कोरा कागज़ । kora Kagaz । लव स्टोरी हिंदी में

Author - Avinash Kumar

इस 4 वर्षीय इंजीनियरिंग कोर्स ने हमें बहुत कुछ दिया है। बहुत सारा पैसा , खूबसूरत पत्नी, हाई लेवल के दोस्त, इज्जत और अपने रिश्तेदारों में हमेशा चर्चा में बने रहने के मौके। शायद जिंदगी जीने के लिए किसी भी इंसान को ये सारी चीजें पर्याप्त है।

मैंने लोगों को अक्सर कहते सुना है, “जिसके पास खूब सारा पैसा और खूबसूरत पत्नी हो तो उसे लाइफ से किसी भी तरह की कोई टिस नहीं रह जाती है।”

वैसे लोगों का यह कहना भी सत्य है। आखिर लोग पैसे भी तो इसलिए ही कमाते हैं कि उनके फैमली को किसी चींज की कमी ना हो या यूँ कह लीजिये, उनकी खूबसूरत पत्नी और फैमली को सारी उम्र खर्च करने के लिए पैसे कम ना हो।

शायद मैं भी उन्हीं में से एक हूं क्योंकि मेरा भी यही मानना है।

बचपन से ही इच्छा थी खूब पैसे कमायूं , गाड़ियां खरीदूं, विदेशों में सैर करूँ और इसी इच्छा को पुरे करने के लिए मैंने गुली-डंडे , गली क्रिकेट,लुक्का-छिपी खेल के अलावे लाइफ के बहुत सारे महत्वपूर्ण चीजें को पीछे छोड़ आया हूँ जो शायद वो सभी अमूल्य थी।

मेरी इंजीनियरिंग पूरा होते ही एक सॉफ्टवेयर कम्पनी में सॉफ्टवेयर डेवल्पर के रूम में मेरी प्लेसमेंट हो गयी। नौकरी मिल जाने के कारण घर वालों ने मेरी शादी तय कर दी। लड़की दूर के रिश्तेदार की फैमली से थी। उसके घर वाले काफी पैसे वाले थे जिसके कारण गिफ्ट के रूप में कुछ दहेज भी मिल गये थे।

इस शादी से मैं काफी खुश था। अब जिन्दगी से कोई शिकायत नही रह गयी थी. क्योंकि एक अच्छे करियर के साथ-साथ एक अच्छी लाइफ पार्टनर भी मिल गयी थी।

शादी के बाद मैं अपनी पत्नी के साथ दिल्ली में ही शिफ्ट हो गया था और तब से लेकर अब तक अपनी पत्नी प्रतिमा के साथ दिल्ली में ही रहता हूँ । अब मेरा एक बेटा भी है जो पिछले महीने ही अपने उम्र के 10 वर्ष पूरे किए है। जब से दिल्ली में शिफ्ट हुआ हूँ तब से कभी वापस अपने गाँव जाने का दिल नही किया है, वहां के टूटी सड़के और पिछड़े बस्तियां मुझे कभी अपने ओर वापस आने के लिए उत्साहित नही है। यही कारण है जॉब के बाद कभी वापस अपने गाँव नही गया हूँ। मगर अपने बेटे के जिद्द के कारण उसे गांव लेकर जा रहा हूँ। गांव में मेरे मम्मी-पापा के अलावे एक दादी भी रहती है जो अक्सर मुझे फोन पर कहती रहती है ” बेटा कभी गाँव भी तो आया कर ,कम से कम मरने से पहले तो एक बार आकर मुझसे मिल ले। क्या करेगा इतने पैसे कमा कर?”

दादी की यह बात सुनकर मैं बस थोड़ा मुस्कुरा देता और कहता ” आऊंगा दादी ,जल्द आऊंगा”

जल्द तो नही जा पाया लेकिन आज पूरे 12 वर्षों के बाद अपने गांव जा रहा हूं। मेरे साथ मेरी पत्नी प्रतिमा और मेरा बेटा सूरज भी है।

“पापा हम दादा जी के पास कितने दिनों तक रहेंगे?” मेरा बेटा सूरज मुझसे पूछा।

“मैं तो दो-तीन दिन बाद वापस वापस लौट आऊंगा मगर आप लोग चाहो तो गांव में रुक सकते हो 1-2 हफ्ते। बाद में आ जाना जब आपकी स्कूल खुल जाएगी” मैंने कहा।

“नहीं …. नहीं…. हम लोग क्या करेंगे गांव में ? हम-लोग भी आपके साथ ही चले आएंगे।” मेरी पत्नी प्रतिमा बोली।

