Summary:
राजीव अपने दोस्त के साथ रहकर शहर में पढ़ाई करता था। एक दिन वो अपने दोस्त के साथ छुट्टियाँ बिताने पहाड़ियों पर गया था तब वहां उसकी मुलाकात नेहा से हुई। जिससे राजीव प्यार करने लगा और दोनों मिलने-जुलने लगे। एक दिन राजीव को मालूम होती है कि नेहा प्रेग्नेंट है और उस बच्चे का बाप राजीव नहीं बल्कि कोई और है। उस बच्चे के बाप के बारे में जानने के क्रम में राजीव को मालूम पड़ता है कि नेहा सिर्फ उसकी गर्लफ्रेंड नही है बल्कि उसके कई पुरुष दोस्त है। राजीव अब एक ऐसे जाल में फंस जाता है जहां से उसे निकलना मुश्किल हो जाता है।
Author - Avinash Kumar
“भाई साथ में तुम भी चलो ना ! तुमको तो पता है, तुम्हारे बिना मैं कहीं भी नहीं जाता हूं। और वैसे तुम्हें याद है ना, खुशबू को प्रपोज करते वक्त तुम भी मेरे साथ ही था तो फिर आज उसके साथ घूमने जा रहा हूं तो तुम्हे भी मेरे साथ चलना चाहिए। प्लीज चलो ना यार… साथ में चलते हैं” अभिषेक ने लगभग मुझे प्रार्थना करते हुए बोला।
उस दिन अभिषेक को अपनी गर्लफ्रेंड खुशबू के साथ राजगीर घूमने जाने का प्लान था। वैसे प्लान के वक्त से ही अभिषेक मुझे अपने साथ ले जाने की जिद करता आ रहा था। मगर मैं इन लड़कियों के घूमने-फिरने के चोचलेवाजी के चक्रों से हमेशा दूर रहना चाहता था।
मैं नहीं चाहता था कि अपने सारा कामकाज, पढ़ाई-लिखाई को छोड़कर इन लडकियों के पीछे सारा वक्त जाया करूं। मगर मेरा मित्र या यूं कहें कि मेरा रूम पार्टनर अभिषेक को इन लड़कियों में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी शुरू से ही रहा है। हम दोनों बचपन के दोस्त हैं । हम-दोनों ने क्लास नर्सरी से लेकर ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई एक ही कॉलेज और एक ही स्कूल से किया है।
आज एक ही साथ एक ही रूम में रहकर कंपटीशन की तैयारी कर रहे है । इन्हीं कंपटीशन कोचिंग में अभिषेक की मुलाकात खुशबू से हुई थी। खुशबू नाम जितनी प्यारी है उतनी ही उसके चेहरे भी हसीन थी ।वह हर लड़कियों से बिल्कुल अलग थी। उसकी बात-विचार बिहेवियर एकदम से पर्फेक्ट थे।
वह पढ़ने-लिखने में भी अच्छी लड़की थी। शायद यही कारण रहा होगा कि अभिषेक उसे पसंद करने लगा था वरना अभिषेक को मैं बचपन से जानता हूं। वह कभी लड़कियों को भाव तक नहीं देता था । जब अभिषेक ने मुझे बताया कि वह खुशबू को पसंद करने लगा है तो मैंने ही उसे उसकी टूटी-फूटी हिम्मत को मोहब्बतें की शाहरुख खान वाली प्रवचन देकर उसे मजनूं बना दिया था।
यहां तक उसका लव लेटर देने वक्त यानी कि प्रपोज करते समय मैं भी उसके साथ ही था। वरना यह साला फट्टू लव लेटर क्या कभी कॉपी तक एक्सचेंज नहीं करता। खैर यह बात तो बहुत पुरानी हो गई।
उस दिन जब मैं सो रहा था तब वह मुझे अपने साथ राजगीर की पहाड़ियों पर अपने गर्लफ्रेंड खुशबू के साथ मुझे भी साथ ले जाना चाह रहा था। अभिषेक मेरा बचपन का सबसे प्यारा और सबसे सच्चा मित्र है। इसलिए उसे मैं चाह कर भी मना नहीं कर पा रहा था।
फाइनली उस दिन मैं अभिषेक के साथ राजगीर टूर पर जाने के लिए तैयार हो गय। उसने बस चढ़ते हुए बोला, ” तुम मेरे साथ चल रहे हो, यह देखकर बहुत अच्छा लग रहा है”
बस में मैं, अभिषेक और अभिषेक की गर्लफ्रेंड खुशबू , बस के सबसे पीछे वाली सीट पर बैठे थे। मेरे बगल में एक अधेड़ व्यक्ति बैठे थे। जो अपनी माइक्रोमैक्स के एंड्राइड फोन में यूट्यूब पर पवन सिंह की भोजपुरी गाना “छलकता हमरो जवनिया ए राजा” बजा रहे थे।
