Teri-Meri Aashiqui। तेरी – मेरी आशिकी।Part – 21। हिंदी कहानी

Avinash Kumar
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Teri-Meri Aashiqui। तेरी - मेरी आशिक़ी

Author - Avinash Kumar

अर्जुन भैया आज काफी खुश नजर आ रहे थे, क्योंकि आज उनके कंपनी को एक नया कॉन्ट्रैक्ट मिला था। इस कॉन्ट्रैक्ट लेने के लिए वह पिछले 2 वर्षों से लगे हुए थे। ऑफिस से वापस आते ही बोलें, “मां , आदिती और निशांत सब जल्दी-जल्दी अपने-कमरे से बाहर आओ । आप लोगों को कुछ बताना है।” 

अर्जुन भैया के बात सुनकर सभी अपने-अपने कमरे से बाहर आ गये, सिवा मेरे।

“क्या बात है आज बहुत खुश हुए जा रहे हो ? कोई लॉटरी लग गयी है?” मां बोली।

“अरे मां यूँ समझ लो लॉटरी ही लग गयी है। जिस कॉन्टैक्ट के पीछे हम 2 साल से लगे हुए थे। फाइनली वो आज अपनी कम्पनी को मिल गई है।” 

“वाह .. ये तो बहुत खुशी की बात है” आदिती भाभी बोली।

सब लोग ये ख़ुशख़बरी न्यूज़ सुनकर खुशी से झूम उठे।

“छोटे नही है! वो कहाँ गया? ” अर्जुन भैया आचनक से इधर-उधर देखते हुए बोलें।

“थोड़ी देर पहले तो वो अपने कमरे में ही था, शायद बाहर गया होगा।” मां बोली।

“नही ,मां वो अपने कमरे में ही बैठे हुए हैं।” भाभी बोली।

आदिती की बात सुन कर अर्जुन भैया मेरे कमरे की तरफ लपका। अर्जुन भैया कमरे में पहुँचते ही बोलें, “छोटे तुम यहाँ हो, आज हमलोगों के लिये बहुत बड़ी खुशखबरी मिली है।”

“अरे भैया आप ?”

“छोटे चलो जल्दी बाहर चलो ,अभी जश्न मनाते हैं। अपनी कम्पनी को दिप राणा साहब प्राइवेट लिमिटेड कंपनी से करोड़ो का कॉन्ट्रेक्ट मिला है।” 

“वाह! ये तो बहुत अच्छी बात है।” निशांत बिना ज्यादा खुश हुए ही जबाब दिया। 

“क्या हुआ छोटे तुम खुश नही हुए, कोई दिक्कत तो नही है ?”

“नही भैया कोई दिक्कत नही है, आप चलिए मैं आता हूँ।” भैया वहां से बाहर चले जाते है और मैं  वही बैठ कर सोचता रह जाता हूँ। 

मेरे दिमाग मे आज भी वही बात चल रही थी ,जो कल शपत समारोह के शिकायत पर्ची में शिकायत मिली थी। वह शिकायत एक विकलांग लड़की की थी और वह लड़की विकलांग के साथ-साथ एक बहुत ही गरीब परिवार से थी।

 उसकी पढ़ाई – लिखाई का सारा खर्च सरकार के द्वारा मिली छात्रवृत्ति से हो पाती थी। उसके पिता एक ढाबे पर मजदूरी किया करते थे। जिससे बमुश्किल से घर चल पाता था। पिछले 7 महीनों से लड़की की छात्रवृत्ति उसे मिल नहीं पायी थी। जिसके कारण उसकी पढ़ाई में बाधाएं उत्पन्न हो गई थी।

वह जैसे-तैसे कर पढ़ाई कर पा रही थी। हालांकि ऐसी बात नहीं थी कि सरकार उसे छात्रवृत्ति देना बंद कर चुकी थी बल्कि पिछले कुछ दिनों से उसकी छात्रवृत्ति सरकार के द्वारा दुगुनी कर दी गई थी। परंतु कॉलेज के बिचौलिए एवं कॉलेज प्रिंसिपल के मिलीभगत के कारण उस लड़की के छात्रवृत्ति घपला कर लिया जाता था। इसकी शिकायत कॉलेज प्रिंसिपल से लेकर डिस्ट्रिक्ट लेवल के कल्याण विभाग तक किया मगर अभी तक कोई हल नहीं निकल पाया था।