“पापा मुझे दादाजी के पास पुरे वेकेशन तक रहना है। वैसे भी स्कूल बंद है। मैं वापस आकर क्या करूंगा? एक तो आप पहले कभी दादाजी के पास लाते हो नही और अब जा रहा हूँ तब वापस आने की जल्दी हैं। मैं तो गांव में ही रुकूंगा।” सूरज जिद करता हुआ बोला।

“नहीं … नहीं… हम लोग कुछ दिन के लिए ही जा रहे हैं। वैसे भी गांव में रहोगे तो बिगड़ जाओगे। पढ़ाई-लिखाई सही ढंग से नहीं कर पाओगे।” मेरी पत्नी गाड़ी के खिड़की से बाहर झांकती हुई बोली।

मैं प्रतिमा की बात सुन कर मुस्कुरा उठा और सोचने लगा, क्या सच में गांव में रहने से बच्चे बिगड़ जाते हैं? क्या सच में गांव का माहौल बहुत बुरा होता है? क्या हमारे गांव में शहरों से संस्कार कम होते हैं? फिर मुझे एक पल ख्याल आया अरे मैं भी तो गांव में ही पला बढ़ा हूं। फिर आज प्रतिमा शहर में पली-बढ़ी लड़की मेरी पत्नी कैसे बन गयी! यह सोच कर मैं मन ही मन मुस्कुरा उठा। खैर मैं पतिमा से कुछ नहीं बोला और मैं चुपचाप चलता रहा।

कुछ देर बाद हमारी गाड़ी हाईवे से यूटर्न लेकर गांव की कच्ची सड़कें पर चलने लगी थी फिर अचानक मेरी नजर एक प्राइमरी स्कूल पर पड़ी।

“मनोज … गाड़ी यहाँ रोको।” मैंने अपना ड्राइवर को गाड़ी रोकने का आदेश दिया।

“ओके सर”

गाड़ी रुकने के साथ ही मैं अपनी टोयोटो गाड़ी से बाहर निकलकर उस प्राइमरी स्कूल के गेट के पास चला गया। यह देख कर मेरी प्रतिमा और मेरा बेटा सूरज हैरान था। आखिर वे लोग सोच रहे होंगे इन्हें हुआ क्या? इस छोटी सी स्कूल में क्या झांक रहे हैं।

“पापा, आप वहां क्या देख रहे हो?” सूरज मुझे आवाज दिया।

“सूरज यह मेरा स्कूल है। मैं बचपन में इसी स्कूल में पढ़ता था।”

“वाह … पापा की स्कूल!” सूरज भी गाड़ी से बाहर आ गया।

“पापा यह सच में बहुत अच्छी स्कूल है… वाह!”

“हां! यह तो मेरे लिए किसी जन्नत से कम नहीं है। आज मैं जो कुछ भी हूं इसी स्कूल के बदौलत हूं.”

“आप वहाँ क्या कर रहे हैं ? आइए घर जल्दी चलना है” प्रतिमा मुझे आवाज देती हुई बोली।

मैं प्रतिमा की आवाज सुनकर मैं पीछे की तरफ मुड़ा तभी मेरा पैर अचानक से एक पत्थर से जा टकराया और मैं गिरे-गिरे सा हो गया।

उस वक्त एक ठंडी से हवा मेरे कानों से टकराकर निकली और ऐसा लगा वह मुझे कुछ बताना चाह रहे हो, मुझे कुछ याद दिलवाना चाह रहे हो।

मैंने अपने पैर की तरफ देखा एक बड़ा सा पत्थर जमीन में धंसा हुआ है। जिसके ऊपर का मात्र 3 से 4 इंच भाग ही दिख रहा है । उसे देखते ही मेरे दिमाग में 18 साल पहले की एक दृश्य चल पड़ा।

यह वही पत्थर है जिस पर बैठ कर कभी मैं चांदनी के साथ गप्पे हांका करता था और हर दिन किसी ना किसी बात पर उसे चिढ़ाया करता था। और कभी कभी तो उससे बात करते-करते उसके दो चोटी बालों को एक साथ बांध कर वहां से दौड़ कर भाग जाया करता था।

चाँदनी मेरे गांव की दीनदयाल चाचा की एकलौती बेटी थी। हम दोनों एक ही क्लास में पढ़ते थे। वह जितनी खूबसूरत थी उतना ही समझदार और मेहनती थी। वह क्लास में हमेशा पहले बेंच पर बैठती थी और हमेशा क्लास में मेरे बाद उसी का रैंक होती थी।

