Beti Ya Bojh । बेटी या बोझ। सामाजिक कहानियां

Author - Avinash Kumar

गांव के बाहर हम अपने दोस्तों के साथ ठंड से बचने के लिए सूखी हुई लकड़ियों को बिन कर जला रहे थे । पूस की महीना होने के कारण कनकनी भी काफी बढ़ चुका था । यदि हाथ गर्म करते तो ठंड से पैर सुन हो जा रहे थे । ठंड इतनी की अगर कोई गलती से एक दूसरे को भी छू ले तो पूरे शरीर में बिजली-कौंध जाती थी ।लेकिन इस ठंड में भी बुधन काका हाथ में टोकरी और एक छोटी – सी बोरी लेकर खेत की तरफ निकल दिए थे ।

बुधन काका के कुल 4 बेटियां थी जिनमें से दो की शादी हो चुकी थी और दो के विवाह होने अभी बाकी थे । बड़ी बेटी की विवाह हुई थी तब काका पूरे गांव वालों को विवाह में शामिल किये थें और पूरी धूमधाम से विवाह हुई थी ।

बड़ी बेटी के विवाह के समय बुधनी काकी भी जीवित थी । बुधनी काकी ने बड़ी बेटी के लिए बहुत सारी गहना पहले से ही बनवा कर रखी हुई थी । जब बड़ी बेटी की विदाई हुई तब काकी ने एक-एक करके सभी गहने देकर विदा की थी।

बुधन काका कोई जमीदार नहीं थे परंतु उनके पास 2- 4 बीघा खेती लायक जमीन थी । जिस में अनाज उपजा कर अपने परिवार की हर जरूरत को पूरा करने में समर्थ थे ।

बड़ी बेटी के शादी के कुछ सालों बाद वह मंझली बेटी के लिए भी लड़के ढूंढने लगे थे , तब बुधन काका की दिली इच्छा थी कि इस बेटी की शादी किसी सरकारी नौकरी वाले लड़के से ही करूँ ।

काका कई लोगों से लड़कों की जानकारियां ले रखे थे । इस जानकारी में से ही एक बगल के गांव के सरजु मास्टर साहब का एक बेटे था । जिसका नौकरी इस बार रेलवे में लगी थी । काका का बहुत ही मन हुआ की अपनी मंझली बेटी की शादी इस घर में करें ।

उसके बाद उन्होंने शादी के लिए सरजु मास्टर से मुलाकात किया ।

बड़ी – बड़ी आंखें, हंसमुख चेहरा के साथ खड़ी नाक के अलावे उन्हें सेवा करने वाली बहू की तलाश थी । बुद्धन काका के मंझली बेटी को देखने के बाद मास्टर साहब का तलाश इन पर खत्म हो गई थी ।

जब मास्टर साहब ने अपने बेटे की कीमत यानी दहेज 20 लाख रु बताएं तो बुधन काका के पैर तले जमीन खिसक गए ।
काका सरकारी नौकरी वाले लड़के खोजने से पहले यह भूल चुके थे कि सरकारी नौकरी वाले लड़के की कीमत बहुत ज्यादा होती है ।

फिर भी काका ने हिम्मत दिखाते हुए कुछ दहेज के पैसे ऊपर नीचे करने को कहा लेकिन मास्टर साहब ने दहेज की रकम कम करने से साफ मना कर दिया ।

बुधन काका का दिल बैठ गया । लेकिन काका ने हार नहीं मानी और अपने 4 बीघे जमीन में से दो बीघा जमीन अपनी मंझली बेटी की शादी के लिए कुर्बान करने को तैयार हो गए ।

आखिर काका ने भी ठान ही लिया था कि अगर मंझली बेटी की शादी करूंगा तो किसी सरकारी नौकरी वाले लड़के से ही।

शादी पक्की हो गई थी और दोनों तरफ से शादियों की तैयारी चल रही थी , काका ने दहेज के लिए अपनी 2 बीघा जमीन बेच दिये थें ।

जमीन बेचने का तो बेच दिया- लेकिन जमीन बिकने का टिस उनके दिल में रह गए । आखिर वह चिंतित भी क्यों नहीं होते अभी दो बेटियों की शादी भी तो करनी बाकी थी ।
शादी तो सुखी संपन्न हुआ लेकिन काका का चिंता दिन पर दिन और भी बढ़ने लगी क्योंकि अभी भी दो बेटीयों की शादी जो करना था ।

ऊपर से गांव वाले अलग ताना देते थे , ” एक बेटी की शादी सभी जमीन जायदाद बेच कर कर दिया तो अब इन दोनों बेटियों की शादी कैसे करेगा ? “

इसी तरह के कई ताने सुनने को मिलता था ।

सिर्फ आज ही नहीं इतनी सुबह बुधन काका को खेत में जाते हुए देखा था बल्कि वह प्रत्येक दिन इसी तरह से जी जान लगाकर खेती करते थे ताकि इन दोनों बेटियों की शादी किसी अच्छे घर में करा सके ।

लकड़िया जलकर खिल रही थी फिर भी कनकनी सताई ही जा रही थी और ये ठंढ भी कम होने का नाम नही ले रहा था।

आज बुद्धन काका को इतनी ठंड में खेत में जाते हुए देख कर उन्हें जलती आग के पास बैठने के लिए बुलाया लेकिन उन्होंने कहा, “बेटा ! हम लोगों को ठंड कहां बुझाता है । जिसके सर पर बेटी का बोझ हो उसे इतना आराम से बैठकर आग सेकने की फुर्सत कहाँ है ! “

बुद्धन काका का बात सुनकर मैं मौन हो गया और सोच में भी पड़ गया | क्या वास्तव में बेटियां बोझ होती है ? या सरजू मास्टर साहब जैसे लोग दहेज लेकर बेटियों को बोझ बना देते हैं ।
खैर ! समाज की जिम्मेवारी सरजू मास्टर साहब जैसे लोगों के पास रहा तो बेटियां यूं ही बोझ बनती ही रहेगी।

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