मैंने लोगों को कहते यह अक्सर सुना है कि सच्चा प्यार हमेशा क्लास 10वी में ही होती है। उस उम्र के प्यार में एक दूसरे के लिए समर्पण, त्याग और फीलिंग (एहसास) बिल्कुल वास्तविक होती है। वे दोनों एक दूसरे को निस्वार्थ प्यार करते है।
जहां उस वक्त आप जितनी तेजी से बड़े हो रहे होते हैं उतना ही तेजी से आपकी जिमेदारियों ( Responsibility ) की दायरे भी बड़े हो रहे होते है।
जब आप स्कूल के लिए घर से निकलते हैं तब उस वक्त आपके साथ आपके समाज , फैमली, रिश्तेदार और पता नही क्या -क्या के डर आपके यूनिफार्म के साथ ही आपके स्कूल में प्रवेश करता है।
अगर उस वक्त आप किसी तरह के कोई उच्च-नीच हरक़त में सामिल होते हैं तो उसकी सजा आप के साथ आपके फैमली को भी भुगतना पड़ सकता हैं। मगर इतने पाबंदियों और इतने डर के बीच भी किसी को प्यार करना सच में वह एक अलग तरह के एहसास होती है।
उस वक्त आप चाह कर भी उसके बिना नही रह पाते हैं। हर वक्त, हर जगह बस उसी का इंतिजार रहता है।
जब आप स्कूल में होते हैं तो उनसे ही नजरें चुराते हैं और एक पल के लिए भी उन्हें अपने पास ना देखकर बेचैन हो जाते हैं। और जब कभी अचानक से उनसे नजरे भी मिलती है तो हम शर्मा कर नजरें झुका लेते हैं और अपने दिल की कोई बात उन्हें नहीं कह पाते हैं।
जो कभी स्कूल के लंच टाइम के बाद का समय नहीं कट पाता था अब वो भी कम पड़ने लगती है। जैसे लगने लगता है काश स्कूल का टाइम कुछ और अधिक होता ताकि आज हम उनके साथ कुछ और समय तक साथ रह पाते ।
स्कूल से वापस घर जाने के बाद फिर अगले दिन का बेसब्री से इंतेजार करना और खुद से वादा करना कि मैं अगले दिन उन्हें अपने हाल-ए-दिल बता दूंगी। मगर लंबे इंतजार के बाद भी हमें गांव-घर और मान-सम्मान उन्हें कुछ बोलने का इजाज़त नही देती है। क्योंकि वह उम्र और समय ही कुछ ऐसा होता है।
पता नहीं उस वक्त यह उम्र छोटी सी लगने लगती है और इस छोटी उम्र में उन्हें कैसे कहें आपसे मुझे बहुत प्यार है। और मन के इन्ही उथल-पुथल ख्यालों के बीच एग्जाम का दिन भी नजदीक आ जाता है। मगर फिर भी इस पूरे मन मस्तिक में उन्हीं के चेहरे छपा रहता है और फिर इन स्थिति में कॉपी-किताब के साथ 4-5 घण्टे होना ना होना एक समान हो जाता है।
जिंदगी के हर खुशी उन्ही के साथ जुड़ जाती है। आप अपने घर में सब के साथ होने के बाद भी आप उन्ही के ख्यालों में डूबे रहते हैं।
उस वक्त प्यार होने के बाद जैसे आप बिल्कुल खुद को भुल जाते हो। हर पल बस।उन्ही के बारे में सोचते रहते हो।
अगर आप भगवान के पास भी खड़े हो तो उन्ही के खुशी और सफलता के लिए दुआ करते रहते हो।
क्या सच में प्यार ऐसा ही होता है?…. जिसमें लोग खुद को ही भूल जाते हैं…।
अगर सच कहूँ तो यक़ीनन प्यार ऐसा ही होता है। सिर्फ उनके लिए जीना , उनके लिए ही मरना , उनके बारे में सोचना और उन्ही का इंतेजार करना और उनकी हर खुशी में अपनी खुशी ढूढ़ना। सच में प्यार ऐसा ही होता है….
