Author - Avinash Kumar
इन हाथों से ना जाने मैंने कितने लोगों के ऑपरेशन किए होंगे। अगर उन सारी मरीजों की डिटेल्स लिखता तो आज कई मोटी-मोटी डायरियों का पुस्तकालय बन गया होता।
इतने मरीजों के ऑपरेशन करने के बावजूद आज तक मैं किसी भी मरीज के सामने नर्वस महसूस नहीं किया। परंतु आज पहली बार मेरे हाथ कांप रहे थे , धड़कनें बढ़ रही थी और दिल जोरो से घबरारहे थे ।
रात के 2:00 बज रहे थे,पटना के सड़के की स्ट्रीट लाइट की प्रकाश मध्यम- मध्यम से दिख रहा था पूरा शहर कृतिम प्रकाश से डूबा हुआ था और मैं इतनी रात को अस्पताल के ऑपरेशन थिएटर में मौजूद था।
मेरा नाम डॉक्टर सिद्धार्थ हैं । मैं एक सर्जन डॉक्टर हूं और स्टार हेल्थ केयर अस्पताल पटना में नौकरी करता हूं।
मैं पिछले 17 वर्षों से इसी अस्पताल में काम करता आ रहा हूं प्रत्येक दिन की तरह आज भी मैं अस्पताल से रात करीब 11:00 बजे घर पहुंच गया था । पत्नी सुषमा के साथ भोजन करने के बाद अपने कमरे में सोने चला गया था । हमारी आंखें लग चुकी थी दुनिया की भागदौड़ से मुक्त होकर आराम से सो रहा था तभी अचानक से मेरे कमरे के टेलीफोन की रिंग बजी।
“Hello ” मैंने बोला।
“आप डॉक्टर सिद्धार्थ बोल रहे हैं?”
” हां”
“सर , मैं स्टार हेल्थ केयर अस्पताल पटना से बोल रहा हूं एक इमरजेंसी केस है । आपको अभी तुरंत अस्पताल पहुंचना होगा।”
“ok” बोल कर मैं फोन को रख दिया।
मैंने अपनी नजर घड़ी के कांटों पर दौड़ाया रात के करीब 1:30 बज रहे थे।
अभी कुछ क्षण पहले ही मेरी नींद गहरी हुई थी और अस्पताल से कॉल आ गया ।मैं अंदर ही अंदर चिढ़ गया परंतु मैं अपनी जिम्मेदारी को समझता था इसलिए तुरंत तैयार होकर अस्पताल के लिए निकल पड़ा।
बात करने के कुछ ही मिनटों बाद मैं अस्पताल में था । मैं जिस लड़की का ऑपरेशन कर रहा था वह कोई और नहीं बल्कि मेरी बेटी श्वेता थी ।
पिछले वर्ष ही 10वीं परीक्षा पास की थी। मैंने उसे आगे की पढ़ाई के लिए पटना के एक अच्छे से इंस्टिट्यूट में एडमिशन करवा दिया था ताकि किसी अच्छे मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिल सके ।श्वेता बचपन से ही काफी तेज विद्यार्थी रही है जिसके कारण मुझे उस से काफी उम्मीदें थी ।
वैसे हर मां-बाप को अपने बच्चे से उम्मीद होती ही है। मेरी पेशा ऐसी थी कि मैं ज्यादा समय बिजी ही रहता हूँ जिसके कारण मैं अपने परिवार को बहुत कम समय दे पाता था। श्वेता के दसवीं के बाद मैंने हॉस्टल फैसिलिटी वाले कोचिंग इंस्टीट्यूट में एडमिशन करवा दिया ताकि वहां रहकर अच्छे से पढ़ाई पर फोक्स हो सके ।
परंतु अधिकतर समय काम इंसान की सोच से विपरीत ही होता है । मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ । मैंने श्वेता को हॉस्टल में पढ़ाई के लिए रखा था परंतु श्वेता को अपनी ही क्लास के एक शिक्षक से प्यार हो गया, पता नहीं इस प्यार को प्यार कहूं या इस उम्र में होने वाली आकर्षण कहूं ।
खैर, मुझे तो इसे शिक्षक का दोगलापन कहना ज्यादा उचित लग रहा है। श्वेता इन सब चीजों में इतना खो गई थी कि वह अपनी पढ़ाई पर सही तरीके से फोक्स नहीं हो पा रही थी। क्लास के बाद रात में अक्सर दोनों कई-कई घंटे बाद किया करते थे ।
25 दिसंबर क्रिसमस त्योहार होने के कारण उसकी कोचिंग में छुट्टी थी। उन्होंने इस दिन घूमने का प्लानिंग कर रखी थी।
क्रिसमस दिन श्वेता सुबह स्नान करने के बाद कपड़े पहन रही थी। तभी उसकी फोन की घंटी बजी । फोन स्वेता के प्रेमी शिक्षक ने किया था।
उसे तैयार होकर हॉस्टल से 100 मीटर दूर सड़क पर बुला रहा था ।श्वेता तैयार होकर उसके पास गई और प्रेमी शिक्षक के गाड़ी में जा बैठी ।
