”पागल हो ? इतनी रात को अगर हम दोनो को एक साथ आदिती दी (दीदी) या कोई और देख लेगा तब बबाल हो जायेगा।” दीपा मुझे समझाती हुई बोली।
“अरे तुम भी ना! तुम खाम–खा डर रही हो। अब तक तो सारे लोग सो चुके होंगे।” मैंने कहा।
“विडीयो कॉल से ही सही है, रात में रिस्क नहीं ले सकती , कहीं कुछ गड़बड़ हो गया तब ? ” दीपा बोली।
“अरे कुछ नहीं होगा मेरी भोली–भाली दीपा। आओ तो सही।”
इस बार मेरी बात सुनकर दीपा की हंस पड़ी।
“ओके! ठीक है बाबा । चलो मैं छत पर ही आती हूँ।” यह बोलकर कॉल डिस्कनेक्ट कर दी।
कुछ मिनट बाद हम दोनों अपने – अपने कमरे से निकल कर बिल्डिंग के सबसे उपरी फ्लोर यानी की खुले छत पर बैठे थे । आसमान साफ थी , तारे टीमटीमा रहे थे और चांद की कोमल रोशनी पूरे छत पर फैली हुई थी। चांद की चांदनी में दीपा के गुलाबी गाल और भी गुलाबी लग रही थी और उसके होंठ इस रोशनी में गुलाब की पंखुड़ियों जैसी लग रही थी।
“दीपा मैं जब भी तुम्हारे साथ होता हूं, तो मुझे ऐसा लगता है। काश यह पल ऐसे ही थम जाए और मैं हमेशा यूं ही तुम्हारे साथ ही बैठा रहूं।” मैंने उसके कोमल हाथों को छूते हुए बोला।
“मेरे लिए तो तुम्हारे साथ होना ही मेरी जिंदगी है बाकी के तो हर पल तो किसी असहनीय दर्द सा चुभता है।” दीपा मेरी कंधों पर अपनी सर रखती हुई बोली।
जब हम दोनों अलग–अलग कमरे में थे तो रात ही नहीं कट रही थी लेकिन जब हम दोनों एक साथ थे तब तो उस चांद की रोशनी में बात करते- करते समय का कुछ पता ही नहीं चला । अचानक से दीपा अपनी मोबाइल देखी। सुबह के 3:00 बज चुके थे। दीपा समय देख कर चौकते हुए बोली, “निशांत सुबह के 3:00 बज गए है। अब हम दोनों को अपने -अपने कमरे में चलना चाहिए।“
यह बोलकर दीपा छ्त से जाने लगी तभी मैंने उसके बाएं हाथ को पकड़ लिया। वह अपने आंखों से इशारा कर पुछी, “क्या?”
मैंने दीपा को बिना कोई जवाब दिए उसे अपनी ओर खींच लिया। अब वह मेरे बाहों में थी । दीपा शायद मेरे जज्बातों को समझ गई थी। वह अपनी होंठ को मेरे होंठ के पास ले आई । फिर हम दोनों एक दूसरे में चिपक गए ।
उसकी मक्खन– सी मुलायम होठ मेरे होंठ से जा चिपकी। हम अगले 10 मिनट तक वैसे ही एक दूसरे में लिपटे रहे फिर हम छत से नीचे चले आए। दीपा मेरे कमरे तक आई और मुझे गुड नाइट बोलकर नीचे अपने कमरे में चली गई।
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अगले दिन सुबह मैं और दीपा कॉलेज चले गये। शाम में कॉलेज खत्म होने के बाद दीपा अपने घर चली गई थी जबकि मैं कॉलेज से वापस सीधा अपने घर आ गया था।
मैं जैसे ही अपने घर के अंदर गया तो देखा घर में भाभी ,मां ,सुजाता मौसी और अर्जुन भैया सभी लोग एक साथ बरामदे में खड़े हैं। और साथ ही सब लोग काफी परेशान दिख रहे थे।
उस दिन भैया भी ऑफिस से जल्दी घर आ गए थे। मुझे समझ नहीं आ रहा था उन लोगों को देखकर, आखिर सब लोग इतने परेशान क्यों हैं ?
“क्या हुआ आप लोग परेशान क्यों हैं?” मैंने बोला।
मेरी बातों को सुनकर उनमें से किसी ने कोई जवाब नहीं दिया । मैंने भाभी की कमरे के तरफ देखा भाभी अपने बिस्तर पर बैठ कर रो रही थी।
“मां हुआ क्या, मुझे कोई बताएगा भी या सब लोग ऐसे ही उदास रहोगे?” इस बार मैंने थोड़ी तेज आवाज में बोला।
सुजाता मौसी दूसरे कमरे से निकलती हुई बोली, “अरे मैं पहले ही बोली थी उस लड़की को घर में ज्यादा मत आने-जाने दो। लेकिन तुम लोग मेरी बात कभी सुनते ही कहां हो? अब घर में चोरी हुआ तो समझ में आ गई।”
“ चोरी?..” मैंने खुद से दोहराते हुए बोला।
“हां,आदिति के गहने चोरी हो गई है। भैया मेरे तरफ देखते हुए बोले।
Continue ……
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