“अरे हां मैं उसी की बात कर रही हूं। मुझे तो उसकी रहन–सहन बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता है। पता नहीं कैसी लड़की है?” सुजाता मौसी कटुता भरी स्वर में बोली।
“दीदी आप उसके बारे में गलत सोच रही है। दीपा बहुत अच्छी लड़की है और आपको पता है ना! वह अपनी बहू के बहन की दोस्त है ।” माँ सुजाता मौसी को समझाती हुई बोली।
” हूं…! ” मौसी मुंह बनाकर दूसरी तरफ चेहरा करके बैठ गई।
उस वक्त कमरे में कुछ पल तक भयानक खामोशी पसर गई । सब कुछ खामोश था। कमरे की दरवाजे, टेबल पर रखी गुलदस्ता , दीवार पर टंगी तस्वीरें और अलमारी में सजी मोटी–मोटी किताबें । और यह सभी मौसी की खडूस चेहरा को निहार रहे थे। तभी कमरे की दरवाजे धीरे से खुलने की आवाज आई और उसके साथ ही कमरे में दीपा आते ही बोली, “समोसा, गरमा – गरम । मौसी और आंटी आप दोनों जल्द से जल्द हाथ मुंह धो कर आइए मैं समोसा बनाकर ले आई हूं“
“बेटी आप लोग समोसे खा लो।हम दोनों बाद में समोंसे खा लेंगे।” मेरी मां दीपा से बोली।
“ नहीं आंटी हम सब एक ही साथ समोसे खाएंगे। वैसे भी अगर आप लोग अभी नहीं खाएंगे तब समोसे ठंडी पड़ जाएगी।” दीपा बोली।
मां कुछ बोलती इससे पहले ही कमरे में मैं और आदिति भाभी आ गए।
“निशांत और आदिती दी देखिए ना मौसी और आंटी समोसे खाने को तैयार नहीं है। हम लोगों ने कितनी प्यार से बनाए हैं।” दीपा हम लोगों के कमरे में प्रवेश करते ही बच्चों जैसी बोल पड़ी।
“क्यों माँ जी ! आप क्यों नहीं समोसे खाएंगे ?” आदिती भाभी बोली।
“अरे यह लड़की भी ना ! ….. थोड़ी सी में पूरे घर को सर पर उठा लेती है।“ मां दीपा को देख कर बोली ।
हम सभी मुस्कुराने लगे। कुछ देर बाद हम सभी समोसे और आम के चटनी पर धावा बोल चुके थे। दीपा , अदिति भाभी, सुजाता मौसी , माँ और मै सभी एक साथ बैठ कर समोसे खा रहे थे। सब लोग एक के बाद दूसरी समोसा उठाने में बिल्कुल भी समय नही लगा रहे थे।
“वाह ! वाकई में समोसा स्वादिष्ट बना है।” मां बोली।
“यह सब दीपा के हाथों के जादू है माँ जी ।” भाभी दीपा को देखती हुई मुस्कुरा कर बोली।
“नहीं … नहीं आंटी , यह सब आदिति दी का ही कमाल है।” दीपा बोली ।
“ना दीपा और ना आदिती भाभी , माँ यह सब मेरे हाथों के कमाल है।” मैंने भाभी की तरफ देख कर मजाक से बोला। सभी लोग मेरी तरफ देखें और सब खिलखिला कर हंस पड़े।
अभी सब लोगों की हंसी भी ना रूकी थी कि सुजाता मौसी बोली, ” हूं..यह कोई समोसा है ! लगता है घी में नहीं बल्कि सिर्फ तवे पर घिसकर पका दी गई है। इससे इससे अच्छी समोसा तो मेरी शिल्पा बनाती है , एकदम से कुरकुर।“
सुजाता मौसी की यह कड़वाहट भरी शब्द पूरे कमरे में फैल गई और फिर से एक बार पूरा कमरा खामोश हो गया।
दिल तो कई बार किया था कि मौसी को बोल दूं , ” मेरे घर में बार-बार ये अपनी शिल्पा को मत लाया करो , वह किसी सम्राट की महारानी बिटिया नहीं है जिसका बार-बार गुणगान करती फिरती हो और वह थोड़े ना कोई जादू की छड़ी है, जो हर काम में परफेक्ट हो। जब देखो, जहां देखो,शिल्पा – शिल्पा करती रहती हो।”
मगर मैं आज तक मौसी को यह सब नहीं बोला । मैं उस वक्त कुछ बोलता उससे पहले ही भाभी चुपचाप उस कमरे से निकलकर किचन के तरफ चली गई और साथ ही उसके पीछे –पीछे दीपा भी चली गई।
“देखती हो बहना तुम्हारी बहू गुस्से से कैसे निकली ? मैंने उसे अभी क्या बोली ? कुछ तो नहीं बोली।“ सुजाता मौसी मेरी मां को देख कर बोली।
“अरे … वो …।“
“मैं जानती हूं विमला तुम्हें अपनी बहू में कोई दिक्कत नहीं दिखेगी। अभी तुम यही बोलोगी बहू गुस्से से बाहर नहीं गई थी।” सुजाता मौसी मेरी मां की बातों को बीच में ही टोकती हुई बोली ।
*
शाम के 7:15 बज चुके थे और दीपा अपने घर जाने के लिए दीदी से जिद कर रही थी।
“आदिती दी, मैं घर चली जाऊंगी ना ! प्लीज जाने दीजिए घर पर भैया इंतजार कर रहे होंगे।” दीपा बोली।
“दीपा देखो , अंधेरा होने वाली है इतनी शाम को जाना अच्छी बात नहीं है। सुबह चले जाना।” आदिती भाभी बोलीं।
“घर पर भैया परेशान हो रहे होंगे। मेरे घर में उनके लिए कोई खाना बनाने वाली भी तो नहीं है। मुझे घर जाना ही होगा दी ( दीदी)। “ दीपा बोली।
”निशांत इसे अब आप ही समझाओ की आज रात यहीं रुक जाये। कल सुबह चली जायेगी।” आदिती भाभी मुझे देखते हुए बोली।
“दिपा प्लीज रूक जाओ। सब लोग रूकने बोल रह हैं। सुबह यही से साथ कॉलेज चले जाना” मैने बोला।
मेरे बोलने के कुछ सेकंड बाद ही वहां अर्जुन भैया ऑफिस से वापस आ गए थे ।
“भाई किसे रोका जा रहा है? मुझे भी तो कोई रोको।” भैया आते ही मजाक लहजे में बोले।
“जीजा जी , नमस्ते।” दीपा अर्जुन भैया से बोली।
Continue ……
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