रात को हम पूरे परिवार के साथ भोजन के लिए डाइनिंग टेबल पर बैठे थे। मुझे, भैया और मां को मिलाकर ही हमारी पूरी फैमिली कंप्लीट थी ।
पापा की मृत्यु आज से 12 साल पहले कंपनी में हुए एक बड़े हादसे के कारण हो गई थी। पापा के मौत के बाद मेरी मां ही हम-दोनों भाइयों को पापा बनकर हमारी परवरिस किया हैं ।
भैया दसवीं पास करने के बाद ही मां के कामों में हाथ बटाना शुरू कर दिए थे जबकि 12वीं के बाद भैया कंपनी संभालने लगे थे।
“ अर्जुन, चौटाला साहब को माल डिलीवर करना था। तूने माल भेजवा दिया है क्या ? ” मां ने ब्रेड के टुकड़े को मुंह में डालते हुए भैया से पुछी ।
“ जी .. मां। आज सुबह ही डिलीवर करवा दिया हूं। बस उनके तरफ़ से पेमेंट बाकी रह गयी है।” भैया ने अपने हाथ से गोभी की सब्जी को उठाते हुए जबाब दिये।
“ कोई बात नहीं है, चौटाला साहब अपने पुराने डिस्ट्रीब्यूटर हैं उनसे पैसा कहीं नहीं जाएगा ” मां ने भैया को देखते हुए बोली।
भैया और मां के बीच का वार्तालाप सुनकर मैं खुश था। मेरा खुश होने का असली कारण यह था कि मां ने मुझसे कॉलेज के पहले दिन के बारे में कुछ नही पूछ रही थीं । वरना अगर मां कॉलेज के बारे में पूछी होती तो फिर उस पीली दुपट्टे वाली लड़की के बॉयफ्रेंड के चेहरा आंखों तैर जाता।
वैसे मेरी मां को मेरी पढ़ाई लिखाई से ज्यादा लेना–देना नहीं रहती थी । वह हमेशा कहती थी जल्द से जल्द कंपनी ज्वाइन कर लो और अपने भाई का हेल्प किया करो। मगर भैया ने मुझे कॉलेज जाने की छूट दे रखी थी ।
उनका मानना था कि किसी भी इंसान को पहले अपनी पढ़ाई पूरी करनी चाहिए उसके बाद ही काम के बारे में सोचना चाहिए। भैया को अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ने की आज भी मलाल हैं ।
अगर घर में इस तरह के विपत्ति नहीं आती तो शायद भैया अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर कंपनी ज्वाइन कभी नहीं करते। मगर किस्मत के होनी को कौन टाल सकता हैं! कभी – कभी कुछ हालात भी हमें बहुत कुछ करने के लिए मजबूर कर देता है।
अगले दिन मैं कॉलेज पहुंच चुका था। आज भी मेरी आंखें कॉलेज के कॉरिडोर में इधर–उधर उसे ही ढूंढ रही थी। मगर वह लड़की फिर से दोबारा नहीं दिखी। इस तरह से कॉलेज के कई दिन बीत गया मगर उस लड़की से फिर कभी दूसरी दफ़ा मुलाकात नहीं हुई।
अब भैया की शादी के दिन भी नजदीक आ चुके थे और हम लोग शादी की तैयारियां में व्यस्त हो गये थे। अब उस पीली दुपट्टे वाली लड़की की याद भी दिमाग से लगभग उतर चुका था।
भैया की शादी शहर के सबसे बड़े मैरिज होटल द (The) सम्राट मैरिज गार्डन में हो रही थी। हम लड़के वाले और लड़की वाले सभी लोग शादी के एक दिन पहले ही उस मैरिज होटल में आ चुके थे।
तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी थी। बहुत सारे मेहमान आ चुके थे। मिठाइयों की खुशबू पूरे होटल में बिखर चुका था। दरवाजे पर लदे गुलाब के फूल की खुशबू वहां पर उपस्थित मेहमानों में जोश उड़ेल रहा था।