दोनों बात करते हुए अपने प्लानिंग के रेस्टोरेंट में जा पहुंचे और खाना-वाना खाकर घूमने निकल पड़े । ऐसा आज पहली बार नहीं हुई थी कि दोनों साथ में घूमने निकले हो।
इससे पहले भी दोनों कई बार एक साथ घूमने निकल चुके थे। करीब दोपहर के 2:00 बजे दोनों एक होटल में प्रवेश किए। यह होटल पटना के पश्चिम साइड या यूं कहे की पटना के सबसे किनारे तरफ स्थित है। यह होटल उसके कोचिंग से काफी दूर पड़ती है। दोनों उस होटल में दो-तीन घंटे समय बिताने के बाद पुनः वापस लौटने लगे।
उसके शिक्षक स्वेता के हॉस्टल से लगभग 200 मीटर दूर ही छोड़ कर चला गया। क्योंकि वह नहीं चाहता था कि श्वेता के साथ उसे कोई और देखकर गलत सोचे ।
श्वेता गाड़ी से उतर कर शिक्षक को बाय किया और अपने हॉस्टल वापस चली गई । उस रात श्वेता ने शिक्षक साथ दिन भर बिताई पलो में खो कर गुजार दी ।
अगले दिन जब श्वेता क्लास गई तो अपने प्रेमी शिक्षक को पलकें उठा कर देखी और शर्माकर मुस्कुराई श्वेता को मुस्कुराता देख प्रेमी शिक्षक भी होठ को थोड़ा दबाते हुए मुस्कुरा उठा ।
उस वक्त श्वेता के आंखों में शर्म कम और प्यार ज्यादा दिख रही थी। शायद उस वक्त श्वेता अपनी आंखों पर मोहब्बत की धुंधला परत चढ़ा रखी थी । इसलिए उसे प्रेमी के मासूम चेहरे के पीछे धोखेबाज चेहरा नहीं दिख रहा था।
अगले 2 महीनों तक श्वेता की जिंदगी अच्छी बीती लेकिन एक दिन अचानक उसे मालूम हुआ कि उसके प्रेमी शिक्षक अब किसी और लड़की के प्रेम में पड़ चुका है। यह सुनकर श्वेता घबरा गई और उसे प्रेमी शिक्षक पर अंदर ही अंदर गुस्सा भी हुआ
श्वेता तुरंत अपने प्रेमी शिक्षक को फोन लगाकर इसके बारे में जानकारी लेने लगी परंतु उसके प्रेमी शिक्षक इस बात से इंकार कर दिया ।
प्रेमी शिक्षक अपनी मीठी बातों से श्वेता को समझाने में कामयाब हो गया और स्वेता को मना भी लिया लेकिन कहा गया है ना ! पाप को कितना भी छुपा लो एक दिन वह सभी के सामने आ ही जाता है।
कुछ दिनों बाद श्वेता को यह बात मालूम ही नहीं हुआ बल्कि शिक्षक और उसके क्लास की मोनिका नाम की लड़की के साथ कुछ अश्लील फोटो थी देख ली।
श्वेता कई दिनों से अपने प्रेमी शिक्षक का मोबाइल देखने की कोशिश कर रही थी लेकिन श्वेता प्रेमी शिक्षक का मोबाइल लेने में नाकामयाब हो रही थी फिर एक दिन अचानक शिक्षक का मोबाइल श्वेता के पास आ गया और प्रेमी शिक्षक की सारी पोल खुल गई एवं उसके चेहरे के मासूमियत नकाब भी हट गया।
उस रात स्वेता काफी रोई थी जब इंसान के पास बुरा वक्त आती है तो उसके साथ हर तरफ से बुरा ही होता है । उसी दिन श्वेता की तबीयत बिगड़ गई उसे चक्कर आने लगी और अचानक से जमीन पर गिर पड़ी ।
प्रिंसिपल के अनुमति से प्रेमी शिक्षक स्वेता को एक बगल के अस्पताल ले गया । डॉक्टर ने जो बात बताएं उसे सुनकर सिर्फ श्वेता ही नहीं उसके प्रेमी शिक्षक के भी पैर तले की जमीन खिसक गई । श्वेता गर्भवती थी । हां! श्वेता मां बनने वाली थी । यह सुनने के बाद प्रेमी शिक्षक और श्वेता दोनों कुछ पल तक सुन पड़ गए *
” देखो तुम्हारी उम्र अभी मां बनने लायक नहीं है। सुबह तुम मेरे साथ किसी अच्छे डॉक्टर के पास चलो हम इस बच्चे का अबॉर्शन करा देते हैं।” घर जाने के बाद प्रेमी शिक्षक फोन पर बोल रहा था।
उस वक्त रात के 11:00 बज रहे थे। स्वेता प्रेमी शिक्षक को शादी के लिए दबाव बना रही थी। परन्तु हकीकत तो यह थी कि अभी श्वेता की उम्र मात्र 15 वर्ष थी।
