Author - Avinash Kumar
“बस यही की तुमने आदिती बहू की जो गहने चोरी की है उसे बहू को वापस कर दो।” मौसी गुस्से से बोली।
“मैंने चोरी की है ? आप यह क्या बके जा रही है ?” दीपा भी इस बार गुस्से में बोली थी।
“बहन अगर तुमने मेरी गहने ले गई हो तो प्लीज मुझे वापस कर दो। वो सभी मेरी शादी की मुहूर्त वाली गहने थी।” आदिति भाभी लगभग भीख मांगती हुई दीपा से बोली।
“आदिति दी (दीदी) आप भी……?” दीपा को वाक्य पूरा करे से पहले ही उसकी आंखों से आंसू निकल पड़े। उसकी आँखों से आंसू निकल कर उसकी दोनों गालो से लुढ़कर नीचे जमीन पर फैल गयी।
उस वक्त दीपा को यह समझ नहीं आ रहा था आखिर लोग चोरी का इल्जाम उस पर क्यों लगा रहे हैं ? उसने किसी का क्या बिगाड़ा हैं जो लोग इस तरह से उससे बदले लेने के लिए तुले हुए हैं ।
“दीपा बेटी मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं होगी यदि तुम बहू के सभी गहने वापस कर देती हो।” मां दीपा से बोली।
दीपा मेरी मां की बात सुनकर और भी फक-फक कर रोने लगी।
“मां आप दीपा से यह क्या बोल रही हो? आपके पास क्या सबूत है की गहने दीपा के पास हैं ?” उस वक्त यह वाक्या मैंने थोड़ी तेज आवाज में बोला था जिसके कारण सभी लोग मेरे तरफ देखने लगे थे।
“निशांत इस घर का कोई भी सदस्य अभी तक इस घर से बाहर नहीं निकला है सिवा दीपा के। मैं दावे के साथ कह सकती हूँ की दीपा ही आदिती बहू के सारे गहने लेकर भागी है।” सुजाता मौसी बोली ।
“दीपा सुबह मेरे साथ कॉलेज गई थी ना कि वह अपने घर गई थी।” मैंने कहा।
सुजाता मौसी मेरी बातों को सुनकर कोई जवाब नहीं दिया।
“मुझे लगता है इस चोरी की सूचना पुलिस को दे दीजिए। पुलिस खुद ही पकड़ लेगी असली चोर को । और इस तरह से किसी को बदनाम करने से कहीं ज्यादा बेहतर होगा।” मैंने अर्जुन भैया से बोला।
“निशांत तुम ठीक कह रहे हो। हमें चोरी की सूचना पुलिस को दे देनी चाहिए।” अर्जुन भैया बोले।
“नहीं.. इस घर में पुलिस नहीं आ सकती है। इससे हमारी और भी बदनामी होगी। आज तक इस घर में कभी कोई चोरी नहीं हुई है और नहीं कभी इस घर में कोई पुलिस आई है।मैं नही चाहती हूँ कि घर की बात बाहर उडेला जाये। अगर यह बात लोगों को पता चलेगा कि इस घर में चोरी होने लगी हैं तो फिर क्या इज्जत रह जाएगी।” मेरी मां बोली ।
“विमला तुम सही बोल रही है। जब चोर हमारे सामने ही है तो पुलिस की क्या जरूरत है।अगर पुलिस आती भी हैं और चोर को पकड़ भी लेती हैं तो पैसे लेकर ऐसे चोर को छोड़ देगी। इससे हमारी कोई फायदा भी ना होगा । इससे अच्छा है। हम इस वक्त इसे धक्के देकर घर से बाहर निकाल देते हैं और इसके घर जाकर इसके सारे गहने ले आते हैं।” सुजाता मौसी बोली।
“नहीं-नहीं ऐसा गलती मत करिएगा वरना मेरे भैया को यह सब जानकारी होगा तब वह अपनी जान दे देंगे” दीपा विनती करती हुइ बोली।
“अच्छा हैं तब तो हम ऐसा ही करेंगे ताकि तुम्हारी भाई भी जान ले उसकी बहन उसके पीछे क्या-क्या गुल खिला रही है।… मुझे तो लगता है इस चोरी में तुम्हारे भाई भी शामिल होगा।” सुजाता मौसी बोली।
“सुजाता मौसी आपको शर्म आनी चाहिए ऐसी घिनौनी बातें करते हुए। पहले आपने दीपा को बदनाम किया और अब उसके भाई को बदनाम कर रहे हैं। अब तो आप बेशर्मी की भी हदें पार कर दिया आपने” मैंने गुस्से में बोला।
“बेशर्मी की हदें तो इस लड़की ने पार कर दी, अपने दोस्त की बहन की गहने चोरी कर के।” मौसी फिर मुंह बनाती हुई बोली।
“निशांत तुम इन लोगों को समझाओ ना! देखो ये लोग क्या-क्या मेरे बारे में बोले जा रहे हैं?” दीपा रोती हुई बोली।
“सुजाता मौसी आप इतने कॉन्फिडेंस के साथ इस चोरी का इल्जाम दीपा पर कैसे लगा सकती है?”