वो दिन मुझे अच्छी तरह से याद है । जब एक दिन स्कूल में छुट्टी के समय मैं और चांदनी इसी चबूतरेदार पत्थर पर बैठकर लूडो खेल रहा था। पासे फेंकने के बाद छः आने की खुशी में मैं उछल पड़ा था। जिसके कारण मैं पत्थर से नीचे गिर पड़ा और मेरे पैरों के घुटने छिल गई थी। जिसके कारण मेरे पैर से खून निकल पड़ा था।

घुटने से खून निकलता देख चांदनी अपने चोटी बांधने वाली रिबन खोल कर मेरे पैर को बांध दी थी। तब जाकर खून बहना बंद हुआ था।

“अब और दर्द हो रही है क्या?” चांदनी मेरी आंखों में देखते हुए पूछी।

“अब जिसके पास तुम जैसी प्यारी दोस्त हो तो भला उसे दर्द कैसे हो सकता है?” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

“हट पागल” बोलकर चांदनी शर्माती हुई चली गई।

वह उस वक्त शर्माती हुई क्यों गई थी खैर यह तो मुझे पता नहीं और मुझे यह भी पता नहीं कि मैं उसे उस वाक्य द्वारा क्या समझाना चाह रहा था। मगर मैं इतना जरूर जान गया था कि चांदनी मुझे पसंद करने लगी है और मैं भी उसे पसंद करने लगा हूं।

स्कूल में हम पूरे समय एक ही साथ बिता देते थे। हम दोनों को बात करने के लिए हर दिन कोई नई टॉपिक ढूंढने की जरूरत नहीं होती थी बल्कि हमारी पुरानी टॉपिक ही कभी ना खत्म होती थी।

हमारी यह दोस्ती उस वक्त खतरे में पड़ने वाली थी जिस वक्त हम दोनों प्राइमरी स्कूल से निकलकर हाई स्कूल में जाने वाले थे।

अब मुझे खुद अपनी काबिलियत या यूं कहें की चांदनी के मासूमियत पर से भरोसा डगमगाने लगा था। इस छोटे से प्राइमरी स्कूल में चांदनी का हीरो तो मैं हूं मगर बड़े से हाई स्कूल में मैं उसका हीरो रह पाऊंगा या मुझसे बेहतर लड़के को अपना हीरो मान लेगी?

मैं सोचने लगा था , चांदनी जितनी खूबसूरत है उसे देख कर कोई भी लड़का उसके दीवाने हो जाएंगे और जब हम हाई स्कूल में जाएंगे तो वहां उसे ना जाने हम से कितने बेहतर लड़के उसके आगे पीछे घुमा करेंगे।

भला उतने अच्छे -अच्छे लड़को में से चांदनी मुझे क्यों चुनेगी? मुझे क्यों पसंद करेगी ?

फाइनली हम-दोनों प्राइमरी स्कूल से निकलकर हाई स्कूल में एडमिशन करवाया। लेकिन यहाँ हमारी सोच के बिल्कुल विपरीत हुआ। प्राइमरी स्कूल में जहां हमेशा रोक-टोक ज्यादा थी। यहां आकर हम लोग आजाद हो गया थे । ना गाँव वाले गुरु जी से मुलाकात होती थी और नही गांव के चपरासी चाचा से। अब हम वहां से ज्यादा स्वतंत्र महसूस करते थे।

इधर चांदनी हाई स्कूल में आते ही ज्यादा खूबसूरत लगने लगी थी। प्राइमरी स्कूल में चांदनी जहां दिन भर स्कर्ट और शर्ट पहन कर स्कुल जाती थी। वही अब यहा समीज सलवार और दुपट्टे डालकर आती है । अब यहां वो छोटे-छोटे दो चोटी बनाकर नहीं बल्कि बालों को खोल कर आती हैं। और उसने अपने आगे के बालों को काटकर कुछ लटे भी बना रखी है। जो बार-बार पढ़ते समय उसके गालों पर आकर झुमती रहती है। वह हमें तिरछी नजर से देखती है और अपने बालों की लट को प्यार से हटा कर फिर अपनी पढ़ाई में मग्न हो जाती है।

एक दिन स्कूल में छुटी होने के ठीक आधा घंटा पहले सभी बच्चे ग्राउंड में खेल रहे थे। मैं और चांदनी ग्राउंड में ही बैठकर बातें कर रहे थे၊ चांदनी मेरे आँखों में झाँकती हुई बोली “विक्रम मैं तुमसे प्यार करने लगी हूं, आई लव यू “