बस सभी से यही जवाब मिलता था कि अगले महीने से आपकी छात्रवृत्ति की राशि सीधे आपके अकाउंट में ट्रांसफर कर दी जाएगी। इस तरह से अगले महीने का उम्मीद लगा लगा कर वह लड़की आज 7 महीने पूरी कर चुकी थी ।

उसकी हालात यह हो गए थे कि अब उसे कॉलेज आने तक के पैसे नहीं थे। वह किसी तरह से कॉलेज आ रही थी। यही कारण थी कि जब उसे शपथ समारोह में शिकायत करने का मौका मिला तो वह अपने दुख भरी कहानी एक पर्ची में लिखकर मुझे दे दिया।

अर्जुन भैया को जाने के बाद मैं लगातार यही बात सोच रहा था। आखिर इतने बड़े कॉलेज में ढेर सारी सैलरी पाने वाले कर्मचारी और प्रिंसिपल के रहते हुए गरीब असहाय छात्र का छात्रवृत्ति का पैसा कैसे कोई कैसे घपला कर सकता है।

मैंने  सोचते हुए ही दीवार की तरफ देखा। घड़ी में सुबह के 10:30 बज चुके थे। मैं बिना इधर-उधर देखें उठा और अपने अलमीरा से कपड़े निकाल पहन कर बिना अर्जुन भैया से मिले ही कॉलेज के लिए निकल पड़ा। 

मैं  कॉलेज पहुंचते ही सबसे पहले कुछ छात्राओं के एक मीटिंग बुलाई। जिसमें दीपा और राहुल भैया के अलावा और भी कई छात्र-छात्राएं थे।

“दोस्तों आप सोच रहे होंगे कि कॉलेज आते ही मै आप लोगों को इतनी जल्दी क्यों इस मीटिंग हॉल में बुलाया है। आप लोग को बता दें , इस कॉलेज में कई तरह के गैर कानूनी काम हो रहे है। जिससे कई छात्रों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।” मैंने छात्राओं को संबोधित करते हुए बोला। 

मैं लगभग हर प्रॉब्लम के बारे में सभी छात्राओं को अवगत कराया।

 “निशांत हम सब तुम्हारे साथ हैं । अब तुम हमारे नेता हो तुम जो भी कुछ करेगा वो हम लोगों के हित के लिए ही होगा। तो तुम आगे बढ़ो हम हर कदम पर तुम्हारे साथ रहेंगे।” राहुल भैया ने कहा।

 मीटिंग समाप्त होने के बाद लगभग सभी छात्र- छात्राएं अपने अपने क्लास रूम में चले गए जबकि निशांत, राहुल भैया और दीपा प्रिंसपल ऑफिस में गयें। निशांत को अपने कक्ष में आते हुए देख प्रिंसपल भौचकते हुए बोला, “निशांत बेटा.. आओ…आओ… बैठो।”

“सर हम यहां बैठने नहीं आए हैं , कुछ जानकारियां चाहिए थी।”

“अरे बैठो, एकदम नेता बनते ही नेता जैसा बात कर रहे हो। बैठ कर बात करो। बताओ कैसी जानकारी चाहिए?” 

निशांत कुर्सी पर बैठते हुए कहा, “सर हमें उन छात्र-छात्राओं के नामों का लिस्ट चाहिए। जिसे केंद्र सरकार द्वारा हर महीने छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है।”

“क्यों ?”