“क्योंकि जिस रात बहू के गहने चोरी हुई है उस रात मैंने सुबह 3:00 बजे दीपा को आदिति बहू के कमरे की तरफ से आते हुए दीपा को मैंने देखी है। और मैं यकीन के साथ कह रही हूँ उस वक्त उसकी हाथों में गहने भी थी।” सुजाता मौसी बोली।
“उस वक्त दिपा भाभी के कमरे से नही आ रही थी” मैने कहा ।
“तब कहाँ से आ रही थी ?” मेरी माँ बोली ।
“वह…” मेरी बात को पुरा करने से पहले ही दीपा हाथ जोड़कर इशारो मे ही उस रात वाली घटना को जिक्र ना करने की विनती किया ।
उस वक्त वह कहना चाह रही थी कि मैं चोरी का बदनामी के दर्द सह लूंगी। मगर वे लोग यदि यह जान जाएंगे की उस रात मैं तुम्हारे साथ थी तो यह लोग मेरे लिए चोर के साथ चरित्रहीन जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल करने लगेंगे जो मेरे लिए असहनीय होगा ।
मैंने दीपा के बेवस आंखो के तरफ़ देखा, उसकी आँखों से आंसु निकल फर्श पर गिर कर फैल रही थी।
आदिती भाभी के कमरे और जिस कमरे मे सुजाता मौसी सो रही थी । वह कमरा इस दिशा में थे कि आदिति भाभी के कमरे से ना तो सुजाता मौसी के कमरे की दरवाजा दिख सकती थी और नहीं सुजाता मौसी के कमरे या खिड़की से आदिति भाभी के दरवाजे या उनके कमरे से आने वाले कोई व्यक्ति ही दिख सकता था।
“अगर आप सुबह 3:00 बजे दीपा को अदिति भाभी के कमरे की तरफ से आती हुई देखी है तो उस वक्त वहां पर आप क्या कर रही थी । और यदि दीपा अपने हाथों में गहने लिए हुई थी तब आपने उस वक्त किसी को इसकी जानकारी क्यों नहीं दिया।” मैंने सुजाता मौसी से बोला।
मेरी यह बात सुनकर सुजाता मौसी हक्का-बक्का सा हो गई । क्योंकि उन्हें भी अच्छी तरह से मालूम था कि वह जिस कमरे में सोई थी वहां से आदिति भाभी के कमरे या उनके दरवाजे से किसी व्यक्ति को आते हुए देखना नामुमकिन था।
“मैं उस वक्त टॉयलेट से आ रही थी तभी मेरी नजर दीपा पर पड़ी थी” सुजाता मौसी घबराती हुई बोली।
“लेकिन सुजाता मौसी टाँयलेट तो आपके कमरे से ढक्षिण दिशा में है , आप वहां से किसी को आते हुए कैसे देख सकते है?” मैंने बोला।
मेरी बातों को सुनकर सभी लोग मौसी को देखने लगे। इस बार मौसी कुछ नहीं बोल पा रही थी बस चुपचाप खड़ी थी ।
“भैया इस घर में अभी तक कोई पुलिस नहीं आई है मगर इस बार पुलिस जरूर आएगी और पुलिस मैं बुलाऊंगा।” यह बोलते हुए मैंने अपना मोबाइल निकाल कर पुलिस स्टेशन में कॉल करने लगा।
“निशांत बेटा रुक जाओ,पुलिस मत बुलाओ।” मौसी डरी हुई आवाज में बोली।
मैंने मौसी की तरफ देखा वह काफी डरी हुई दिखने लगी। अब सभी के नजरें एक बार फिर से मौसी के तरफ जा टिकी थी । मगर दीपा अभी भी पहले जैसे ही रो रही थी ।वहां पर उपस्थित सभी लोग यह समझ नहीं पा रहे थे आखिर मौसी इतनी डर क्यों गई है ।