“मैं भी तुमसे बहुत प्यार करता हूं၊ आई लव यु टू। ” मैंने कहा।

इस तरह से हाई स्कूल में प्रवेश करने के कुछ ही दिनों बाद ही हमारी प्रेम कहानियां शुरू हो गई।

हमारी प्रेम कहानी कई वर्षों तक चला और वह दिन भी आ गया जब हम दोनों दसवीं का एग्जाम देकर हाई स्कूल को भी पीछे छोड़ने वाले थे।

“विक्रम …. विक्रम…विक्रम …. क्या कर रहे हो आप वही रहोगे ? या घर भी चलना है?” प्रतिमा चिल्लाती हुई गाड़ी से आवाज दी।

मैं प्रतिमा की आवाज सुनकर फौरन बचपन के यादों से बाहर आया और मुड़कर देखा। मेरे बेटे सूरज , प्रतिमा और ड्राइवर सब गाड़ी में बैठे थे၊ और ड्राइवर गाड़ी का हॉरन बार-बार बजा कर मुझे बुलाने की कोशिश कर रहा था ၊ मैंने मन ही मन इस स्कूल को प्रणाम किया और वापस गाड़ी में जाकर बैठ गया।

“पापा, दादा जी का घर यहां से अब और कितना दूर है ?” मेरे बेटे ने गांव की गलियों में गाड़ी घुसते ही पूछा।

“बेटा ! बस अब पहुंच गए၊ 2 मिनट में आप दादा जी के पास होगे।”

कुछ देर बाद हम लोग घर के दरवाजे पर खड़े थे। वहां मेरे पिता जी एवं मां पहले से ही इंतजार में खड़े थे၊ हम सभी ने मां और पिता जी को चरण छू कर प्रणाम किया। ड्राइवर गाड़ी से समान उतार कर घर के अंदर रख दिया၊ प्रतिमा और सुरज मां के साथ घर के अंदर चले गये। मगर मैं कुछ देर तक बाहर ही देखता रहा है ၊ फिर मेरी नजर उस गली पर जाकर टिकी जो यहां से होकर सीधे चांदनी के घर तक जाती थी।

शाम में अक्सर चांदनी से मिलने मैं इसी गली से जाया करता था । इतने दिनों बाद इस गली को देखकर चांदनी की यादें एक बार फिर से जिंदा हो गई ၊ उसकी चेहरा, चंचल बातें आंखों के सामने से ऐसे गुजरने लगा जैसे मानो यह कल के ही बात हो।

मैं उन यादों को खुद से अलग करते हुए मैं अपने घर के अंदर प्रवेश किया၊ मेरा घर आज भी बिल्कुल वैसा ही है जैसा आज से 12 साल पहले हुआ करता था၊ मैंने इतने सालों में कभी भी गांव वापस ना आया था၊ मुझे जब भी अपने मम्मी-पापा से मिलने का मन करता था तो वे लोग ही मेरे पास चले आते थे। और वैसे भी गांव में वापस आने की कोई वजह नही रह गयी थी।

जब मैं दसवीं के बाद इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए कोटा जाने लगा था तो चांदनी मुझसे नाराज हो गई थी।

“विक्रम क्या कोटा जा कर मुझे याद रखोगे या फिर मैं तुम्हारी एक्स बन जाऊंगी ?” चांदनी रुयासी होकर बोली।

“कैसी पागल जैसी बात कर रही हो ! यह कोटा क्या है मैं दुनिया का किसी भी कोने में रहूंगा तो तुम्हें याद करूंगा और सिर्फ और सिर्फ बस तुम्हें प्यार करूंगा”

“सच्ची ?” चांदनी बोली

“मुच्ची”

कोटा जाते वक्त वह मेरे गले लिपट कर रो पड़ी थी और मैं उसे गले से चिपका लिया था।

“विक्रम बेटा …. विक्रम अंदर आ जा। बेटा दरवाजे पर क्या कर रहे हो?” पापा की आवाज सुनकर मैं अपने बचपन की यादों से वापस लौटा। और अचानक से एक झटका महसूस किया। मैं इन सारी यादों को पहले की तरह पीछे छोड़कर अपने घर के अंदर गया। 12 साल बाद भी घरों में वही अपनापन, वही ख़ुश्बू। मेरी सारी चीजें उसी स्थिति में थी जैसे पहले हुआ करता था। बस कमी थी तो बस चांदनी की।