 “सर हमें शिकायत मिली है कि यहां केंद्र सरकार के द्वारा छात्रवृत्ति तो दी जा रही है मगर लाभार्थी को पैसे नहीं दिए जा रहे हैं”

“देखो निशांत मुझे लगता है तुम्हें इन सब चीजों में नहीं पड़नी चाहिए। क्योंकि इससे तुम्हारा कीमती समय बर्बाद हो सकता है। यहां जितने भी बच्चों की छात्रवृत्ति केंद्र द्वारा आती हैं उन बच्चों की छात्रवृत्ति सीधे उसके बैंक खाते में ट्रांसफर कर दी जाती है। मगर फिर भी तुम्हें किसी ने यह जानकारी दी है तो मैं बता दूं , यह बेबुनियाद और गलत जानकारी है क्योंकि छात्रवृत्तिकोष का देखरेख मेरे ही जिम्मे में है और मैं सही तरीके से कर रहा हूँ।” प्रिंसिपल थोड़ी तीखी आवाज में बोला। 

“सर इसी बात का तो अफसोस है कि छात्रवृत्तिकोष की जिम्मेदारी आपके पास रहते हुए भी शिकायतें मिल रही है। सर ये बहुत दुखद है!”

“तुम कहना क्या चाहते हो?” 

“फिलहाल तो मैं कुछ कहना नहीं चाहता बस आप सभी छात्रवृत्ति प्राप्त करने वाले छात्रों के नाम हमें दे दीजिए।” इतना बोल कर निशांत और उसके साथ दीपा और राहुल भैया भी प्रिंसिपल ऑफिस से बाहर चले आए। प्रिंसिपल वहीं बैठे बैठे सन्न रह गया।

प्रिंसिपल को समझ में नहीं आ रही थी आखिर यह शिकायत किया किसने। कुछ देर शांत बैठे रहने के बाद प्रिंसिपल एक चपरासी को बुलाकर छात्रवृत्ति वाली फाइल निकालने का आदेश दिया।

इधर राहुल भैया सभी क्लास रूम में जाकर छात्राओं से छात्रवृत्ति संबंधित चर्चा कियें। कुछ देर बाद राहुल भैया , दीपा और मैं छात्र नेता के ऑफिस में आकर बैठे और कहा, “राहुल भैया कल आप कॉलेज में प्रत्येक क्लास रूम के दरवाजे पर एक शिकायत पेटी लगवाईये है।”

“ठीक है।”

“और दीपा तुम , उस लड़की से एक लिखित शिकायत ले लेना। कल हम जिला कल्याण विभाग में छात्रवृत्ति से संबंधित कंप्लेन दर्ज करने वाले हैं।”

“Ok” दीपा बोल बाहर चली आयी। 

लगभग 1 सप्ताह बीत गये  मगर प्रिंसिपल के तरफ से छात्रवृत्ति गड़बड़ी से संबंधित कोई स्पष्ट बातें बाहर ना आए। ना तो लाभार्थी के लिस्ट दी गई और नहीं छात्रवृत्ति ना मिलने के कारण बताए गए। बस हर बार अगले दिन कह कर टालता गया। और इधर कॉलेज में लगी शिकायत पेटियों में शिकायतें भर- भर के आ रही थी। कुछ शिकायतें नॉर्मल थी तो कुछ गहरी। उसी में से एक शिकायत थी – प्रोफेसरों को सही समय से कॉलेज नहीं पहुंचना।

जिसके कारण कई- कई दिन छात्र के पढ़ाई छूट जाया करती थी। मैं ने प्रोफेसर को कॉलेज ना आने की बात को गंभीरता से लिया और इसके लिए एक मीटिंग बुलवाएं।

यह मीटिंग कॉलेज के छात्र -छात्राओं के साथ नहीं बल्कि कॉलेज के प्रोफेसर प्रिंसिपल एवं अन्य सभी स्टाफ साथ था।

“प्रिंसिपल महोदय , प्रोफेसरों एवम उपस्थित अन्य लोगों को आज हमारी पहली मीटिंग में आपका स्वागत है। आज ये मीटिंग रखने का सिर्फ एक ही मकसद है। कॉलेज में हो रही छात्राओं के असुविधा को दूर किया जाए।” मीटिंग को संबोधित करते हुए मैंने बोला।