“अब हम लोगों को पुलिस बुला लेनी चाहिए क्योंकि हम शक के आधार से किसी को चोर नहीं ना बता सकते हैं। जब पुलिस आएगी तब वह खुद दूध से पानी अलग कर देगी यानी पुलिस खुद चोर को पकड़ लेगी और इससे किसी निर्दोष को बदनाम होने से भी बचाया जा सकता है। अगर दीपा सचमुच चोरी की होगी तो पुलिस उसे पकड़ कर ले जाएगी।” मैंने बोला।
मेरी यह बात सुनकर सभी लोगों ने अपनी सहमति दिखाई मगर मौसी चुपचाप कुछ मिनटों तक मूर्त बन कर खड़ी रही फिर अचानक से धीमी स्वर में बोली,” निशांत बेटा आदिति बहू के गहने मैं ही छुपा कर रख दी है।”
“क्या?…” सभी एक साथ बोल पड़े।
अब यह सुनने के बाद दीपा रोना बंद कर चुकी थी और हम सभी सुजाता मौसी को देख रहे थे। सभी यह जानकर हैरान थे कि भाभी के सभी गहने सुजाता मौसी छुपा कर रखी है।
“हां, बेटा सारे गहने मैं ही छुपा कर रख दी है। इसके लिए मुझे माफ कर दो” सुजाता मौसी लगभग रोती हुई बोली।
“मगर सुजाता मौसी आपने ऐसा क्यों किया? मैं तो कभी सोच भी नहीं सकती थी कि आप ऐसा कर सकती हो।” आदिति भाभी सुजाता मौसी के पास जाकर बोली।
“अर्जुन द्वारा मेरी बेटी शिल्पा के रिश्ते ठुकराने के कारण मैं तुम लोगों से काफी नाराज थी। और मैं चाहती थी कि बहू के गहने चुराकर, मैं बहू को ही बदनाम करवा दूँ। सब लोगों को यह बोल दूंगी कि उसने सारे गहने अपने मायके वाले को दे दिया हैं और ताकि बहू सब लोगों के नजर से गिर जाए फिर लोगों को लगने लगे की मैंने शिल्पा की रिश्ता ठुकरा कर बड़ी गलती कर दी हैं।” सुजाता मौसी बोली।
“लेकिन कोई यह कैसे मान सकता है कि आदिति भाभी अपना खुद के गहना खुद ही चुरा लिया हो?” मैंने सुजाता मौसी से पूछा।
“कोई माने या ना माने मगर रिश्तेदार और मोहल्ले वाले तो मान ही सकते थे ना।” सुजाता मौसी कुटिल शब्दों में बोली।
“अच्छा ! तो आप मेरे घर में रहकर मेरे ही पत्नी के खिलाफ साजिश रच रही थी। वाह बहुत बढ़िया… बहुत बढ़िया।” अर्जुन भैया ताली बजाते हुए बोले।
भैया की यह बात सुनकर सुजाता मौसी अपने चेहरे को नीचे झुकाए हुए चुपचाप खड़ी थी
“अगर चोरी का इरादा भाभी को बदनाम करना था तो फिर इसमें दीपा को क्यों घसीट रही थी?” मैंने सुजाता मौसी से पूछा।
“बेटा! मैं इस चोरी में दीपा को बदनाम करना नहीं चाह रही थी मगर गहने चोरी के जानकारी होते ही सब लोगों के शक सबसे पहले दीपा पर ही गई थी क्योंकि दीपा यहां से सबसे पहले घर से बाहर निकली थी और जब इतने लोगों के शक दीपा पर जा रही थी तो मैंने इस वक्त आदिति पर आरोप लगाना उचित नहीं समझा।” मौसी गर्दन झुकाए हुई बोलती रही।
सब लोग सुजाता मौसी के इस हरकत से शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे मैं चुपचाप बरामदे में लगी सोफे पर जाकर बैठ गया।
“दीदी मैं तुम्हें अपने परिवार के सदस्य जैसा ही मानती थी और आप मेरे ही घर में रहकर मेरे रिश्तेदारों को……. मेरी बहू को बदनाम करने के बारे में सोच रखी थी!” मां गुस्से में बोली।
“मुझे माफ कर दो बहना मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई।” सुजाता मौसी रोती हुई बोली।