चांदनी अक्सर किसी ना किसी बहाने मुझसे मिलने के लिए मेरे घर आ जाया करती थी।

मुझे अपने गांव आया हुआ लगभग अब 2 दिन बीत चुका था इन 2 दिनों में मैंने उन सभी गलियों खेत-खलिहान में घुम आया। जहां पहले बचपन में घूमा करता था। और उन सभी जगहों से बस यही एक पुकार आ रहे थे,” विक्रम तुम इतने दिन कहां रहे ? आखिर तुम्हें अपने गांव से क्या शिकायत थी, जो इतने वर्षों तक इससे दूर रहा ? क्या मैं तुम्हें सही परवरिश करने में नाकामयाब था? क्या यहां के वातावरण तुम्हें पसंद नही थी?”

अब भला मैं इन खेत-खलिहानों और गांव के सकरी गलियों को कैसे समझाता कि जितना तुम मुझे मिस करते थे , उससे कहीं अधिक मैं भी तुम्हें मिस करता था।

मैं भी चाहता था कि फिर से उन गलियों में लौट जाऊं, फिर से उन खेत खलिहान में जाऊं जहां खेल-कूद कर इतने बड़े हुए हैं।

अब भला इन्हें कैसे समझाता की उम्र बढ़ने के साथ-साथ जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती है जो कभी-कभी ना चाहते हुए भी इन सब चीजों से दूर होना पड़ता है।

एक दिन मैं अपने बेटे सूरज के साथ खेत की ओर से घूम कर अपने कमरे में बैठा था। अचानक से मेरी नजर टूटी हुई अलमीरा पर गई। जो आँगन के सबसे किनारे वाले छोर पर रखी हुई थी। मेरे कमरे से थोड़ी-थोड़ी दिख रही थी। घर में नए अलमीरा आ जाने के कारण उसे अब बेकार समझ कर बाहर रख दिया गया था। ठीक वैसे ही जैसे बाप को बूढ़े हो जाने पर बेटा उसे घर से बाहर दलान में बैठा दिया करता है।

मैं कमरे से बाहर निकल उस अलमीरा के पास गया अलमीरा के दरवाजे खोल कर देखा। उसमें मेरी कुछ किताबें और पुरानी कॉपी पड़ी हुई थी। मैं उन सभी किताबों को लेकर अपने कमरे में आ गया और उसे देखने लगा।

उनका कॉपियों और किताबों को पलटने से वही सुगंध आ रही थी जो कभी मेरे बैग से आया करता था।

किताब के पन्ने पलटते हुए क्लास 10वीं के विज्ञान की किताब से एक पर्ची निकले। मैं उस पर्ची को फटाफट खोला उस पर्ची के देखते ही मुझे समझते यह देर न लगी कि यह कब की है ! यह वो ही कागज थी जो मुझे चांदनी दी थी।

मैं क्लास 10वीं पास कर कोटा रहने के लिए चला गया था और 3 महीने बाद वापस अपने गांव आया हुआ था। तब चांदनी मेरे घर आकर ये कागज दी थी।

वो दिन मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है, उस दिन चांदनी काफी परेशान दिख रही थी। मैं कमरे में बैठकर सुबह वापस कोटा लौटने की तैयारी कर रहा था। उसी वक्त वह शाम के लगभग 7:00 बजे मेरे कमरे में प्रवेश की और रोते हुए मेरे गले लिपट गई।

“विक्रम मैं भी तुम्हारे साथ चलना चाहती हूं प्लीज मुझे यहां से कहीं ले चलो अब मैं यहां नहीं रहना चाहती” चांदनी मुझसे गले में लिपटी हुई बोली।

“चांदनी यह क्या बचपना हरकत है ? तुम्हें तो पता है मैं कोटा पढ़ने जा रहा हूं और वहां मैं हॉस्टल में रहता हूं। भला वहां तुम्हें कैसे रख सकता हूं ?” मैं समझाते हुए चांदनी को बोला।

“विक्रम यहां लोग हमारे तुम्हारे में बाते करते हैं। सभी लड़के औरत मुझे गंदी नजरों से देखते हैं। जब से कुछ लड़कों ने तुम्हारे और मेरे बारे में पापा को बताया है। तब से वह मुझसे चिढ़े-चिढ़े से रहते हैं। और अब तो पाप मेरी शादी की बात करते रहते हैं “

“चांदनी कोई बात नहीं सब सही हो जाएगा। देखना जब मैं पढ़ कर कुछ कर लूंगा तब तुम ही से शादी करूंगा” मैंने उसके आंखों के आंसू पूछते हुए कहा।