“हमें खुशी हुई कि तुम छात्र संघ के नेता बनते ही इतनी जल्दी अपने काम को इतनी सीरियस ले रहे हो और कॉलेज के प्रति इतने गंभीर हो। हम लोगों से जितना भी संभव होगा हम तुम्हें साथ देंगे। बात रही छात्र-छात्राओं के हित के लिए तो हम हमेशा से छात्र-छात्राओं के बारे में सोचते हैं और आगे भी सोचेंगे। हमें इस मीटिंग में बुलाने के लिए शुक्रिया।” प्रिंसिपल कहा।

“मुझे शिकायत मिली है कि इस कॉलेज के कई ऐसे प्रोफेसर हैं जो ना तो टाइम से कॉलेज पहुँचते हैं और नहीं टाइम पर अपने क्लास में आते हैं। जिसके कारण बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही है।” 

“निशांत आपको यह गलत जानकारी दी गई है। हम सभी प्रोफेसर टाइम से कॉलेज आते हैं और टाइम से ही क्लास लेते हैं। हमें आपकी बातें सुनकर हंसी आ रही है कि आप इस तरह के बचकानी बातें कर रहे हैं।” पीछे बैठे एक प्रोफ़ेसर ने कहा।

“सर मैं किसी को इस बात के लिए दोषी नही ठहरा रहा हूँ। और नही किसी को इसके लिए निजी तौर पर कोई सलाह दी जा रही है। बस मैं चाहता हूं की जिनके कारण भी ये परेशानी हो रही हैं वो कल से ध्यान दें और टाइम से कॉलेज आये, बच्चों को पढ़ायें।”

लगभग आधे घंटे की मिटिंग के बाद प्रोफेसरों के टाइम टेबल निधारित हुआ। अगले दिन कालेज के लगभग सारे प्रोफेसर टाइम पर कालेज आ गये और सभी प्रोफेसरों ने अपनी -अपनी क्लास पूरी ईमानदारी से समय से लिया।  प्रिंसपल केबिन में मैं बहुत ही शांत मुंद्र में बैठा था , मुझे आज प्रिंसपल अकेले मिलने के लिए बुलाया था। 

“सर , आपको ऐसा क्यों लग रहा है कि मैं आपके धमकी से डर जाऊंगा और छात्रवृति के लिए जिला कल्याण विभाग में दिया शिकायत अर्जी वापस ले लूँगा ?” मैंने बहुत शांत स्वर में बोला।

“किसने आपको बोला की मैं आपको धमकी दे रहा हूँ। मैं तो बस इतना कह रहा था,आपकी परीक्षा आने वाली है इन सब चीजों से ध्यान हटा कर पढाई पर ध्यान दीजिये वरना फेल हो जायेंगे।” प्रिंसपल कुटिल हंसी के साथ बोला।

“सर मैं फेल तो बाद में होऊंगा। लेकिन उससे पहले आप और आपके चमचे सब जेल में होंगे।” 

आज मैं जिला कल्याण विभाग गया था,जहाँ जानकारी मिली है कि छात्रवृति हर महीने कॉलेज में भेज दी जा रही है। जिसके बाद मैंने प्रिंसपल के खिलाफ शिकायत अर्जी दे कर आया हूँ। 

प्रिंसपल उसी अर्जी को वापस लेने के लिए मुझ पर दबाब बना रहा है और वापस नहीं लेने पर फाइनल परीक्षा में फेल करने की धमकी दे रहा है।

“सर आपको जो करना है वो आप कीजिये शिकायत अर्जी वापस नही होगा।” मैं गुस्से में केबिन से बाहर निकल गया। प्रिंसपल बस उसे देखता रह गया।

*

“हटो-हटो क्या हुआ ? इतनी भीड़ क्यों जमा है यहाँ ?” दीपा जमा भीड़ को साइड करती हुई बोली. 

