The Call Centre| दी कॉल सेंटर | लव स्टोरी हिंदी में

Author- Avinash Kumar

आसमां छूने का स्वप्न कौन नही देखता ? अपने जीवन में आगे बढ़ना कौन नही चाहता हैं ? सभी अपने लाइफ में लगातार सफलता के सीढियाँ चढ़ना चाहता है. हर कोई पैसे के पीछे भागता हैं .मुझे भी सभी लोगों के तरह पैसे के पीछे भागने की आदत थी , मुझे भी आसंमा छूने के ललक थी . मैं भी खूब तरक्क़ी करना चाहता था .

मेरा सारा बचपन गरीबी में कट गया था . जब मेरी उम्र खिलौनों के साथ खेलने की थी तब मैं एक खिलौने की दुकान पर काम किया करता था .

मन तो करता था इन खिलौनों के साथ जी भर के खेलूं लेकिन मज़बूरी इतनी थी कि इन खिलौनों को सिर्फ अमीरजादे के बच्चों को बेचने की ही अनुमति थी .

हर महीने के 8 तारीख को सैलेरी 750 रूपये मिलती थी . इन आधे पैसे से मां की दवाई और आधे पैसे से पुरे महीने के लिए राशन खरीदना पड़ता था .अगर किसी महीने 1-2 दिन छूटी हो जाती थी तो सैलेरी से महीने के खर्च भी नही उठा पाता था . इन हालातों से लड़ते –लड़ते बचपन कब बीत गया कुछ पता ही नही चला . परन्तु इन हालातों के बीच भी मैंने किसी तरह से जैसे –तैसे कर के 12वी तक पढाई जारी रखा.

 

12वी पास करने के बाद मैं अपने छोटे शहर से निकल कर दिल्ली जैसे बड़े महानगर में पहुँच गया था . यहाँ आने के बाद कई सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा परन्तु इन परेशानियों के बाद मुझे एक कॉल सेंटर में नौकरी मिल गया .

मैं यहाँ हर नई चीजों से अनजान था और हर बातों से अनजान होकर मैं अपनी काम पर ध्यान देने लगा . मैं आगे की लाइफ बचपन जैसी तंगी हालतों में नहीं बिताना चाहता था . इसलिए मैं अपनी काम को पूरी शिद्दत और ईमानदारी से कर रहा था .

मुझे उस कॉल सेंटर में नौकरी ज्वाइन किया हुआ लगभग 10 महीने हो चुकें थे परन्तु इतने दिनों में ऑफिस कभी देर से नही पहुंचा था . परन्तु एक दिन मैं ऑफिस थोड़ी देर से पहुंचा . मेरे साथ काम करने वाले सभी लोग अपने – अपने कामों में व्यस्त थे इसी बीच मुझे इन लोगों के बीच में एक नये चेहरे पर मेरी नजर टिकी.

भूरे बाल , आँखों में काजल , गुलाबी होठ अपने ललाट पर एक छोटी से प्यारी बिंदी लगायी हुई थी . बायीं हाथ से अपने चेहरे पर आने वाले बालों को हटा रही थी . मगर फिर भी उसके बालों के लट उसके चेहरे पर आ रही थी . उसे देखने के बाद मुझे अपने आँखों को दूसरी ओर करने का दिल ही नही किया . ऐसा लग रहा था आज पूरी दुनियां थम जाती और हर लोग और वस्तु इसी अवस्था में रहता जैसे अभी मेरी नजरे उसके चेहरे पर थी . अगर स्वर्ग में परियां सच में रहती होगी तो शायद वो भी इसी जैसी ही रहती होगी .

मैं अपनी स्थान पर जाकर बैठ गया और उससे अपने मन को जबरदस्ती वहां से हटा कर कंप्यूटर स्क्रीन पर टिकाया . इसके बाद कामों में व्यस्त हो गया . वैसे मुझे उन दिनों लड़कियों से कुछ ज्यादा मतलब नही रहती थी . जिसके कारण लड़कियों से ज्यादा सबंध भी नही रह पाता था .