“पक्का”

“पक्का”

“तो वादा करो कि तुम कोटा जाकर मुझे नहीं भूलोगे” चांदनी अपनी आंखों के आंसू पोछती हुई बोली।

“प्रॉमिस , कभी नही भूलूंगा” मैंने कहा।

इतना सुनने के बाद चांदनी बगल में रखी मेरी गणित के कॉपी से एक पन्ने फाड़कर मेरे हाथ में थमा दी और बोली ” यह लो कोरा कागज और जब तुम पढ़-लिख कर बड़े आदमी बन जाओ उस दिन तुम इस कोरे कागज पर एक शुभ लग्न (शास्त्रों के अनुसार शादी करने के शुभ दिनांक) लिखकर मुझे वापस दे देना।मैं उसी दिन शादी के जोड़े पहनकर तुम्हारे घर चली आऊंगी।”

चांदनी कागज के उस टुकड़े को मुझे देकर वो चुपचाप मेरे घर से चली गई । उस दिन मेरी मां मेरे और चांदनी के बीच का बातचीत सुन ली थी। और उसने चाँदनी को मेरे कमरे से बाहर निकलते हुए भी देख ली। जिसके कारण मेरी मां हम-दोनों के बीच चल रही सारी कहानी समझ गयी और उसने चांदनी से दूर रहने की सलाह दे दी थी ,”बेटा हम इतने दुख कष्ट आधी रोटी खाकर तुम्हें अच्छे कोचिंग और स्कूल में पढ़ा रहे हैं। अगर तुम इन सब चीजों में पड़े रहोगे तो हम सब को क्या होगा? और साथ ही तुम्हारा जिंदगी भी नर्क हो जाएगा ।इसीलिए इन सब चीजों को छोड़कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो”

उस वक्त मैंने भी अपने मम्मी-पापा के बात मान कर इन सब चीजों से दूर रहने में ही अपनी भलाई समझी और मैं उस कोरे कागज को अपने 10वीं वाली विज्ञान की किताब में रख कोटा चला गया । वहाँ जाकर इन सब चींजों से दूर रह कर 2 साल तक इंजीनियरिंग की तैयारी किया और फाइनली मुझे एक अच्छे से इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन हो गया। कॉलेज जाने के बाद मुझे खर्च बढ़ गई और उन खर्च के लिए मेरे फैमिली दिन रात मेहनत करने लगे।

धीरे-धीरे कर कर समय बीतता गया और मेरी इंजीनियरिंग कम्प्लीट होने के साथ ही एक अच्छी जॉब भी मिल गया।

कोटा और कॉलेज में मैं इतना उलझा रहा कि इस कोरे कागज़ और चांदनी की याद धीरे – धीरे धुंधले पड़ गए और एक दिन ओझल हो गया।

जॉब के बाद घर वालों के मर्जी से शादी कर लिया। और वही पत्नी के साथ सेटल हो गया।

मैं उस कागज़ को अपनी जेब मे रखा और किताब बिस्तर के तरफ फेक मैं चाँदनी की घर के तरफ तेजी से भागा। आज कागज के ये टुकड़े मुझे चाँदनी से शादी के किये वादे याद दिला दिया।

मैं दौड़ता हुआ चाँदनी के घर पहुँचा , घर मे कोई नही था। मैंने आवाज दिया ” चाँदनी…. चाँदनी ….चाँदनी !..”

किसी का कोई रिस्पॉन्स नही आया। जब मैं घर से बाहर निकलने लगा तब किसी औरत के मरियल सी आवाज आया ” कौन ? कौन है ?.. किन्हें ढूंढ़ रहे हैं ?”

मैने पलट कर देखा , सामने सीढ़ी से एक पतली-दुबली,बिल्कुल कांठ जैसी शरीर के ढांचे एक औरत चली आ रही थी। उसके गोद मे 2-3 साले के एक बच्चे थे। मैं उसे देख कर पहचान नही पाया मगर वो मेरे पास आते ही मुझे पहचान गयी ,” विक्रम…… तुम ?”

“चाँ…द..नी……?” मैं पहचानने की कोशिश करते हुए बोला।

“हाँ , ….. हाँ विक्रम मैं चाँदनी ही हूँ।”

उसे देख कर मुझे यकीन नही हो रही थी कि ये वही नटखटी,बातूनी और मेरी प्यारी चाँदनी है।

“कैसे हो विक्रम ? आज इतने वर्षों बाद मेरी याद कैसे आ गयी ?”