दोनों तरफ के लोग – अपने–अपने रस्म में व्यस्त थे । हम लड़के वाले होटल के सेकंड फ्लोर पर ठहरे हुए थे जबकि लड़की वाले ग्राउंड फ्लोर पर रुके हुए थें ।
उस दिन शाम में तिलक चढ़ाने की रस्म के लिए हम सभी लड़के एवं लड़की वाले एक साथ बैठे थे। अर्जुन भैया को तिलक चढ़ाई जा रही थी। और हम लड़के अपने दोस्तों के साथ लड़कियों को ताड़ रहे थे। इसी बीच हमारा ध्यान एक ऊंची हील वाली लड़की पर पड़ी , उसकी चेहरा कुछ जाना पहचाना सा लगा। ऐसा लग रहा था इस खूबसूरत होंठ को, इसके रेशमी बालों को और इसके गुलाबी चिकनी गाल को मैंने कहीं देखा है।
“अरे यह तो वो ही हैं ! कॉलेज की पीली दुपट्टे वाली लड़की । ” मेरे मुंह से यह चंद शब्द अचानक निकल पड़ा।
उसे देखकर मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। मैं खुशी से पागल हुआ जा रहा था। मेरी आंखें जिस लड़की को कॉलेज में ढूंढती रही आज वो मेरे भाई की शादी में मिल रही थी ।
उस दिन इससे बड़ी ख़ुशी मुझे और किसी बात को लेकर नही हो रहा था । उससे बात करने के लिए मेरा दिल मचलने लगा।
मैं किसी तरह से उससे बात करने की कोशिश करने लगा। कभी मेहमानों से छुपकर जाता तो कभी मां से कुछ बहाने करके लड़की वाले के पास चले जाता। इस तरह से करते- करते आखिर एक बार मुझे उस लड़की से बात करने का मौका मिल ही गया।
” हेल्लो ” मैने बोला।
“हेल्लो , तुम !…” वह चौक कर बोली।
उसके चेहरे का इम्प्रेशन देखकर ही मैं समझ गया था कि उसे मेरा चेहरा अब तक याद है।
“ हां, मैं … लेकिन तुम यहां ? ” मै थोड़ा असमंजस में बोला।
“ अरे मैं अपनी फ्रेंड की बहन की शादी में आई हूं .. वैसे तुम किसके तरफ से हो ? ” उसने बहुत ही बिंदास स्वर में बोली।
“ यूं समझ लो तुम्हारी फ्रेंड की बहन मेरे ही घर जाने वाली है। ” मैंने मस्का लगाते हुए बोला।
“ क्या मतलब ? ” उसने आश्चर्य होकर पूछीं।
“ मतलब कि मैं दूल्हा का भाई हूं ।” मैंने थोड़ा स्टाइल मारते हुए बोला।
“ Wow! रियली। ” वह आश्चर्य होते हुए बोली।
मैं उससे मिलकर काफी खुश हो रहा था। वैसे वह भी काफी खुश दिख रही थी मगर अब तक हम दोनों ने एक दूसरे के हालचाल या फिर नाम बैगरह तक नहीं पूछा था। फिर अचानक उसने बोली, “बाय द वे ( by the way) तुम्हारा नाम क्या है?”
मैं उसे अपनी नाम बताता उससे पहले ही वहां पर एक अंकल ने आकर बोला, “छोटे तुम्हारा भाई तुम्हे ढूंढ रहा है।“
“जी अंकल मैं आ रहा हूँ” मैंने अंकल को बोला।
अंकल के जाने के बाद वह खिलखिला कर हंसने लगी। मैंने इशारा करके पूछा, “क्या हुआ?”
“ये छोटे कैसा नाम है ? इससे अच्छा तो नटवरलाल नाम ठीक-ठाक लग रहा है। ” वह बोल कर फिर खिलखिला कर हंस दिया।
अब मुझे समझ में आ गयी थी कि वह मेरा नाम को लेकर मजाक बना रही हैं ।
वैसे हँसते हुए वह और अधिक खूबसूरत लग रही थी। मन तो कर रहा था भाभी के साथ इसे भी दुल्हन बना कर अपने घर ले चलूं।
” अरे मेरा नाम छोटे नही ,बल्कि निशांत है। वो तो भैया प्यार से छोटे बोलते हैं।” मैंने कहा।
Continue ……