 

जब मैं एक कॉल पर व्यस्त था तब वह भूरी बाल वाली लड़की मेरे कन्धों को छू कर कुछ इशारा की . मैं उसे मुड़कर देखा, इस बार उसकी ऑंखें मेरी आँखों से एक पल के लिए लड़ा मगर मैं फौरन नजरे दूसरी ओर कर लिया .

लेकिन तब मैं उसकी प्रॉब्लम को समझ गया था . शायद ! उसके हेडफ़ोन में कुछ दिक्कत आ गयी थी . मैं अपने हाथ को दिखा कर उसे कुछ सेकंड रुकने का संकेत दिया और मैं पुनः कॉल पर ग्राहक से बात करने लगा .

“ क्या हुआ ? “ ग्राहक के कॉल डिस्कनेक्ट होने के बाद मैंने उससे पूछा .

“ हेडफ़ोन में आवाज नही आ रही हैं . शायद कुछ प्रॉब्लम आ गयी हैं .” उसने बोली .

वह चाहती तो इसकी सुचना कॉल सेंटर के IT विभाग को दे सकती थी मगर उसने IT के बजाय मुझे बतायी . मुझे भी उससे बात करने का एक अच्छा मौका मिल चूका था और मैं इसे IT विभाग को बता कर इस मौके को खोना नही चाहता था .

 

इसलिए मैं अपनी हेडफ़ोन निकाल कर अपने सिस्टम के CPU पर रख दिया और उसके करीब पहुँच गया . उसने अपने हेडफोन निकाल कर मेरी हाथ में दिया . उसी समय उसकी कोमल उँगलियाँ मेरी उँगलियाँ को स्पर्स किया . उसकी उँगलियाँ के स्पर्श से ही मेरी पुरे शरीर में बिजली –सी कौंध गया था .

जब उसके हेडफ़ोन के जैक को निकाल कर वापस इन्सर्ट किया तब उसकी आवाज की प्रॉब्लम दूर हो गयी

 

“अब आवाज आ रही हैं .” मैंने हेडफ़ोन देते हुए बोला .

“ थैंक्स ” वह मुस्कुराती हुई बोली .

मैं भी उसके मुस्कान के साथ थोड़ी अपनी मुस्कान मिला दिया .और वापस हम – दोनों कामों में व्यस्त हो गयें.

लंच के समय हम –दोनों ने एक ही साथ कैफेटेरिया गया और एक ही टेबल पर बैठ कर नाश्ता भी किया . इस बीच हम –दोनों के बीच काफी सारी बातें हुई . उसने अपना नाम दीपिका बतायी और वह दिल्ली के ही रहने वाली थी .

 

उस दिन से हम दोनों के बीच काफी अच्छी दोस्ती हो गयी और कॉल सेंटर के अलावे हम – दोनों अब फ़ोन से भी बाते करने लगे थे .यानि हमारी रिश्ते काफी तेजी से बढ़ रहे थे . मात्र 20 दिन के अंदर ही हम –दोनों वीकेंड पर बाहर घुमने लगे थे .

एक दिन मैं और दीपिका दोनों वीकेंड पर घुमने पास के ही एक तारा मंडल में गया हुआ था . जब तारा मंडल में भुगोलिये अवस्था वाली शो शुरू हुआ तो हम लोगों के पास एक काल्पनिक आकाशगंगा बन गया . जिसमे करोडो तारा और लाखों ग्रह थे . मैं इन सब चीजों को देख कर काफी रोमान्चित हो रहा था . मेरे बगल में ही दीपिका थी . उसकी बायीं हाथो के उँगलियाँ मेरे दायी हाथ के उँगलियों से लिपटा हुआ था . ऐसा लग रहा था जैसे दोनों सदियों तक ऐसे ही साथ रहने वाले हैं .

इन उँगलियों के तरह मैं भी कही ख्यालों में खो गया था . इस काल्पनिक आकाश गंगा में मैं और दीपिका कहीं वास्तविक हमसफर बन कर पूरी आकाश गंगा में सफ़र करने लगे. मेरा यह भ्रम उस वक्त टुटा जब शो खत्म हुआ और लोग वहां से बाहर निकलने लगे .