“मैं तो ठीक हूँ , लेकिन चाँदनी तुम अपनी क्या हाल बना ली हो ? तुम्हे क्या हुआ इस तरह से दिख रही हो?”

“सब अपने-अपने नशीब के बात है , शायद मेरे नशीब में ये सब ही लिखा था। खैर छोड़ो ! इतने साल बाद आये हो तो कुछ खाने-पीने की व्यवस्था करती हूं।”

मैं उसके आँगन में रखी एक पुराने चारपाई पर बैठ गया। और वह मिटी के चूल्हे पर एक भदोना चढ़ा चाय बनाने लगी।

उसके बिखरे बालों और भद्दी साड़ी के बीच वह आज भी उतने ही खूबसूरत लग रही थी जितने की क्लास 10वी में लगती थी।

चाँदनी चुल्हे में फुक मारी जा रही थी तभी मैने अपने पाँकेट से कागज के टुकड़े उसके तरफ बढ़ा दिया।

“विक्रम तुम भुल गये कि कागज नही जलानी चाहिए। मैं चुल्हे में फुक मार कर आग जला लुँगी। कागज अपने पास रखो ” चाँदनी मुझे देखती हुए बोली।

“अरे मैं इसे जलाने के लिए नही दे रहा हूँ’ पहले तुम इसे रवोल कर देखोI”

चाँदनी कुछ क्षण तक मुझे देखी उसके बाद वह कागज के टुकड़े खोल कर देखने लगी।

वह उसे पढ़कर भावुक हो गयी।

मैने उस कोरे कागज पर आज का दिनांक लिख रखा था और उसके ठिक नीचे ” मुझ से शादी करोगी” लिख रखा था।

यह पढ़ कर उसके आँखें डबडबा गयी थी।

“विक्रम तुम उस घर से इस घर तक आने में काफी वक्त लगा दिया। काश यह प्रस्ताव पहले लाते।”

“हाँ, चाँदनी मैने काफी देर कर दिया । इसके लिए मैं तुमसे माफी मांगता हूँ। प्लीज माफ कर दो और अब मुझसे शादी कर लो। यार आज मेरे पास सब कुछ है पैसे, गाड़ी, घर। मगर तुम्हारे बिना जिन्दगी में सुकून नही है । “

चाँदनी बिना कुछ बोले चाय बनाती रही।

“चांदनी क्या तुम अब मुझसे शादी करोगी”

चांदनी इस बार भी कोई जवाब नहीं दी वह चुपचाप मिट्टी के चूल्हे में लकड़ी तोड़कर जलाती रही।

“चांदनी तुम मेरी बात सुन रही हो? मैं तुमसे कुछ पूछ रहा हूं।” मैंने थोड़े तेज आवाज में बोला।

चांदनी एक गहरी लंबी सांस ली और मेरी तरफ देख कर बोली,” विक्रम तूमने मुझसे शादी क्यों नहीं किया मैं यह नहीं पूछूंगी और नहीं यह कहूँगी कि तुमने मुझसे शादी ना करके कोई गलती किये हो, मगर अब तुम मुझसे शादी करते हो तो तुम गलती नही बल्कि बहुत बड़ी गलती करोगे। क्योंकि आज तुम सिर्फ समाज , मां-बाप के ही धोखे नहीं दोगे बल्कि अपने बच्चे और पत्नी को भी धोखा दोगे। …… विक्रम जो चीजें पीछे छूट गई है, उसे पीछे छोड़ देनी चाहिए। वैसे भी इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है । शायद मेरे प्यार में ही कोई कमी रह गई होगी वरना तुम्हें मैं इस तरह से नहीं खो देती ।”

तब तक चाय भी बन गई थी। चांदनी प्याले में चाय ला कर मुझे थमा दी और वह फिर से एक बार अपने बच्चे को गोद में लेकर उसे प्यार करने लगी।

हम दोनों लगभग वहां 20 मिनट तक एक साथ बैठे रहे मगर कोई बात ना हुई। ना उसने बात शुरू की और नहीं मैंने। सिर्फ दोनो गुम-सिम बैठे रहे।

अब भला मैं बात भी क्या शुरू करता ? क्या पूछता ? क्योंकि उससे पूछने के सारे अधिकार मैंने उसी वक्त खो दिया था जब मैंने उससे शादी ना करने की फैसला लिया था।