कुछ समय बाद मौसी कमरे की तरफ गए और अपनी बैग उठाकर लाये और उसमें छुपा कर रखी भाभी के सारे गहने निकालकर मेरी मां के हाथों में रख दिया।
मेरे घरवाले दीपा के साथ किए गए बिहेवियर के लिए सब लोग दीपा से माफी मांग रहे थे, “दीपा मुझे माफ कर दो।”
“बहन, मैंने भी तुम्हें गलत बोल दिया।” अदिति भाभी दीपा से माफी मांगती हुई बोली।
“हां बेटी मुझे भी माफ कर दो।मैं अपनी बहन की हां में हां मिलाते हुए तुम्हें बहुत कुछ बुरा भला कह दिया है।” मेरी मां दीपा के हाथों को अपने हाथों में पकड़ती हुई बोली।
दीपा मेरी ओर देखी उसके बाद उसने मेरी मां को उनकी बदसलूकी के लिए माफ करते हुए बोली, “आंटी आप हम से माफी मत मांगे। आपने जो कुछ मुझे कहा वह कोई गलत नहीं थी क्योंकि अगर मैं भी आपके जगह पर होती तो मैं भी शायद यही बोलती।”
दीपा मेरे घर वालों को माफ कर दी थी। सुजाता मौसी वहीं पर झूठी घड़ियाली आंसू बहा रही थी।
“मौसी अब आप भी चुप हो जाईये। आप ने अपनी गलती स्वीकार कर ली समझो आपने अपनी सजा पा ली है। प्लीज…. प्लीज अब मत रोईये।” दीपा सुजाता मौसी के पास जाकर बोली।
“बेटी तुम मुझे भी माफ कर दो। मेरे कारण तुम्हें लोगों से इतना बेजती होना पड़ा।” मौसी दीपा से बोली
“ मौसी! मैं आपको माफ कर दी हूं बस आप चुप हो जाइए।” इतना बोलते हुए दीपा मौसी को गले लगा ली ।
दीपा की इस बिहेवियर से मेरे घरवाले काफी खुश हो गए। दीपा ने अपने बेज्जती करने वालों को यूं ही माफ कर दिया जिसके कारण दीपा की बड़प्पन से सब बहुत खुश थे।
“आदिती दी अब मुझे घर जाना होगा वरना भैया को फिर से इंतजार करना पड़ेगा।” दीपा आदिति भाभी के पास जाकर बोली।
“ठीक है बहन जाओ मगर इन सभी बातों को भुला देना प्लीज!”
“आदिती दी आप कैसी बात कर रही है! मैं इन बातों को तो कुछ देर पहले ही भूल गई हूं।” दीपा आदिति भाभी को गले लगाती हुई बोली।
दीपा को पहले जैसा खुश देखकर मैं भी अब खुश हो गया था
“निशांत बेटा दीपा को इसके घर तक छोड़ दो।” मां बोली।
मैंने अर्जुन भैया के तरफ देखा।
“हां शाम हो गई है जाकर दीपा को उसके घर छोड़ा दो।” भैया जाने की इजाजत देते हुए बोले।
मैं बाइक लेकर दीपा के घर के लिए निकल पड़ा वह मेरे साथ बाइक पर चुपचाप मूर्त होकर बैठी थी। मैंने दीपा को शांत बैठा देख बोला, “दीपा प्लीज आप सब लोगों को माफ कर दो उन लोगों ने कुछ ज्यादा ही बोल दिए थे।”
“मैं तो उन लोगों को कब के ही माफ कर दी हूं। बस तुम्हें माफ नहीं किया!” दीपा शांत स्वर में मुंह बनाती हुई बोली।
“मगर मैंने क्या किया? मुझे क्यों नहीं माफ की तूने?” मैंने चौकते हुए बोला।
“क्योंकि तुम उस वक्त से ही उदास -उदास सा चेहरा बनाए हुए हो।” दीपा इस बार हंसती हुई बोली । उसकी हंसी सुनकर मैं भी हंस पड़ा।
★
कुछ मिनट बाद मैं दीपा के घर पहुंच चुका था। वह गाड़ी से उतर कर अपने घर की दरवाजे के अंदर जाने लगी फिर पीछे मुड़कर बोली, “ क्या कुछ देर तुम रुक नहीं सकते हो?”