तारा मंडल के मुख्य दरबाजे के पास फूलों की एक दुकान थी , जिसमें गुलाब के अलावे कई प्रकार के फूल बिक रहे थे . मैं उस दुकान से 60 रूपये देकर एक गुलाब का फुल खरीद लिया . और एक अच्छे मौके देख कर दीपिका को प्रपोज कर दिया . दीपिका के साथ मैं पिछले एक महीने से अधिक दिनों से रहा रहा था . परन्तु आज उसे प्रपोज करते समय मेरी धडकने किसी सुपरफ़ास्ट ट्रेन कि रफ्तार से कम नही धडक रही थी . मेरी धडकने को बिना मेरे सीने पर सर रखें ही दूर से उसकी आवाज साफ़ –साफ़ सुना जा सकता था .

“ आई लव यू टू ..”

उसके होंठों से ये चंद शब्द सुनकर मेरे कानों को ऐसे तृप्ति महसूस हुई जैसे सुखी रेत पर बारिश के बुँदे की बौछौर हुआ हो .

 

उस दिन मैं काफी खुश था . उसके बाद हमारी लाइफ में हर तरफ खुशिया ही खुशियाँ थी . अगले महीने ही मेरा प्रमोशन हो गया और कॉल रिसीवर से सीधा फ्लोर मैनेजर बना दिया गया . जिसके कारण मेरी सैलेरी भी दुगनी कर दी गयी . अब जिन्दगी मजे में कट रही थी . कुछ पैसे मां को भेजने के बाद भी अच्छे खासे पैसे की बचत कर लेता था एवं इसके अलावे दीपिका के साथ हर वीकेंड में कहीं ना कही भी लिया करता था .

मैं और दीपिका एक साथ कई रातें होटल में भी बिताये थे . एक रात हम –दोनों दिल्ली के बूम लाइट नामक होटल में थे . वैसे अधिकतर रातें हम दोनों की इसी होटल में बीती थी . उस रात मैंने दीपिका को शादी के लिए बोला तो उसने यह कह कर मना कर दी , “ मैं अभी इसके बारे में नही सोची हूँ . लेकिन जल्द ही बता दूंगी सोच कर”

“ ओके , कोई बात नही . मुझे भी शादी की कोई जल्दीबाजी नही हैं .” उसके जबाब के बदलने में मैंने बोला .

दीपिका अब मेरी लाइफ की एक अभिन्न अंग बन चुकी थी . उसके बिना जीने की कल्पना करना भीमेरे लिए मौत–सा हो गया था .

एक दिन मैं ऑफिस के लिए निकलने ही वाला था तभी गाँव से छोटे चाचा का फ़ोन आया और उसने बताया ” तुम्हारी मां की तबियत काफ़ी खराब हैं . उनके किडनी में इन्फेक्शन है. मां को जल्द से जल्द आपरेशन कराने होंगे . वरना उनकी जान भी जा सकती हैं .”

यह सुनकर मैं परेशान हो गया . मैंने इतने दिनों में कुछ पैसे के अलावे कुछ दोस्त भी कमा ( बना ) रखे थे . माँ की इलाज के लिए मैं अपने दोस्तों और कम्पनी से एडवांस लेने के बाद पुरे एक लाख अठारह हजार रूपये का इंतजाम कर लिया था .मां के बीमारी के बारे में जब दीपिका को मालूम पड़ी तो वह भी मदद के लिए 20 रु. लेकर मेरे पास आ गयी . मां के आपरेशन के लिए इतने पैसे पर्याप्त थे .

रात हो गयी थी इसलिए मैंने दीपिका को अपने कमरे में ही रुकने के लिए बोल दिया चुकी वह जहाँ रहती थी , मेरे यहाँ यहां से काफी दूर पड़ती थी . वह आज पहली बार मेरे कमरे में नही रुक रही थी .इसके पहले भी वह कई रातें यहाँ रुक चुकी थी .

इस दिन भी वह रुकने के लिए हामी भर दी . शायद उसे मालूम थी कि आज मैं कुछ ज्यादा ही परेशान हूँ और वो इस हालात में मुझे अकेला नही छोड़ना चाहती थी .

करीब रात के 11 बजे तक दोनों खाना खा कर सो गये थे .

