहब्बत अंजू ।
अंजू मेरी क्लासमेट थी उस वक्त मैं पांचवी क्लास के विद्यार्थी था । जब हम दोनों को प्यार हुआ था । मैं यह बात आज बोल रहा हूं कि मुझे पांचवी क्लास में प्यार हुआ था । वरना उस समय तो प्यार शब्द की जानकारी तक भी नहीं थी।
उस वक्त सिर्फ इतना पता था कि अंजू मुझे बहुत अच्छी लगती है , उसके साथ समय बिताना मुझे भाति है बाकी प्यार-व्यार से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं थी।
यह बात उसके तरफ से भी इतना ही फिट बैठती है जितना की मेरे तरफ से। अंजू भी ये सारी चीजों से अनजान थी। बस उसे मुझसे बात करना, मेरे साथ रहना मेरे बारे में सोचना उसके चेहरे की मुस्कान बनाए रखते थे।
जब शाम को स्कूल में छुट्टी होती थी तो मैं उसके पीछे- पीछे ऐसे आता था जैसे मैं बॉडीगार्ड सलमान खान हूँ और वह मेरी करीना कपूर।
जब भी उसे कोई देखता या घूरता था तो मुझे मुझे ऐसा लगता था जैसे उसकी आंखों को निकाल लूँ और कंचे खेल जाऊं।
घर आने के बाद किताबों का झोला दादाजी के टूटी खाट पर ऐसे फेंकता था जैसे वर्षों से उसे ढोता आ रहा हूँ और अब उसे फेंक कर हमेशा-हमेशा के लिए मुक्त होना चाहता हूं ।
किताब फेंकने के बाद सीधा गौशाला में जाता जहां एक कोने में चाचा की एटलस साइकिल से निकला बेडरॉक (Bedrock) के पुराने टायर रखी होती थी।
इसे लेकर डंडे से इस पुराने टायर को चलाता हुआ अंजू के घर तरफ चला जाता और उसके घर के 1-2 चक्कर मार कर ही चैन लेता था।
सच कहूं तो जितना मजा उस साइकिल के पुराने टायर को हाथों से धक्का देकर चलाने में आता था, आज मुंबई के इन सड़कों पर टोयटा बी6 ( Toyota B6 ) चलाने में भी नहीं आती है।
उस वक्त मेरे अंदर का फ्यूल (एनर्जी ) तब तक बनी रहती थी जब तक की अंजू अपने दरवाजे पर बैठकर मुझे देख कर मुस्कुराती रहती थी।
और आज महीने के अंतिम तारीख को बैंक अकाउंट में एक लाख से ज्यादा सैलरी आने के बाद भी उस वक्त जैसा एनर्जी नहीं दे पाती हैं ।
जब हम प्राइमरी स्कूल से निकलकर हाई स्कूल जाने वाले थे तब ऐसा लग रहा था अब सब कुछ खत्म होने वाली है ।
उसके लिए प्रत्येक दिन स्कूल जाना , स्कूल में मिलना , उसे देख कर मुस्कुराना , सूखे हुए आम के पेड़ के नीचे बैठकर उसका इंतजार करना और क्लास में हिंदी लिखना कॉपी बांटते समय उसके कॉपी को अंतिम तक अपने हाथों में पकड़ कर दबाए रखना फिर अंत में उसके पास जाकर मुस्कुराते हुए कॉपी वापस करना।
यह सच है कि कुछ चीजें पीछे छूट गए थे मगर अंजू मेरे साथ थी। हम दोनों एक साथ एक ही स्कूल में एडमिशन करवाया और साथ ही पढ़ना जारी रखा ।
हम कई वर्षों से साथ थे मगर हम दोनों में से कोई अब तक किसी एक दुसरे को प्रपोज नहीं किया था । बस बिना कहे ही हमारी प्यार परवाने चढ़ रही थी।
मां कब बोलती है अपने बच्चों से कि मैं तुमसे प्यार करती हूं ? किसान कब करता है मुझे लहराते फसलों से प्यार है? भगवान कब कहते है कि मुझे धरती के तमाम जीव जंतुओं से प्यार है ? , कभी नहीं!