ना तो उसकी उम्र शादी करने की थी और ना ही मां बनने की। खैर! जो गलतियां हो चुकी थी। उसका सिर्फ एक ही उपाय थी बच्चे को जन्म से पहले अबॉर्शन करवाना। परंतु श्वेता बच्चे को ना मारने की जिद पर अड़ी थी । इस बीच प्रेमी शिक्षक और स्वेता के बीच कई बार तू-तू मैं-मैं हो गया।
“इतने वर्षों में तुम जैसी कितने लड़कियों से मेरा प्रेम हुआ। अगर मैं सब से शादी करता तो आज मेरे बच्चे से ज्यादा मेरे पत्नियों की संख्या होती।” शिक्षक ने कड़े स्वर में बोला ।
अब तक श्वेता को पूरी तरह से समझ आ चूका था , वह किसी अच्छे इंसान नहीं बल्कि हवस की भूखी इंसान से प्यार कर बैठी है। उसे बिल्कुल सही तरीके से समझ आ चूका था कि वह बहुत ही गिरे हुए इंसान के चंगुल में फंस चुकी है।
उसे अपने आप पर घृणा होने लगी। उसे इस बात के पछतावे हो रहे थे कि आखिर वह कैसे इस हवसी आदमी से प्यार कर बैठी। जिसने ना जाने कितनी लड़कियों के जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर चूका है ।श्वेता को अपनी गलती पर काफी पछतावा हुआ और वह हॉस्टल के सबसे ऊपरी मंजिल से छलांग लगा दी।
रात के करीब 1:00 बज रहे थे हॉस्टल के गार्ड ने उसे छलांग लगाते देख लिया परंतु उससे रोक पाने में असमर्थ रहा उसे जल्दी बाजी में एक निजी हॉस्पिटल में एडमिट करवाया गया। उस हॉस्पिटल के अनेकों डॉक्टर में से एक डॉक्टर मैं भी था। बदकिस्मती से उसे ऑपरेशन करने के लिए मुझे ही बुलाया गया ।
यही कारण था कि मैं ऑपरेशन थिएटर में काफी नर्वस था और मेरे हाथ कांप रहे थे। वैसे तो प्रत्येक अस्पताल में यह जरूर लिखा होता है।
“हर किसी की जिंदगी भगवान बचाते हैं बाकी हम डॉक्टर तो बस उनके माध्यम है”
यह बातें मुझे उस रात बिल्कुल विश्वास हो गई थी। मैंने अपने 30 वर्षों का तजुर्बा लगा दिया अपनी बेटी को बचाने में मगर अफसोस मैं असफल रहा।
उस रात मैंने उसकी एक-एक धड़कन मॉनिटर में देखता रहा। नीचे गिरती उसकी जिंदगी की ग्राफ हमें यह सिखा रहे थे अगर तुम अपने बच्चे को समझते, उसे समय देते या उसके साथ समय बिताते, प्यार देते तो शायद वह किसी गैरों से प्यार की उम्मीद ना करती।
फिर अचानक वह ग्राफ भी मुझ से रूठ कर नीचे गिर पड़ा । एक समतल रेखा खींचकर कहीं छुप गया। मैं डॉक्टर हूं मुझे समझते ज्यादा समय नहीं लगा कि अब श्वेता मेरी जिंदगी से कहीं दूर निकल पड़ी हैं।
श्वेता अपने परिवार को छोड़कर ,इस मतलबी दुनिया , हवसी और कातिल दुनिया को छोड़ कर कहीं दूर गुमनाम हो गई थी। श्वेता मेरी अस्पताल में मेरी नजरों के सामने जिंदगी के अंतिम सांस ली। मैं उसे बचाने में असफल रहा।
20 साल बाद
पटना के नामचीन कोचिंग में अपनी 15 वर्ष की पोती की एडमिशन करवा उसे हॉस्टल में ही छोड़कर वापस आ रहा हूं। मगर दिल आज भी उस घटना को नहीं भूल पाए हैं। और उसे याद कर अभी भी आंखें नम हो जाती है। अपने पोती को यहां छोड़ने का दिल बिल्कुल भी नहीं कर रहा है परंतु उसे पढ़ाई के लिए बाहर तो भेजना भी तो जरूरी है।
मगर मैंने पिछली घटना से इस बार सीख जरूर लिया है। मैंने पहले से कुछ ज्यादा सावधानियां बरती है। मैंने इसे बचपन से ही सही बुरे की समझ दी है। मार्शल आर्ट सिखाई है । इसके फोन में लाइव लोकेशन और एक्टिविटीज की जानकारी के लिए कुछ सॉफ्टवेयर भी डलवा रखा है क्योंकि मेरी बेटी की घटना इतना जरूर सिखा दिया है कि आप शिक्षक, हॉस्टल मालिक, उसके क्लासमेट, ऑटो-बस वाले पर विश्वास नहीं कर सकते हैं। अगर आप पुलिस के भरोसे बैठेगे तो आप सिर्फ रिपोर्ट ही लिखवाने लायक बचिएगा ।
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टीचर का क्या हुआ
अंदर के बाहर .
अंदर होना चाहिए