कुछ देर बाद मैं वहां से अपने घर वापस लौट आया। मगर लौटते वक्त मेरे मन में एक बहुत बड़ी अवशोष लेकर लौटा था । कभी ना भूलने वाली अफसोस। क्योंकि चाँदनी को देख कर मुझे ऐसा लगा कि शायद चाँदनी के इस हालात का जिम्मेदार मैं ही हूं।

मैंने गाँव के कुछ दोस्तों से मिला तो उन लोगों से पता चली की चांदनी कई वर्षों तक मेरी इंतजार करती रही। और उसने मेरी इंतेज़ार में शादी के कई रिश्ते को ठुकराती रही।

वह हमेशा लोगों से कहता था,” देखना जब विक्रम पढ़ाई पूरी कर लेगा तो वह मुझसे ही शादी करने आएगा”

वह अपने घर में भी सभी को यही बात बोल कर रखी थी कि आप लोग कुछ भी करो मैं किसी दूसरे लड़के से शादी नहीं करूंगीं। और शादी जब भी करूंगी विक्रम से ही करूंगी।

समय बीतता गया और एक दिन उसके पिताजी का देहांत हो गया। तब से वह बिल्कुल अकेली हो गई। उसी बीच चाँदनी को मेरी शादी किसी और लड़कीं से हो जाने की सूचना मिली। जिसे सुन वह बर्दाश्त ना कर सकी। वह धीरे-धीरे बीमार पड़ने लगी। इधर उसकी मां की भी तबीयत कुछ ठीक नहीं रहने लगीं थी जिसके कारण अपनी मां की हालात देख, अपने मां के पसंद से शादी कर ली। वह लड़का शराबी था। शादी के बाद वह ससुराल चली गई। वहां उसका पति बहुत मार ता-पीटता था जिसके कारण वह और भी बीमार रहने लगी। फिर एक दिन उसकी मां की देहांत हो गया। वह अंदर से और भी टूट गयी थी।

जब वह अपने पति से भी अजीज आ गयीं तो उसने अकेले रहने का फैसला ले ली। उसके बाद वह अपने पति को छोड़ अपने बच्चे के साथ वापस अपने माँ के घर रहने चली आयी । औऱ तब से वह यही रहकर अपना गुजर-वसर कर रही है।

चाँदनी की यह कहानी सुनकर मेरे रोम रोम कांप उठा।

आज मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मानो दुनिया मे मुझसे ज्यादा गरीब आदमी कोई नही होगा , जो अपने प्यार के लिये कोई मदद नहीं कर पा रहा हो।

अंदर से ऐसा लग रहा था जैसे दुनिया का सबसे गिरा हुआ इंसान मैं ही हूँ जो एक सच्चे प्यार करने वाली लड़की को बदले में प्यार ना दे सका।

मुझे एहसास हो गया था कि मैं दुनिया का सबसे लालची आदमी हूँ , पैसे के लालच में अपनी प्यार को भूल गया।

अपने गांव में एक  सप्ताह बिताने के बाद वापस दिल्ली लौट आया । इस बार हम अपने मम्मी-पापा को भी साथ लेकर आये थे ।

आज जिंदगी जीने के हर चीजें उपलब्ध है मेरे पास, मगर फिर भी दिल में कहीं ना कहीं, कुछ कमी-सी महसूस होती है जो यह एहसास दिलाता है की सभी खुशियाँ पैसे से नही खरीदी जा सकती।

 

और साथ ही एक अफ़सोस हमेशा मेरे दिल मे रहेगा,  “काश मैं चाँदनी के लिए कुछ कर पाता , काश उसके उम्मीद ना तोड़ी होती तो आज वो भी एक अच्छी जिंदगी जी रही होती।”

मिस यू चाँदनी, मुझे माफ कर दो!

 

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2 thoughts on “कोरा कागज़ । kora Kagaz । लव स्टोरी हिंदी में”

  1. Storybaaz की कहानियां वाकई में दिल को छू लेने वाली है । ऐसा लगता है जैसे स्वयं इन सब्दो ने एक संपूर्ण कहानी और किरदारों को जीवंत कर दिया हो ।।।।वाकई दिल खुश है कुछ अच्छा पढ़ कर।

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  2. मुझे कहानी पढ़ने के शौक नही था लेकिन जबसे इनकी एक किताब “आदृष्य प्रेम” खरीदा ओर पढ़ा उसके बाद मै इनकी कहानियाँ का तो दीवाना हो गया। इनकी किताब अमेज़न फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।उसके बाद मुझे स्टोरीबाज़ का पता चला तब से इनकी सारी कहानियाँ पढ़ता आ रहा हुँ।

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