तो क्या वह प्यार नहीं करते हैं! करते हैं, बिना स्वार्थ के, बिना उम्मीद के। बस उन्हें प्यार करना अपना कर्तव्य लगता है। वैसे ही हम दोनों का प्यार था। निस्वार्थ ! ना कोई स्वार्थ थी ना कोई उम्मीद। बस उसे प्यार करना, उसका ख्याल रखना मेरी जिम्मेदारी सी लगती थी।
अंजू अक्सर लंच में मेरे लिए परांठे और मेरी पसंद की हरी परवल वाली भुंजिया लाया करती थी। उसे यह सब पसंद नहीं थी । बस वह मेरे लिए ही लाती थी ।
मगर मेरी फेवरेट पराठा और परवल भुजिया कब उसकी फेवरेट बन गयी कुछ पता ही नहीं चला। प्यार में अक्सर यही होता है उसकी पसंद या मेरी पसंद नहीं रहती है बल्कि सब कुछ हमारी पसंद बन जाती है ।
हमारी जिंदगी मजे से चल रही थी । सब कुछ सही था। फिर एक दिन अचानक से अंजू स्कूल नहीं आई; उस दिन मैं उसे बहुत मिस किया। और मुझे आश्चर्य भी हुआ। उसे जब भी स्कूल नहीं आना होता था वह मुझे जरूर बताती थी कि मैं अगले दिन स्कूल नही जा रही हूं।
फिर हम दोनों मिलकर क्लास बंक कर देते थे । उस दिन अंजू मुझसे बिना बताए ही स्कूल नहीं आई। मुझे बहुत बुरा लगा । मैं सोचा कल उसे मज़ा चखाता हूं।
अफसोस ! वह अगले दिन भी स्कूल नहीं आई । मैं और भी परेशान हो गया , अगले दिन शाम में उसके घर के तरफ गया। वह मुझे अपने दरवाजे के पास भी नहीं दिखी।
अब मुझे चिंता सताने लग। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। क्या करूं ? उसे क्या हुआ ? वह कहां है ? इतने सारे सवाल मन में चल रहे थे।
अब पूरे 1 सप्ताह हो चुके थे। उससे ना संपर्क हो पा रही थी और नहीं वह कहीं दिख रही थी।
रविवार का दिन था। मैं उसके घर के पीछे वाली खलिहान में बैठा था। वहां छोटे-छोटे कुछ बच्चे खेल रहे थे। मैं उन बच्चों को खेलते देख रहा था और अंजू को कहीं से आ जाने की उम्मीद लगा इधर-उधर देख रहा था।
बच्चे दौड़ कर किसी दूसरे बच्चे को पकड़ता उसके साथ दौड़ता , गिरता , भागता और फिर अपने खींचे हुए लकीर के घर के अंदर आकर बैठ जाता।
उसके वापस आ जाने के बाद घर के अंदर के दूसरे बच्चे खुशी से चिल्ला उठता । मैं भी कहीं न कहीं इन बच्चों जैसे ही खलिहान में बैठा था अंजू की वापस आ जाने की उम्मीद लेकर । शायद उसके वापस आ जाने के बाद मैं भी इन बच्चों जैसे ही उसे देख कर खुशी से चिल्ला उठता।
अचानक वह मुझे अपने छत पर दिखी वह थोड़ी परेशान। मैं इन आंसुओं से भरी आंखों से सर उठाकर उसके छत की तरफ देखा ,उदास दिख रही थी । मैं उसे इशारा कर कुछ पूछने की कोशिश किया मगर वह कुछ जवाब नहीं दे रही थी फिर उसने इशारा कर एक बच्चे को बुलाई।
वह बच्चा दौड़ता हुआ उसके घर के अंदर चला गया और कुछ मिनटों बाद वह बच्चे अपने हाथ में कागज का एक टुकड़ा लेकर मेरे तरफ दौड़ता आया।
” अंजू दीदी ने दी है।” कागज का टुकड़ा मुझे देते हुए बोला और देने के बाद बच्चा फिर खेलने में मग्न हो गया।
उस कागज के टुकड़े को पकड़ते ही मेरे धड़कने तेजी से बढ़ने लगा , अजीब सा डर लग रहा था । एक गुमनाम डर , किसी को खोने का डर, अपनों से बिछड़ने का डर , बिल्कुल सब कुछ खोने का डर जैसा । मैं कांपते हाथों से उस कागज के टुकड़े को खोला ।