मैंने उसकी ऑंखें की ओर देखा फिर मुस्कुरा कर बोला, “यदि तुम बोलेंगे तो मैं सारी उम्र भी यहीं रुकने को तैयार हूं।”
मैं बाइक को दरवाजे के पास डबल स्टैंड पर खड़ा करके उसके घर के अंदर चला गया। उस वक्त दीपा के घर में उसके भाई आशीष नहीं थे।
दीपा के घर कोई महलों जैसे तो नहीं थे। मगर काफी बड़ा और काफी पुराने थे। उसके घर के दीवारों के रंग तक उतर चुकी थी।
दीपा के भैया दूध का बिजनेस किया करते थे। उसके घर के अंदर बहुत बड़ी गौशाला बनी हुई थी जिसमें लगभग 20 से 25 गाय -भैंस थे। उसके घर और गौशाला के चारों ओर 6 फीट ऊंची दीवार से बाउंड्रिंग की हुई थी जिसके ऊपरी हिस्से कांटेदार तार से घिरा हुआ था।
उसके अंदर ही एक छोटी सी खेतनुमा बगीचा था। जिसमें आम ,नींबू के पौधों के अलावा घास -फुल पते लगे थे। कुल मिलाकर यह घर कम, मैदान अधिक लग रहे थे। मगर आगे के हिस्सा देखकर एक अच्छी खासी पुरानी हवेली कहना गलत नहीं हो सकता था।
वैसे मैं दीपा के घर तक कई बार छोड़ने आया हूं मगर इसके घर के अंदर उस दिन पहली बार गया था।
“निशांत यही मेरा घर है। एक छोटा सा कुटिया।” दीपा अपने हाथों से अपने घर और गौशाला को इशारा करती हुई बोली।
“बहुत प्यारा घर है।” मैंने बोला।
“हां! मेरे लिए और मेरे भैया के लिए यह सबसे प्यारा घर है। शायद तुम्हें इस घर में अच्छा ना लग रहा हो।” दीपा बोली।
“पागल हो! सच में मुझे तुम्हारा घर काफी अच्छा लग रहा है। ठंडी हवा। खुली आसमान। कमरे के नजदीक पेड़-पौधे और फूलों से लद्दा फूलों का पौधा। वाकई में काफी खूबसूरत है।” मैंने बोला।
“इस कुर्सी पर बैठो मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं।” दीपा एक प्लास्टिक की कुर्सी मेरी तरफ बढ़ाते हुए बोली।
कुर्सी बीच से टूटा हुआ था जिसे पतले तार से जोड़कर बैठने लायक बनाया गया था।
“नहीं.. नहीं! मैं चाय नहीं पियूँगा। अभी तो वापस जाना होगा फिर कभी आऊंगा तो जरूर पी लूंगा।” मैंने बोला।
मैं वहां कुर्सी से उठकर वापस घर जाने के लिए दरवाजे के पास आ गया। मुझे दरवाजे तक छोड़ने के लिए मेरे साथ- साथ दीपा भी आई।
कुछ पल तक मैं उसके चेहरे को निहारता रहा, उसके बाद उसके हाथों को पकड़कर उसे अपनी बाहों में लपेट लिया।
वह भी मुझसे कुछ मिनटों तक लिपटी रही उसके बाद वह मेरे गालों को चूम कर मुझसे थोड़ी दूर पर खड़ी हो गई। उस वक्त उसकी आँखें में मेरे लिए बेइंतेहा मोहब्बत दिख रही थी।
“ठीक है दिपा, मैं अब निकलता हूं। अब अगले दिन कॉलेज में हमारी मुलाकात होगी।” मैंने बोला ।
दीपा अपने गर्दन हिलाकर मुझे जाने की इजाजत दी मैं अपनी बाइक स्टार्ट कर अपने घर चला गया।
Continue ……
Next Episode
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी। Part – 01। हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी। Part – 02। हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी। Part – 03। हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी। Part – 04। हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी। Part – 05। हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी। Part – 06। हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी। Part – 07। हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी। Part – 08। हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी। Part – 09। हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी। Part – 10। हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी। Part – 11। हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी। Part – 12। हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी। Part – 13। हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी। Part – 14। हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी। Part – 15। हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी। Part – 16। हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी। Part – 17। हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी।Part – 18। हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी।Part – 19। हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी। Part – 20 । हिंदी कहानी
- Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी।Part – 21। हिंदी कहानी