कॉलेज परिसर में काफी लोग इकठे खड़े थे। अभी कुछ देर पहले ही देवांशु कुछ लडको के साथ मिलकर यहाँ आया था और राहुल भैया को बुरी तरह से पीट कर चले गये।

“कुछ लड़कों ने राहुल भैया को बहुत पीटा है वो बेहोश पड़े हुए है।” भीड़ में से एक लड़की ने दीपा को बोली. दीपा भीड़ को चीरती हुई राहुल के पास गयी।

“राहुल भैया क्या हुआ ? आंख खोलिए ।” दीपा इधर-उधर देखी और फ़ोन निकाल कर मुझे कॉल किया। 

मैं वहां आकर राहुल भैया को बगल के ही हॉस्पिटल में ले जाकर एडमिट करवाया। कुछ देर बाद राहुल भैया होश में आये।

उसके बाद उन्होंने सारी घटना मुझ को बताया।

“अच्छा! तो ये काम भी प्रिंसपल महोदय के सहमती से ही हुआ है।” मैंने खुद से बुदबुदाते हुए बोला। 

“देवांशु के छोड़ सभी लड़के कॉलेज के बाहर के लड़के थे।” राहुल भैया ने कहा। 

“मगर कॉलेज के बाहर के लड़के अंदर कैसे आ सकते हैं ?” दीपा बोली।

“आ सकते हैं क्योकिं कॉलेज के मुख्य दरवाजे पर ID कार्ड जाँच नही किया जाता है।” राहुल भैया ने कहा।

“मगर यकीन से कैसे कह सकते है कि इन सब के पीछे प्रिंसपल सर मिले हुए है ?” इस बार भी दीपा ने ही पूछी।

“क्योंकि  ये भी छात्रवृति शिकायत अर्जी वापस लेने के लिए बोल रहा था।”

“मगर ये आपको क्यों बोल रहा था? हिसाब से देखा जाये तो मुझे बोलना चाहिए क्योंकि शिकायत तो मैंने किया है।” मैंने कहा। 

“मैं समझ गयी। तुम्हे प्रिंसपल डरा नही पाया तो उसने राहुल भैया को डराने की कोशिश किया ताकि ये डर कर तुम्हे शिकायत वापस लेने कहें।”

“ओ …अच्छा !” 

तीनों एक साथ मिल कर वादा किया की हम किसी भी प्रस्थिति में पीछे नही हटेंगे । किसी भी तरह से उस लड़की को न्याय दिलवाएंगे और कॉलेज की स्थिति को सही करेंगे।

कुछ घंटे बाद राहुल भैया को हॉस्पिटल से छूटी मिल गयी और सभी लोग अपने -अपने घर वापस चले गये. 

*

दीपा अपने आशीष भैया को खाने परोस कर बगल में बैठी थी।

“दीपा , तुम्हारी पढाई कैसी चल रही है?” दीपा के भैया ने पूछा। 

“जी भैया बहुत बढ़िया।”

“अच्छा है , पढाई पर ध्यान लगाना। किसी भी बात की कोई दिक्कत हो हमें बताना।”

 “जी!”

“पता है! जब तुम छोटी थी तब माँ तुम्हे मेरी गोद में सौप कर भगवान को प्यारी  हो गयी थी। तब मैंने उसी समय कसम खाया था कि तुम्हे हमेशा खुश रखूंगा। माँ की कमी कभी नही होने दूंगा।मैं तुम्हारा भाई होते हुए भी एक पिता की तरह तुम्हारा ख्याल रखा।” यह बोलते-बोलते आशीष के आँखों से प्यार डबडबा आया.

यह सुनकर दीपा की आंखे भी भर आई, “भैया आप ही मेरा सब कुछ हो।आपने पिता बन कर मेरी परवरिश किया हैं तो देखना मैं भी आपकी बेटी जैसी फर्ज निभाउंगी। कभी आपको निराश नही करूंगी।” 

दोनों भाई-बहन खाना खाते-खाते काफी इमोशनल हो गये।

*

अगले दिन पुरे कॉलेज में चहल-पहल थी। हर जगह मेरे ही चर्चे हो रहे थे। कोई मेरे पक्ष में बोल रहा था तो कोई मुझे लेकर चिंतिंत था। आज कॉलेज में छात्रवृति घोटाला जाँच के लिए जिला कल्याण विभाग से कुछ लोग आये हुए थे।

प्रिंसपल से लगभग आधे घंटे की पूछ-ताछ कर वे लोग वापस चले गए। इधर राहुल भैया और मैं कॉलेज के मुख्य दरवाजे के गार्ड को ऑफिस बुला कर पूछ-ताछ कर रहे थे। 