“रोहित, अब मैं स्कूल कभी नहीं जा पाऊंगी । लोगों ने हमारी दोस्ती को अलग मतलब निकाल कर मेरे घर वाले को भड़का दिया है । जिससे मेरे घर वाले मुझसे और तुम से काफ़ी नफरत करने लगे हैं । हो सके तो इस दोस्ती को अब यहीं पर खत्म कर देते हैं । अब हम-दोनों एक-दूसरे से कभी नही मिलेंगे । तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना और अपना ख्याल रखना। “
अंजू की यह चिठ्टी पढ़ते ही मेरे आंखों में आंसू डबडबा आया। मैं इन आंसुओं से भरी आंखों से सर उठाकर अंजू की छत की तरफ देखा । अंजू अब तक छत पर ही थी और वह मेरी ओर ही देख रही थी ।
आंसू भरी आंखों से मुझे वह धुंधली दिख रही थी । मैं तब तक आंसू पोछता उससे पहले वह छत से नीचे चली गई। मुझे उस दिन बहुत दुख हुआ । इसलिए नहीं की लोगों ने मेरी दोस्ती को अलग समझा बल्कि इसलिए की अंजू ने भी मेरे प्यार को सिर्फ दोस्ती ही समझी । मैंने हमेशा उसके लिए एक दोस्त से बढ़कर किया । मगर अवसोस वह मुझे सिर्फ एक दोस्त ही समझ रखी थी । उस दिन के बाद अंजू कभी मुझे से कहीं नहीं मिली और ना ही वह कभी मिलने की कोशिश की।
कई महीनों बाद मुझे यकीन हो गया था। वह सचमुच में एक दोस्त ही समझती थी वरना प्यार करती तो एक बार मिलने की कोशिश जरूर करती।
समय बीतता गया। मैं 10वीं के बाद शहर चला गया और 12वीं के बाद तमिलनाडु में इंजीनियरिंग कॉलेज से कंप्यूटर साइंस (Computer science) में बीटेक किया।
अब उसकी याद कभी-कभी ही आती थी। वैसे भी याद उसे किस उम्मीद से करता। इसलिए की वह एक बहुत अच्छी दोस्त थी जो अपने घर वालों के बात मान कर हमारी दोस्ती को तोड़ अपने जीवन में मग्न हो गयी या फिर इसलिए की उसने मेरी बचपन की प्यार को एक दोस्ती का नाम देकर छोड़ गई । औऱ अब शायद दूबारा मिले तो मुझसे प्यार करेगी ।
कॉलेज में कई लड़कियां से दोस्ती हुई मग़र किसी से प्यार नहीं हुआ। जब आप किसी चीज को दिल से चाहते हो और वह नहीं मिलती है तो आपकी उन जैसे चीजों से विश्वास खत्म हो जाती है। शायद यही कारण थी कि अंजू के बाद किसी दूसरे लड़की के तरफ ध्यान ही नहीं दिया।
बीटेक (B. tech) के बाद मेरा कॉलेज में प्लेसमेंट हुआ । एक अच्छी कंपनी में जॉब मिल गई थी। पैकेज भी अच्छा था। अब घर वाले शादी के लिए प्रेशर बनाने शुरू कर चुके थे। मग़र शादी-विवाह में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं रह गयी थी। जिसके कारण मैं कुछ ना कुछ बहाने बना कर शादी की बात टाल दिया करता था।
एक दिन मैं ऑफिस से लौट रहा था उसी वक्त सड़क किनारे एक 10-12 साल के लड़के ने हाथ देकर गाड़ी रोकने का इशारा किया।
वह मुझसे लिफ्ट (left) चाह रहा था । देखने में वह किसी स्कूल का विद्यार्थी जैसा प्रतीत हो रहा था । गुलाबी चेकदार शर्ट, ब्लू कलर की पैट और कंधे पे स्कूल बैग के साथ पानी वाली बॉटल । यह देख कर कोई भी बता सकता था यह लड़का स्कूल से छुट्टी होने के बाद अपने घर को जाने वाला है। मैंने गाड़ी रोक दी।
“अंकल, आप मुझे बोरीवली तक छोड़ दोगे?” उसने गाड़ी के पास आकर बोला।
मैंने बिना कुछ जबाब दिए ही गाड़ी के दरबाजा खोल कर उसे बैठा लिया । गाड़ियां स्टार्ट होते ही उसने अपने स्कूल बैग को खोला और उससे लंच बॉक्स निकाल कर उसे खोलने लगा। जब मैं ने उसके तरफ देखा तो वह बोला, “सॉरी अंकल! भूख लगी है तो सोचा खा लूँ ।”
“कोई बात नहीं खा लो। वैसे तुमने स्कूल में लंच क्यों नहीं किया?” मैंने कहा।