हम लोगों ने सोचा हमें बैठने के बाद शायद यह चाचा जी अपने फोन का वॉल्यूम कम कर के गाना सुनने लगेंगे। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। हम लोगों को बैठने के बाद एक गाने खत्म होने के बाद दूसरे गाने शुरू कर देते थे। जो लगभग अधिकतर गाना भोजपुरी ही थी।
इन भोजपुरी गानों के म्यूजिक के बीच में ही अभिषेक और अभिषेक की गर्लफ्रेंड खुशबू अपनी बातचीत को शुरू कर दी थी। वह दोनों काफी खुश नजर आ रहे थे। इस वक्त दोनों की चेहरे की स्माइल किसी DSLR कैमरे में कैद करने लायक बन रही थी।
मैं इन दोनों के मुस्कान के बीच कबाब में हड्डी जैसा लग रहा था। मैं ना तो कुछ बोल पा रहा था और नहीं इन दोनों ने मुझे बोलने का कोई मौका दे रखा था।
जब कोई एक लड़का अपनी प्रेमिका के साथ या यूं कहें कोई लड़का किसी लड़की के साथ बैठा हो तो मुझे नहीं लगता है उसके बीच में किसी दूसरे इंसान को बोलने की जरूरत पड़ सकती है। बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड एक ऐसी प्राणी होते हैं जिसे दुनियादारी से कोई लेना-देना नहीं होता है।
रूम से निकने और बस पर चढ़ने से पहले तक मैं अभिषेक के साथ ही था। मगर खुशबु के आ जाने के बाद मैं कब का ही कहीं दूर एक गुमनाम सा हो गया था। वे दोनों आपस में ही बातें करते और आपस में ही हंसते और मैं बेबकुफ़ जैसा कभी-कभार अपने तरफ से मुस्कुरा देता था।
मैं इन दोनों के बात-चीत के बीच में पड़ना भी नहीं चाहता था। मैं चाचा जी के भोजपुरी गानों के म्यूजिक के साथ धीरे-धीरे अपना सर हिलाना शुरू कर दिया था। मुझे मजा आ रहा था।
देखते ही देखते हम राजगीर की बस स्टॉप पहुंच चुके थे। हमारी रास्ते खत्म हो चुकी थी। गाड़ी बस स्टॉप पर रुक थी परंतु अभिषेक खुशबू की बातचीत अभी खत्म नहीं हुई थी। बल्कि एक अनगिनत चलने वाली नदियों की धाराओं जैसी बह रही थी।
हम तीनों के साथ ही मेरे पीछे-पीछे मोबाइल वाले चाचा भी बस से उतर गये। वो एक कपड़े वाली झोला ( Bag) लिए हुए थे जिसमें दो लम्बी-लम्बी ककड़ी रखी हुई थी। जिसके लंबाई 1-2 फिट लंबे थे जिसके कारण ककड़ी कपड़े वाले झोली से आधा भाग बाहर दिख रहा था। वह अपने रास्ते और हमलोग अपने रास्ते निकल पड़े।
अगर आप राजगीर जाते हैं और वहां की टांगे ( टमटम ) की सवारी नहीं करते हैं तो आपका राजगीर का सफर व्यर्थ माना जाता है। हम लोग भी टांगे के इंतजार करने लगे। उसी वक्त खुशबू ने अपने मोबाइल फोन निकाली और उसने एक नंबर डायल किया।
अभिषेक मुझे पहले बता चूका था। राजगीर में हम तीन लोग नहीं बल्कि चार लोग साथ-साथ राजगीर के पहाड़ो का दर्शन करेंगे। उसने बताया था कि खुशबू की फ्रेंड नेहा राजगीर में किसी हॉस्टल में रहती है। वह इंदिरा इंटरनेशनल पॉलिटेक्निक कॉलेज, राजगीर से डिप्लोमा कर रही है।
“नेहा तुम कहां हो ? यार हम लोग राजगीर बस स्टॉप पर खड़े हैं ।” खुशबू ने नेहा को फोन पीक करने के बाद बोली।
“यार! मैं भी बस स्टैंड में ही खड़ी हूं। ओके … अच्छा मैं तुम्हें देख ली हूं। तुम वहीं पर खड़े रहो । मैं तुम्हारे पास तुरंत (just) 30 सेेकंड में पहुंच रही हूं ” फोन से के दूसरी तरफ सेआवाज आ रही थी।
कॉल डिस्कनेक्ट होने के कुछ ही सेकंड बाद हाथों से इशारा करते हुए नेहा आती दिखाई दी।
yellow कलर की टॉप, स्काई कलर की श्रग ,एंकल लेंथ की जीन्स और आंखों पर धूप चश्मा चढ़ाई हुई थी।
उसके चिकने गालों पर पड़ती सूरज के मध्यम किरण रिफ्लेक्स होकर सतरंगी इंद्रधनुष जैसा महसूस करवा रही थी। वहां की हवाएं उसकी गुलाबी होठों को छूकर मस्त मौला होकर पीपल के पत्तों के साथ झूम रहा था।
नेहा मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी। और उसकी नशीली ऑंखें मेरे आँखों से जा मिली।
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