मैं आपको एक ऐसी ही सच्चे प्यार की कहानी सुनाती हूँ। जिसमें बहुत प्यार , दिल की तड़प और लंबे इंतेजार की कहानी।
क्लास 10वी में मेरी एक दोस्त थी वंशिका । वह पढ़ने लिखने में अच्छी तो थी ही वह अपने स्वाभव और सुंदरता के कारण भी लोगों के दिल में बस जाती थी। वंशिका हमेशा अपनी पढ़ाई में ही मग्न रहने वाली लड़की थी। इसके अलावा वह इधर-उधर की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देती थी।
फिर अचानक से उसे अपने क्लास के एक लड़के केशव से कुछ जुड़ाव -सा महसूस होने लगा। और वह लड़का भी वंशिका के मुरीद होने लगा। जब भी क्लास में कुछ पल के लिए भी टाइम मिलता , तब दोनो के नजरे एक दूसरे पर जाकर टिक जाती थी।और एक-दूसरे को देख कर हल्की मुस्कान दोनो के होठो पर फुट पड़ती थी।
एक दिन वंशिका स्कूल से वापस अपने घर आ रही थी तब केशव उसे रोका , शायद वह केशव वंशिका से कुछ कहना चाह रहा था। मगर वह कुछ नही बोल पाया सिर्फ उसने वंशिका के हाथों में कागज के एक छोटी सी टुकड़ा देकर डगमगाती कदमों से वह तेजी में वहां से निकल गया।
लोगों के लिए वह भले ही मात्र एक कागज के टुकड़े होंगे। मगर वंशिका के लिए वह किसी अमूल्य वस्तु से कम नही था। वह घर आकर अपने कमरे की दरबाजे बन्द कर उसे पढ़ने लगी। उस कागज के टुकड़े छूते ही वंशिका के धड़कन जोरो से धड़कने लगा, उस वक्त ऐसा लग रहा था मानो उसके कलेजा बाहर को आ जाएगी।
उस कागज के टुकड़े में लिखीं शब्दों को पढ़ कर उसके आंखों में पानी के कुछ बूंदे उमड़ से पड़े। शायद वह जोर-जोर से यह कह रही थी , केशव इस बात को कहने में इतना समय क्यों ले लिया। कब से वह इस बात जानने को बेताव थी, यही जानने के लिए तो सुबह शाम उसके मन को पढ़ने की कोशिश कर रही थी।
केशव उस कागज के छोटे से टुकड़े में अपनी दिल के हर बात कह दिया था। उस कागज के मामूली टुकड़े में अपने अथाह प्यार को उड़ेल दिया था।
और उसने लिखा था, ” वंशिका तुम मुझे कबूल करो या नही, मगर मेरा दिल तुम्हे जन्मों-जन्म तक के लिए कबूल कर लिया। अब तुम इस दिल को बेवकूफ समझो या मेरा पागलपन। लेकिन यह सच है कि मैं जिंदगी का हर सांस तेरे साथ लेना चाहता हूँ। अगर तुम भी मुझसे प्यार करती हो तब इस प्रेम पत्र का जबाब जरूर देना, मैं कल फिर इसी जगह इंतेज़ार करूँगा।”
केशव का यह letter पढ़ कर वंशिका पूरी रात सो नही पायी थी। बस उसी के सुनहरी यादों में खोयी रही।
अगले दिन वंशिका अपनी हिंदी लिखना (Writing Copy) कॉपी से बीच का पेज निकाल कर अपनी गुलाबी कलर की पेन (कलम) से एक दिल का चित्र बना कर उसमे अपनी प्यार भरी जबाब लिख कर केशव को दे दी थी।
अब वे दोनो एक दूसरे को प्यार करने लगे थे। हमेशा दोनो साथ-साथ स्कूल में देखने को मिल जाते थे। दोनो को देख कर ऐसा लगता था जैसे इन दोनों को भगवान एक-दूसरे के लिए ही बनाये है।
यही कारण थी कि दोनो के जिंदगी अच्छी चल रही थी और बोर्ड परीक्षा की तैयारी भी ठीक से हो रहा था। मगर कहते है ना ! इंसान को दुसरो की खुशी नही देखी जाती है । वैसा ही कुछ इन दोनो के बीच हो गया। इन दोनो के प्यार पर किसी का नज़र-सा लग गया।
केशव को वंशिका के एक-एक शब्द में प्यार दिखता था आज उन्हें प्यार शब्द ही गलत लगने लगा था। जो कभी अपनी बड़ी-बड़ी गलती के लिए भी खुद को कसूरवार नही मानते थे । वो आज वंशिका के हर छोटी-छोटी गलती को भी बड़ी-बड़ी गलती बनाने लगे थे। और ऐसे ही दोनो का प्यार टूटते चला गया। वे आगे बढ़ रहें थे मगर उनकी प्यार हाई स्कूल के चारदीवारी में ही छूटते जा रहे थे।
एग्जाम खत्म हुआ और दोनो अपने-अपने रास्ते चल पड़े। केशव एग्रीकल्चर से B.Tech करने के लिए एक सरकारी कॉलेज में एडमिशन ले लिया जबकि वंशिका आज भी अपने गांव में ही रह रही है और हर दिन, हर शाम अपने उस हाई स्कूल के एक चक्कर लगा आती है । जहां कभी केशव से मिला करती थी।
© स्नेहा राज
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