” अगले महीने मेरी स्कूल का एनुअल फंक्शन ( annual function) है । उसमें मैंने भी पार्टिसिपेट (Participate) किया है। उसी का रिहर्सल कर रहा था जिसके कारण लंच करने की सुध ही नहीं रहा। ” उसने बिना मेरे तरफ देखें ही एक ही सांस में बोल दिया। लंच बॉक्स खोलते ही पराठे के साथ हरी परवल की भुंजिया की खुशबू पूरी गाड़ी में फैल गयी ।
उसके लंच बॉक्स को देखकर मेरी हाई स्कूल के लंच बॉक्स याद आ गयी। जिसमें कभी मेरे फेवरेट पराठे और हरी परवल की भुजिया हुआ करता था । जिसे अंजू सिर्फ मेरे लिए लायी करती थी। इस लंच बॉक्स के साथ अंजू की भी यादें ताज़ी हो गयी थी।
मैं यह सारी चीजें सोच ही रहा था तभी उसने बोला, “अंकल , जरा अपना फोन देना। मुझे घर पर बात करना है । मां परेशान हो रही होगी। आज कुछ ज्यादा ही देर हो गई है ।”
मैंने बिना कुछ बोले ही अपना फोन निकालकर उसे दे दिया । उसने नंबर डायल किया।
” हेल्लो ! मां , मैं रोहित बोल रहा हूं । बस मैं थोड़ी देर में ही पहुंचने वाला हूं । आज स्कूल में कुछ ज्यादा ही देर तक रिहर्सल हो गयी जिसके कारण कुछ ज्यादा ही समय लग गयी।” यह बोलकर उसने फोन डिस्कनेक्ट किया और फिर खाने लगा ।
“तुम्हारा नाम रोहित है ” मैंने आश्चर्य कर पूछा ।
“हां ! क्यों ? ” वह मुझसे पूछा ।
” मेरा नाम भी रोहित है ” मैंने कहा।
” वाउ (wow!) नाइस । ” उसने खुशी इजहार करते हुए बोला ।
हम दोनों के नाम और पसंद मिल रहे थे ।वह बच्चा मेरी ओर देख रहा था और मैं उसकी ओर। अचानक वह सामने देखा और बोला,”अंकल ! मेरा घर आ गया “
मैंने गाड़ी रोकी ।वह गाड़ी से तेजी में उतरा और मुझे बाय (Bye) अंकल बोल कर अपने घर की तरफ चल पड़ा।
मैं भी गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ गया। 2 मिनट बाद मेरे मोबाइल पर एक नए नम्बर से कॉल आया। शायद वो नंबर थी जो उस बच्चे ने डायल किया था। मैंने फोन रिसीव किया ।
“हेल्लो अंकल , मैं रोहित बोल रहा हूं।”
” हां, बोलो।”
” अंकल मेरा लंचबॉक्स आपके गाड़ी में ही छूट गया है। अगर आप दूर नहीं निकले हो तो क्या आप वापस आकर मेरे लंचबॉक्स दे सकते हो ?”
मुझे उसकी बात सुनकर थोड़ा गुस्सा आया ।अगर वो सामने से बोलता तो उसे एक- दो थप्पड़ भी जड़ देता। उसकी बात सुनकर चुप रहा ।
“यार, एक लंच बॉक्स वापस करने के लिए 1 किलोमीटर पीछे जाना होगा ।” मैंने सोचा ।
मैं मना ही करने वाला था, तभी फोन से एक महिला की आवाज सुनाई पड़ी शायद वह रोहित की मां होगी । वह रोहित से बोल रही थी ,”रोहित रहने दो । अंकल को क्यों परेशान कर रहे हो । बेचारे बिजी होंगे , कल दूसरे लंचबॉक्स ख़रीद लेना । “
उस महिला की धीमी आवाज़ फोन से साफ-साफ सुनाई पड़ रही थी। उसकी बात सुनकर मेरे मुंह से अचानक यह शब्द निकल पड़ा, “ठीक है। रोहित मैं वही पर मिलता हूँ । तुम उसी जगह पर आओ ।”
” अंकल मैं मम्मी को भेज रहा हूँ। आप उन्हीं को दे देना।” यह बोलकर रोहित फोन को डिस्कनेक्ट कर दिया ।
2 मिनट बाद मैं उसी जगह पर पहुंचा जहाँ उसे ड्राप किया था , गाड़ी रोक कर उसका इंतजार कर रहा था तभी रोहित के नंबर से पुनः कॉल आया ।
“हेल्लो!” मैंने बोला।