“आखिर बाहर के लड़के कॉलेज कैम्पस में कैसे घुसा ?” मैंने गार्ड से प्रश्न किया।

 “सर वो हम उस वक्त प्रिंसपल सर के चैम्बर में थे।”

 “अच्छा! तो अब आप प्रिंसपल सर के पास रहने लगे है।”

 “जी वो किसी काम से मुझे बुलाये थे। ” गार्ड डरते हुए बोला। 

“देखिये आप झूठ मत बोलिए , मुझे पता है आप ID कार्ड चेक नही कर रहे हैं। इस बार आपको छोड़ दी जाती है अगली बार से ख्याल रखिये। अगर यहाँ रहना है तो काम सही से कीजिये।” राहुल भैया धमकाते हुए बोले। 

“जी सर , अगली बार से ऐसा नही होगा।” इतना बोल कर गार्ड वहां चला आया।

अगली दिन कॉलेज कम्पस में पुलिस की एक जिप आकर रुकी यह देख कर सभी लोग हक्के-बक्के रह गये। लोगों को समझ में नही आ रही थी आखिर यहाँ पुलिस किस लिए आई है। कुछ लोगों को लग रहा था उस दिन हुए झगड़े के वजह से ये पुलिस आई हुई है।

मगर उस वक्त बात स्पष्ट हो गयी जब प्रिंसपल केबिन से दो सिपाही प्रिंसपल को गिरफ्तार कर बाहर आ रहा था। साथ ही कुछ सिपाही देवांशु को भी उसके क्लास से पकड़ कर बाहर आ रहे थे। प्रिंसपल को छात्रवृति घोटाले के लिए गिरफ्तार किया गया जबकि देवांशु को प्रिंसपल के इशारे पर राहुल भैया को पीटने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया।

जाँच में उस विकलांग लड़की के अलावे 72 छात्रों के और भी नाम मिलें जिन्हें पिछले एक वर्ष से छात्रवृति नही मिल रही थी। साथ ही कुछ ऐसे भी नाम से छ्त्रवृति लिया जा रहे थे जिनका नाम इस कॉलेज में थे ही नही बल्कि गलत तरीके से फॉर्म भर कर छात्रवृति प्राप्त किया जा रहा था। 

इस काम से पूरे कॉलेज ख़ुशी से झूम उठा। पुरे कॉलेज में मेरा नाम के नारे ; निशांत जिंदाबाद के नारे लगने लगे। वो विकलांग लड़की भी बहुत खुश थी। वो अब बिना किसी परेशानी के कॉलेज आ रही थी.

*

दीपा के भैया आशीष काम के लिए बाहर निकलने के लिए तैयार हो रहे थे। तभी उनके फ़ोन की घंटी बजी. “ओह ! ये जरुर मेरे बॉस के कॉल होंगे। थोड़ी सी भी देर होता है तुरंत कॉल कर देते है।” आशीष बालों में कंघी करते हुए बोला।

उसने कंघी करने के बाद बोला, “हेल्लो !”

“आप दीपा के भाई बोले रहे हैं?” 

“हाँ , आप कौन ?”

“मैं कौन हूँ ये ज्यादा इम्पोर्टेड नही है। बल्कि ये इम्पोर्टेड है कि मैं बोल क्या रहा हूँ।”

“ठीक है बोलो।”

“आजकल तुम्हारी बहन तुम्हारा नाक कटाने के पीछे पुरे हाथ-मुंह धोकर पड़ी है।” फ़ोन से आवाज आई।

“क्या बकबास कर रहे हो ?”आशीष गुस्से में बोला। 

“अगर तुम्हे मेरी बातें बकबास लग रही है तो अपने Whatsapp खोल के देख । तुम्हे कुछ फोटो भेज रहा हूँ।” इतना बोल कर वो आदमी फ़ोन काट दिया। फ़ोन कटने के कुछ सेकंड बाद उसके Whatsapp पर कुछ फोटो आई। उसे देखर कर आशीष अपना सिर पकड़ कर बैठ गया और तेज आवाज में चिल्लाया ” दीपा ! …….”

Continue…..

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