अगले दिन जब मेरी आँखे खुली तो मेरी पैरो तले की जमीन खिसक गयी . पैसे वाली बैग और दीपिका दोनों गायब थे . मैं कमरे , बाथरूम हर जगह उसे ढूंढा मगर वह कहीं दिखी नहीं .

 

मै डर गया . कही कुछ गड़बड़ ना हो गया ! मैंने दीपिका के नम्बर पर कॉल लगाया .उसकी नम्बर ऑफ आ रही थी . मैं थक –हार कर उसके फ्लैट ( घर ) गया . मैं उसके घर पिछले हफ्ते ही गया था जिसके कारण उसके घर का एड्रेस मुझे मालूम थी .वहां पहुचने पर उसके घर में ताला लटका देख मैं इतना समझ गया था कि मेरे साथ कुछ जरुर गड़बड़ हुआ हैं .

उस फ़्लैट के मकान मलिक ने बताया ,“वह अपनी पति के साथ सुबह 5 बजे ही कहीं चली गयी है . वह अचानक कल ही मुझे बतायी थी कि उसे जॉब में अलग ट्रांसफर किया गया है और उसे जल्द वहां रिपोटिंग करना हैं . जिसके कारण इस कमरे को खाली कर रही हूँ .”

“उसके पति भी था ?” मैंने आश्चर्य हो कर पूछा .

“ हाँ , उसके पति बगल के ही एक कपड़े की दुकान में काम किया करता था .”

फ्लैट के मलिक के बात सुनकर मैं पूरी तरह समझ गया था . वह मुझे धोखा दी है ,मुझे बेवकूफ बनायी हैं और मेरे पैसे लेकर कहीं वह दूर भाग गयी है .

उस घटना से मैं काफी टूट गया था . फिर भी पूरी दिन उसे शहर में ढूंढ़ता रहा मगर उसकी कोई अता-पता नही चला . शाम में चाचा का फोन पुनः आया और पैसे के बारे में पूछा .

मैंने उनकी बात को सुनकर चुप रहा और रोने लगा .

“ बेटा , तुम सही तो हो ना !” चाचा ने कहा .

“हाँ “

“ बेटे , सुबह तक पैसे लेकर चले आना वरना फिर मां को बचा पाना मुश्किल हो जायेगा . ऐसा डाक्टर ने बताया हैं .” चाचा जी ने थोडा धीमें स्वर में कहा.

“ मैं पैसे लेकर कल जरुर आयूंगा . आप परेशान मत होईये .” मैंने कॉल डिस्कनेक्ट होने से पहले बोला .

मुझे सुबह तक पैसे के जुगाड़ करना था . मेरे पास कोई उपाय नही बच रही थी फिर अचानक मेरे दिमाग में एक आइडिया आया . और मैं अपने मकान मालिक के घर में ही चोरी करने चला गया . मैं जानता था यह गलत हैं . मेरे दिमाग ने इसे करने से कई बार रोकने की कोशिश किया मगर मैं अपनी आत्मा को मारकर घर के अंदर चला गया .

 

रात के करीब दो बज रहे थे . मैं घर के अंदर चोरी करने के लिए जैसे ही गया सेक्रेट्री वालों ने मुझे पकड लिया और मझे पुलिस के हवाले कर दिया गया . घर जाने के लिए सुबह में मेरी गाड़ी थी . परन्तु मैं जेल चला गया .

उधर मेरी मां आपरेशन के लिए तड़पती रही और चाचा अस्पताल के बाहर मेरा इंतजार करते रहें. डॉक्टर बार-बार चाचा को पैसे के लिए बोलता रहा . मगर वहां ना तो पैसा पहुँच पाया और नहीं मैं पंहुचा .

अंततः पैसे के आभाव में आपरेशन नही हुआ और मां की मृत्यु हो गयी .चाचा श्मशान घाट तक मेरा इन्तजार करते रहे और बार –बार मेरे मोबाइल नम्बर को रीडायल करते रहे. मगर मैं वहां भी नही पहुँच पाया .

 

इस तरह से मेरा सब कुछ बर्बाद हो गया . और मैं कई वर्षो तक जेल में ही सड़ते रहा . बस मेरी गलती सिर्फ इतनी थी कि मैंने किसी से सच्च प्यार किया था ,किसी पर खुद से ज्यादा विश्वास किया था.

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