” हेलो, आप ब्लैक गाड़ी में हो क्या ?” यह आवाज मेरी सांसे रोक दी । यह आवाज मुझे जानी पहचानी-सी लग रही थी । जैसे इस आवाज से मेरा कोई गहरा नाता हो। जैसे आवाज को मैं कई बार सुन चुका हूं । मानो इस आवाज से मेरा कोई पुराना नाता हो।
“हां …मैं…उसी ब्लैक ….गाड़ी में हूं।” मैंने लड़खड़ाती ज़ुबान से बोला।
कुछ सेकंड बाद मेरी गाड़ी के नजदीक एक महिला आ खड़ी हुई । नीली टॉप, ब्लू प्लाजो के साथ ऊपर से एक आसमानी कलर का श्रग पहन रखी थी।
बालों का लट हल्की हवा से गाल तक आकर झूम रही थी । स्ट्रीट लाइट के प्रकाश उसके गुलाबी होठों पर पड़ रहे थे । जिससे वह काफी खूबसूरत नजर आ रही थी।
उसे देखकर मेरी आंखें खुली की खुली रह गई। मुझे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं कोई स्वप्न देख रहा हूं । मेरी सांसे थम चुकी थी। मैं उससे क्या बोलूं? कैसे बोलूं मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था।
वह औरत कोई और नहीं बल्कि मेरी अंजू थी। पता नहीं उसे मेरी अंजू बोलना सही है या गलत । मगर उस वक्त मुझे ऐसा ही लगा जैसे मेरी अंजू वर्षो बाद मुझे ढूंढता हुआ आज मेरे पास आ गयी है और मैं भी उससे मिल कर फुले ना समा रहा था।
मैं उसे 16 वर्षों बाद देख रहा था मगर वह आज भी उतनी ही खूबसूरत दिख रही थी जितनी की पहले दिखती थी । हां ! अब वह थोड़ी मोटी जरूर हो गई थी ।
“रो…हि…त । तुम ?” वह आश्चर्य होकर बोली।
“हाँ ” मैंने सर हिला कर बोला। चलो कम से कम उसे मेरा चेहरा याद था।
“तुम यहाँ ? कैसे हो ?”
“ठीक हूँ। तुम कैसी हो ?”
“हाँ, ठीक ही हूँ।” वह थोड़ी धीमी स्वर में बोली ।
“वो..बच्चा..” मैं वाक्य को भी पूरा नही कर पाया था कि वह बीच मे ही बोल दी।
“वो मेरा बेटा है। रोहित।”
मैं उसके जवाब सुनकर कुछ नहीं बोला। हम दोनों कई वर्षों बाद मिले थे। कुछ समझ नहीं आ रही थी । क्या बात करूँ ? क्योंकि बात करने के लिए तो बहुत सारे मे प्रश्न थे । और समझ भी नही आ रही थी की पहले क्या पूंछू।
दिल मे पहले से ही सैंकड़ो बेउत्तर सवाल भरे पड़े थे मगर अब अब दो सवाल और बढ़ गया था । पहला वह अपने बेटे का नाम रोहित ही क्यों रखी ? और दूसरा क्या उसके बेटे रोहित को वास्तव में पराठे के साथ हरी परवल की भुंजिया पसंद है।
कुछ मिनटों तक तो हम दोनों एक दूसरे को यूं ही देखते रहे बिन पलके झुकाए । इन आंखों में फिर से पहले जैसे ही शरारतें नज़र आ रही थी।
कुछ पल के लिए हम फिर से अपने गांव के खेत-खलिहान,वो प्राइमरी स्कूल , हाई स्कूल की दीवारें, गांव की सकरी गलियां, और साइकिल की पुरानी बेडरॉक(Bedrock) के टायरों के बीच जा पहुंचा और फिर से उस जिंदगी को जीने लगा पर अंजू के फोन की रिंग ने एक झटके में ही हमें उन यादों से बाहर खींच फिर मुंबई की सड़कों पर ला फेंका। अंजू के मोबाइल पर उसके हसबैंड (Husband) का फोन आ रहा था। उसने कॉल रिसीव किया और कुछ सेकंड तक बात करने के बाद लंच बॉक्स लेकर वापस अपने घर की तरफ जाने लगी। मैं उसे देखता रहा और वह भी कभी -कभी पीछे मुड़ कर देखती और अपने घर की तरफ जाती रही और एक मोड़ेदार गलियों से मुड़ कर फिर एक बार वैसे ही गुम हो गयी जैसे आज से 16 वर्ष पहले गुम हो गयी थी।
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Mast hai story aapki
Aapki story bahut achi hai
Very nice
बहुत ही शानदार कहानी